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भारतीय दर्शन और आधुनिक विज्ञान

कोशिश .....An Effort by Ankush Chauhan भारतीय दर्शन विश्व के प्राचीनतम दर्शनो में से एक है इसमें अनेक वैज्ञानिक सिंद्धान्तो को प्रतिपादि...

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Who will win election

कोशिश .....An Effort by Ankush Chauhan

व्यंग्यात्मक कविता "कौन बनेगा प्रधान"


कौन बनेगा प्रधान
अटकी सबकी जान
सारे पासे फेक दिये, पर
वोटर, नही रहा है मान।
अटकी सबकी जान , भईया
अटकी सबकी जान
कौन बनेगा प्रधान
घर - बार कही दाव पर है,
कही दाव पर शान
जीवन भर जो रहे लुटते, 
आज मांग रहे, वोट का दान।
अटकी सबकी जान, भईया
अटकी सबकी जान,
कौन बनेगा प्रधान
बैनर- पोस्टर लगवा दिये है,
आध्धे- पव्वे बटवा दिए है,
पर जनता के मन मे है क्या,
नही पा रहे जान , ओ भईया
कौन बनेगा प्रधान
गुना भाग सब लगा लिये है,
रिश्ते नाते सब जोड़ लिए है
लिया जीत का थान,
फिर भी गले मे अटकी जान।
कौन बनेगा प्रधान, भईया
कौन बनेगा प्रधान
सबके दावे अपने -अपने
नही रहा कोई, किसी की मान
खाने वाले,  सबका खाते
पी के सबकी नारे लगाते,
बैठ पास गाते है, गुनगान।
अटकी सबकी जान , भईया 
कौन बनेगा प्रधान
जन सेवा का धंदा बनाके,
चुनाव से पहले खूब लुटाते,
हाथ पैर सब जुड़ जाते।
जीत चुनाव फिर लूट के खाते,
काम ना ये कुछ सही करवाते।
बस इसीलिए,  भटके प्राण।
अटकी इनकी जान , के भईया
कौन बनेगा प्रधान
कौन बनेगा प्रधान
-AC




Truth of life ,जीवन का सत्य बताती एक कविता, मैं बैठा गंगा के तट पर

कोशिश .....An Effort by Ankush Chauhan


जीवन का सत्य बताती एक कविता 


मैं बैठा गंगा के तट पर
सोच रहा जीवन है क्या।
कल कल करता बहता ये जल
कहता बस एक ही बात।
जो कल था वो आज नही
जो आज यहाँ वो कल खो जाता।
पर ये गंगा का तट वहीँ
रहती गंगा की धार वही।।
क्या खोया क्या पाया जग में
सब कुछ यही  धरा रह जाता।
गौमुख से चलकर, गंगासागर में मिल जाना 
फिर मेघो के पंखों पर चढ़कर ,नया जन्म है पाना।
चक्र यही है जीवन का भी 
जो  बस यूं ही चलते  है जाना ।
मैं बैठा गंगा के तट पर
सोच रहा जीवन है क्या।
झूठ सच की गठरी बाँधी।
सोने चांदी के ढेर लगाए।।
मैं मै कर माया जोड़ी ।
साथ न जाये फूटी कौड़ी।।
घोड़ा गाड़ी महल दुमहले ।
सब पीछे रह जाता है
भाई बंधु रिश्ते नाते
साथ कोई ना जाता है।
क्या खोया क्या पाया जग में
सब कुछ यही  धरा रह जाता है।
मैं बैठा गंगा के तट पर
सोच रहा जीवन है क्या।

