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भारतीय दर्शन और आधुनिक विज्ञान

कोशिश .....An Effort by Ankush Chauhan भारतीय दर्शन विश्व के प्राचीनतम दर्शनो में से एक है इसमें अनेक वैज्ञानिक सिंद्धान्तो को प्रतिपादि...

यथा दृष्टि तथा सृष्टि

कोशिश .....An Effort by Ankush Chauhan

जीवन जीने का वास्तविक तरीका यदि हम जान ले तो जीवन अपने आप सुन्दर हो जाएगा।
हम अक्सर देखते है कोई खुश है कोई दुःखी , कोई हँस रहा है कोई रो रहा है। दुनिया तो वही है एक जैसी परिस्तिथियों में भी किसी को दुःख तो किसी को सुख ?

वेदों में एक बहुत सुन्दर वाक्य है

"यथा दृष्टि तथा सृष्टि"
और यह हमारे जीवन का बहुत बड़ा वाक्य है। 

हमारी दृष्टि ही वास्तव में हमारी सृष्टि का निर्माण करती है। और हमारी दृष्टि का निर्माण या तो हमारे जीवन के पूर्व संस्कारो से होता है या हम अपनी इच्छा शक्ति से करते है। 


सुख दुःख जीवन का हिस्सा है वो अपने क्रम से आते रहेगे । उनसे कैसा डर वास्तव में सुख और दुःख दोनों ही महान शिक्षक है।
ये जब हमारी आत्मा से होकर जाते है उसपर चित्र अंकित कर देते है।  वही हमारे जीवन के संस्कार है । वो ही हमारी मानसिक प्रवर्ति और झुकाव का निर्माण करते है।
 यदि हम शान्त होकर स्वयं का अध्ययन कर तो पायेंगे हमारा हर क्रियाकलाप , सुख दुख , हँसना रोना, स्तुति निंदा सब मन के ऊपर बाह्य जगत के अनेक घात प्रतिघात का परिणाम है।
संसार मे जो कुछ क्रियाकलाप हम देखते जो हम देखते है वो केवल मन का ही खेल है । मनुष्य की इच्छाशक्ति का कमाल।
अपनी वर्तमान स्तिथि के जिम्मेदार हम ही है और जो कुछ हम होना चाहे , उसकी शक्ति भी हम ही में है। यदि हमारी वर्तमान अवस्था हमारे पूर्व कर्मो का फल है तो ये भी सत्य है जो कुछ हम भविष्य में होना चाहते है वह हमारे वर्तमान कर्मो द्वारा निर्धारित किया जा सकता है।
मनुष्य बिना हेतु के कोई कार्ये नही करता किसी को यश चाहिय, किसी को धन, किसी को पद, अधिकार, किसी को स्वर्ग तो किसी को मुक्ति ।
परन्तु यदि कोई मनुष्य पाँच दिन तो क्या पाँच मिनट भी बिना भविष्य का चिन्तन किये , स्वर्ग नर्क या अन्य किसी के सम्बंध में सोचे बिना निःस्वार्थ भाव से कार्ये कर ले तो वो महापुरुष बन सकता है।
मन की सारी बहिमुर्खी गति किसी  स्वार्थपूर्ण उद्देश्य के लिये दौड़ती है । और अंत मे छीन भिन्न होकर बिखर जाती है। परन्तु आत्मसयंम से एक महान इच्छाशक्ति उत्पन्न होती है वह ऐसे चरित्र का निर्माण करता है जो जगत को इशारे पर चला सकता है।
जो मनुष्य कोई श्रेष्ठ नही जानते उन्हें स्वार्थ दृष्टि से ही नाम यश के लिये कार्ये करने दो। यदि कोई श्रेष्ठ एवम भला कार्ये करना चाहते है तो ये सोचने का कष्ट मत करो कि उसका परिणाम क्या होगा।
जीवन पथ पर अग्रसर होते होते वह समय अवश्य आयेगा जब हम पूर्ण रूप से निःस्वार्थ बन जायेंगे। और जब हम उस अवस्था मे आयेंगे हमारी समस्त शक्तियां केन्द्रीभूत हो जाएगी।
और ध्यान जीवन को इस मार्ग पर ले जाने का उत्तम मार्ग है यह हमें आत्मज्ञान के साथ संयम प्रदान करता है। इसका आसान तरीका है शुरुआत में सिर्फ सुबह 20 से 25 मिनट एकांत में सुखासन में बैठ कर आँखे बंद कर अपनी साँसों पर ध्यान लगाएं हर आने और जाने वाली है साँस पर।यह हमें आत्मज्ञान के साथ संयम प्रदान करता है।

इस लेख की प्रेरणा स्वामी विवेकानंद जी द्वारा रचित कर्मयोग से ली गयी है। जीवन को बेहतर बनाने के लिये स्वामी जी को जरूर पढ़ें।
-AC

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