-AC




शिक्षक एक युग निर्माता

कोशिश .....An Effort by Ankush Chauhan


भारतीय संस्कृति में शिक्षक का महत्व बहुत बड़ा माना गया है, जो सच में है भी , क्योकि एक शिक्षक के हाथों में राष्ट्र का भविष्य होता है , उसके विचार ,उसके कार्ये , उसकी शिक्षा लाखो करोड़ो बच्चो के भविष्य बदल सकती है । इसीलिए गुरु को ईश्वर के तुल्य माना गया है। 
"गुरु ब्रह्मा, गुरु विष्णु, गुरु देवो महेश्वर; गुरु साक्षात परम ब्रह्म, तस्माई श्री गुरुवाय नमः"। गुरू को इतनी बड़ी उपाधि देने का सिर्फ एक कारण है कि उसके पास भी ईश्वर की तरह निर्माण, संचालन और विध्वंस सारी शक्तिया होती है उसका दिया ज्ञान उसके शिष्य से कुछ भी करा सकता है ।
गुरु का ज्ञान और प्रेरणा शिष्यों को किसी भी मार्ग पर जाने के लिए प्रेरित कर सकती है। मगर आज के समय मे हमारी शिक्षा व्यवस्था अपने उद्देश्य से भटक चुकी है , हो सकता है कि इसका कारण देश मे लागू मैकाले की शिक्षा पद्दति हो।
मैकाले की शिक्षा जो अग्रेजो के समय देश मे लागू की गई थी वो आज भी देश मे लागू है उसका उद्देश्य देश मे नौकर पैदा करना था, ऐसे नौकर जो अग्रेजो के लिए नौकरी कर उनकी सेवा करे , उनके आदेशो का पालन करे, बिना कुछ सोचे । इस शिक्षा पद्दति में सिखाया जाता है, क्या और कैसे आज भी हम यही सिख रहे है हमारे बच्चे भी यही सिख रहे है जबकि जीवन मे क्या और कैसे से ज्यादा ये जानना जरूरी है क्यों , जब हमारा सवाल क्यों होता है तो हम समस्या की तह तक जा सकते है ।क्या गिरा सेब, कैसे गिरा पेड़ से टूट कर मगर जब क्यो गिरा आया तब गुरुत्वाकर्षण मिला, क्यो आपको गुलामी से भी आजाद करता है इसलिए क्यो को गौण कर , सिर्फ क्या और कैसे पर जोर दिया गया। मैकाले की अंग्रेजी शिक्षा पद्दति का एक मात्र उद्देश्य था भारत पर अग्रेजो के शासन को आसान करना । जब हम अंग्रेजी शिक्षा पद्दति की बात करते है तो उसका अर्थ माध्यम / भाषा से बिल्कुल नही है माध्यम हिंदी/अंग्रेजी/मराठी /तमिल कुछ हो मायने नही रखता है, मायने रखता है शिक्षा देने का तरीका ।
शिक्षा का उद्देश्य होना चाइये की बच्चा ये सीखे की ,
कैसे सोचना है, ना कि क्या सोचना है 
मगर हमारी शिक्षा पद्दति बच्चो को सिलेबस और किताबो के दायरे में बांध देती है उनका सारा ध्यान किताबो में लिखी लाइनों को रटने में ही चला जाता है  । उसपर नम्बरों की अंधी दौड़ सब भाग रहे है मगर जाना कहाँ है किसी को नही पता , परीक्षा में 100% लाने वाले भी सैकड़ो बच्चे मिल जाते है, 98-99 की तो बाढ़ सी ही आ जाती है क्या शिक्षा का उद्देश्य इससे पूरा हो जाता है, सोचिए अगर किसी के 60-65 प्रतिशत रह जाये या गलती से फेल हो जाये ( गलती से इसलिए क्योकि आज की शिक्षा प्रणाली में परीक्षा में फेल होने की संभावना कम है चाहे वो जिंदगी में फेल हो जाये ) 
कम नम्बर या फेल होने पर आज के बच्चे अपने जीवन को भी समाप्त करने के कदम उठा लेते है , जो शिक्षा उन्हें जीवन मे मजबूती से खड़े होकर हर मुश्किल का सामना करने के लिये थी, उसने उसे इतना कमजोर बना दिया । क्योंकि सफल होने पर क्या करना है ये तो हम जानते है परन्तु असफल होने पर क्या करना है ये नही जानते , क्योकि कभी किसी ने हमे ये सिखाया ही नही। 
जबकि शिक्षा का प्रथम उद्देश्य बच्चो को मजबूत बनाना है, उन्हें इतना सक्षम बनाना के, वे जीवन की किसी भी परिस्थिति का डटकर मुकाबला कर सके ,उसके बाद ही किसी विषय का ज्ञान उनके काम आ सकता है ।
गुरु गोविन्द दोऊ खड़े , काके लागू पाय|
बलिहारी गुरु आपने , गोविन्द दियो बताय||
जो गुरु ईश्वर का मार्ग बात सकता है वो इन समस्याओं का समाधान भी कर सकता है। अगर एक गुरु ठान ले के उसे अपने शिष्यों का जीवन बदलना है , उनके भविष्य को उज्जवल बनाना है तो वो निश्चित रूप से ये कर सकता है।तभी शिक्षक दिवस की सार्थकता होगी, जब शिक्षा का सही उद्देश्य पूरा होगा। 
-AC

धर्म का धंदा

कोशिश .....An Effort by Ankush Chauhan


धर्म, वैसे तो ये बहुत ही व्यापक विषय है इसे समझना इतना आसान नही है परन्तु अगर सच्चे मन से चिंतन करे तो मनुष्य इसे समझ सकता है । धर्म के विषय मे तो हमारे धर्म ग्रंथो में बहुत कुछ लिखा है परन्तु आज धर्म को ना जानने और ना मानने वाले धर्म के ठेकेदार बने हुए है और इन्होंने अपने निजी स्वार्थों के कारण धर्म का भी धंदा बना दिया है।
मंदिरों में बैठ इन ठेकेदारों ने वहाँ दर्शनों के लिए VIP लाइन बना दी , जितने ज्यादा पैसे उतने जल्दी दर्शन , सुनकर बड़ा आश्चर्य होता है , ईश्वर जब इनके कृत्यों को देखता होगा तो सोचता होगा मेरे नाम पर तुमने क्या धंदा बना दिया ईश्वर तो सभी का बराबर है उसके लिए कोई बड़ा छोटा नही।
ये धर्म का धंदा यही नही रुकता पहले तो इन्होंने भीड़ इकट्ठा करने के लिए राम - कृष्ण जैसी दिव्यात्माओं की जीवन लीलाओं में फूहड़ नाच गाने को जोड़ा तो अब इन्हें ही नचावा दिया, क्योकि भीड़ इकठी होगी तो चंदा मिलेगा क्योकि धर्म इनके लिए एक धंदा बन चुका है।
दिव्यात्माओं के जीवन चरित्र को आने वाली पीढ़ियों तक पहुचाने के लिये हर गाँव, गली ,मुहल्ले में मण्डलीय होती थी कमाई बढ़ी तो ये कमेटियों का रूप ले चुकी है और इनमें अब पदों की लड़ाईया होती है इंसान अपने स्वार्थ में इतना गिर गया है के आज चंद रुपयों के लिए धर्मिक कार्यो को भी कलंकित कर रहा है 
अरे कभी उन राम ,कृष्ण के चरित्र को अच्छे से पढ़ो तो समझ आएगा कि तुम कितना गिर गये हो। और हम समाज और आने वाली पीढ़ी को क्या संदेश दे रहे है । इन रामलीलाओं का क्या अर्थ रह गया अगर मंदिर जैसे पवित्र स्थानों और धर्म के कार्यो में भी गली गलौच और जूता चप्पल होने लगें। क्या इस मानसिकता से हम उन दिव्यात्माओं के चरित्र को प्रदर्शित कर पाएंगे।
मगर हम बड़े बड़े तिलक लगाकर ही अपने को धार्मिक समझ लेते है पर कभी स्वयं का मूल्यांकन करने का प्रयास ही नही करते। 
धर्म जैसे विषयों को भी अगर धंदा बना कर, चलो हमने कुछ कमा लिया तो सोचो, हम उसे लेकर जायगे कहाँ, 
अपने अहंकार के मद में चूर हम भूल जाते है 
"इस धरा का, इस धरा पर, सब धरा रह जायेगा।"
अहंकार तो रावण का नही रहा तो हम और आप तो क्या चीज है। 
अगर आप अनैतिक तरीको से ये सब अपने आने वाली पीढ़ियों के लिए इकट्ठा कर रहे है तो क्या आप ये मान कर बैठे है , के आपकी आने वाली पीढ़ी आपसे भी ज्यादा नालायक है। जो अपने लिए कुछ कर भी नही सकती।
मैं ये तो नही कहूँगा के इन लोगो के कृत्यों से धर्म का नाश हो रहा है, क्योंकि नाश तो ये अपना और अपनी आने वाली पीढ़ियों का ही कर रहे है क्योंकि धर्म का नाश नही होता वो तो अटल है । व्यक्ति जरूर धर्म से भटक सकता है और जब कभी अधर्म वाले बढेगे तो फिर कोई आएगा उनके विनाश को , पुनः मानव ह्रदय में धर्म की स्थापना के लिए उसे सही मार्ग दिखाने के लिये। कभी राम,  कृष्ण बनकर तो कभी दयानंद और विवेकानंद बनकर । 
मगर ये हमे सोचना है के हम इन दिव्यात्माओं के जीवन और विचारों से कुछ सिख कर अपने जीवन को धर्म के मार्ग पर लगाना चाहते है या अधर्म के मार्ग पर चलकर अहंकार के मद में नीच जीवन जीना चाहते है।
-AC

कैसे बनेगा भारत विकसित राष्ट्र

कोशिश .....An Effort by Ankush Chauhan



प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने लाल किले की प्राचीर से अगले 25 साल में भारत को विकसित देश बनाने का महासंकल्प दिलाया है. उन्होंने कहा कि जब आजादी के 100 साल पूरे होंगे, तब देश विकसित देश बनना चाहिए. आखिर विकसित राष्ट्र का अर्थ क्या है क्या सिर्फ आर्थिक विकास करने मात्र से हम विकसित हो जायेगे? विकास का अर्थ है आर्थिक , वैचारिक , सांस्कृतिक विकास । अपनी संस्कृति की रक्षा करते हुए सैद्धांतिक वैचारिक मूल्यों के साथ आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ बनाना ही सच्चा विकास है । जब तक हम उस विकास को प्राप्त न कर ले चाहे कितना भी आर्थिक सुदृढ हो जाये विकसित राष्ट्र नही हो सकते भले ही वर्ल्ड बैंक के आंकड़े हमे विकसित राष्ट्र कहने लगे। इसमें सबसे पहले आता है वैचारिक मूल्य , जब तक हमारे विचार मूल्यवान नही होंगे हमारी सोच मूल्यवान नही होगी तब तक हमारे कर्म भी मूल्यवान नही होगे समाज मे फैला चोरी, रिश्वत, भ्रष्टाचार , हेरा फेरी, अनैतिक तरीको से धन कमाना, सरकारी सम्पतियों की लूट, जमीनों /सड़को पर अवैध कब्जे, अपने घरों के रैंप सड़क पर ले आना, समाज सेवा का धन्धा बना देना, राजनीति को कमाई जा जरिया समझना, अपने दायित्वों का ईमानदारी से निर्वाह न करना ये सभी वैचारिक पतन के ही कारण है चोरी, रिश्वत भ्रष्टाचार, हेरा फेरी करने वाले के साथ हम भी दोषी है क्योकि इन अनैतिक तरीको से धनार्जन करने वाले इन लोगो का हम तिरस्कार नही करते बल्कि हम लोग उन्हें समाज का सम्मानित व्यक्ति बना देते है , हम या हमारा अपना कोई किसी ऐसी नौकरी में जाता है जिसमे तनख्वाह कम है तो हम उसमे संतोष और संयम नही सीखते बल्कि उसमे ऊपर की कमाई देखते है यही वैचारिक पतन है, सरकारी जमीनों, सड़को पर कब्जे को तो आज हम अपना अधिकार समझते है घरों के रैम्प तो सड़को पर आते ही है अब तो घर भी 2 -4 फिट सड़को पर दिख जायेगे, इसमें न तो बनाने वाले को शर्म आती है ना ही देखने वालों को आज समाज की नज़र में इनका विरोध करने वाला मूर्ख है यही वैचारिक पतन है, राजीनीति आज सेवा का नही रोजगार का माध्यम बन गया है लोगो का वैचारिक पतन इस हद्द तक हो गया है के लोगो का राजनीति में घुसने का उद्देश्य कमाई के साधन और सरकारी सम्पति/ संसाधनों पर कब्जे के मार्ग ढूंढना है , कोई सरकारी सेवा हो या कोई निजी सेवा अपने दायित्वों का सही से निर्वहन ना करना वैचारिक पतन ही है। इसलिये जब तक वैचारिक विकास ना हो आर्थिक विकास हो भी जाये तो उसका लाभ आम जनमानस तक नही पहुँच सकता । दूसरा सांस्कृतिक विकास, इसका आधार वैचारिक विकास ही है क्योंकि हमारी संस्कृति वैचारिक मूल्यों पर ही आधारित है जिसमे मैं नही हम की भावना सर्वोपरि रही है हमारी संस्कृति सर्वेभवन्तु सुखिनः की रही है जब सब सुखी होंगे तो तो मेरा भी सुखी होना स्वाभाविक है परंतु मेरा सुख सभी के साथ मूल्यवान है, हमारी संस्कृति में एक समय राम एक वचन के लिए सारी सत्ताओ को छोड़कर वन चले जाते है और आज लोग छोटे से प्रधान - दिवान बनने के बाद ही जनता को दिये अपने वचनों को भूल जाते है बडी सत्ताओ का तो कहना ही, क्या ये वैचारिक और सांस्कृतिक मूल्यों का पतन नही है। आज भाई भाई में सम्पति के विवाद सामान्य बात है और कभी भरत जैसे लोग सारी सम्पति प्राप्त होने पर भी सम्पति नही, अपने भाई का साथ चाहते है और उनकी खड़ाऊ को उनका प्रतीक मान कर उस राज्य सम्पति के सेवक बनकर भाई का इंतजार करते है । हमारे देश के सांस्कृतिक मूल्य बहुत मजबूत थे इसमें परिवार का महत्व था आज एकल परिवार का महत्व बढ़ गया व्यापार, व्यवसाय , रोजगार के लिए परिवार से अलग रहना अलग बात है परंतु स्वतन्त्र जीवन के नाम पर परिवार से अलग हो जाना वैचारिक और सांस्कृतिक मूल्यों का पतन है। ऐसी बहुत सी घटनाएं है समाज की जहाँ हम वैचारिक और सामाजिक पतन को देखते है इसलिये सही मायनों में सबसे पहले वैचारिक और सांस्कतिक विकास जरूरी है क्योंकि यही विकसित समाज और राष्ट्र की नींव है आज भी हमारे देश मे संसाधनों की इतना अधिक कमी नही , कमी है तो सही विचारों की,  दूषित विचारों के कारण उन संसाधनों का सही लाभ आम जनमानस तक नही पहुँच पता । ये कार्ये सिर्फ सरकारों का नही है ये वैचारिक और सांस्कृतिक क्रांति जनमानस द्वारा ही लायी जा सकती है क्योंकि लोगो से ही समाज और राष्ट्र का निर्माण होता है, जब हम अपने निजी स्वार्थों से ऊपर राष्ट्र को रखना सिख जाये तो समझो परिवर्तन शुरू हो गया एक ऐसा परिवर्तन जो आपके और हमारे बच्चो के लिए सही अर्थों में विकसित राष्ट्र का निर्माण करेगा । यदि आज हम अपने विचारों को सही दिशा देगे तो वो ही उज्ज्वल भविष्य का निर्माण करेगा।

-AC

जीवन को सार्थक बनाने के लिए ईश्वर से प्रार्थना सच्चे मन से वह शक्ति हमे दो दयानिधे

वह शक्ति हमें दो दयानिधे,
कर्तव्य मार्ग पर डट जावें।
पर सेवा पर उपकार में हम,
जग जीवन सफल बना जावें।
हम दीन दुखी निबलों विकलों
के सेवक बन संताप हरे।
जो हैं अटके भूले भटके,
उनको तारें खुद तर जावें।
छल दम्भ द्वेष पाखण्ड झूठ-
अन्याय से निशि दिन दूर रहे।
जीवन हो शुद्ध सरल अपना,
सुचि प्रेम सुधारस बरसावें।
निज आन मान मर्यादा का,
प्रभु ध्यान रहे अभिमान रहे।
जिस देश जाति में जन्म लिया,
बलिदान उसी पर हो जावें।।

मन मे संकल्प के साथ स्वयं को राष्ट्र को समर्पित करने के भाव से 


क्या धर्म के नाम पर ये उन्माद सही में धर्म है

कोशिश .....An Effort by Ankush Chauhan

इस लेख का उद्देश्य किसी की भावनाओ को ठेस पहुँचाना नहीं है यदि किसी की भावनाओ को कोई ठेस पहुँचती है तो मैं उसके लिए पहले ही क्षमा माँगता हूँ।  परन्तु इस विषय पर सभी को गंभीरता से विचार करने की जरूरत है और विचार भी खुले मन से , किसी भी तरह के पूर्वाग्रह से या रूढ़िवादी सोच के साथ सत्य को जानना सम्भव नहीं।
 हम सभी लोग किसी ना किसी धर्म को मानते है जबकि धर्म मानने का विषय है ही नहीं , धर्म तो जानने का विषय है , आप माने या न माने धर्म तो धर्म ही रहेगा , वह तो अटल है, वही सत्य है, हमे तो सिर्फ उस सत्य को जानना है जिस भी रूप में वो है, उसे पहचानना है। 

धर्म का उद्देश्य मानवता का कल्याण है  और धर्म देश, काल से परे है  ,धर्म समय और स्थान से नही बदलता ,जो कल धर्म था वो आज भी धर्म है और कल भी रहेगा और वो हर स्थान पर रहेगा, सत्य बोलना, चोरी न करना अगर धर्म है तो वो हर कालखंड में हर स्थान पर है , धर्म उदार है, विश्वव्यापक है, असीम है जो संकीर्णताओं में बंधा है वो कल्याण नहीं कर सकता और जो कल्याण नहीं कर सकता वो धर्म नहीं हो सकता , धर्म अभय देता है यानी आपको भय मुक्त करता है जो डराए, धमकाए , भय दिखाए वो धर्म नहीं अधर्म है, धर्म सम्पूर्ण मानव जाति  के लिए एक सामान है , वो स्त्री पुरुष सभी के लिए सामान है जो भेद करे वो धर्म नहीं अधर्म है।  

यदि हम धर्म को सही अर्थो में समझना चाहे तो हमे पीछे मुड़कर कर देखना होगा यदि हम हमारे प्राचीन इतिहास की घटनाओं को देखे तो उनमे महाभारत के युद्ध को धर्मयुद्ध  कहा गया है जबकि उसमे लड़ने वाले दोनों एक ही परिवार के थे तो सीधी सी बात है जो निति के साथ है वो धर्म के साथ है जो अनीति के साथ है वो अधर्म के साथ है , ऐसे ही दूसरी घटना में  हिरणाकश्यप को देखे तो वो लोगो को मारकर , डराकर स्वयं की पूजा का दबाव डालता और खुद को ईश्वर बताता अगर किसी को तलवार की नौक पर अपनी पूजा, आराधना , इबादत करवानी पड रही है तो वो ईश्वर, भगवान , गॉड , खुदा कुछ नहीं वो सिर्फ शैतान है , दानव है , राक्षस है।  धर्म वो नहीं जो बहार से थोपा जाये , धर्म तो स्वयं मनुष्य के ह्रदय से बहार निकलता है, आपके गुण, कर्म, विचार स्वयं आपको पूजनीय बना देते है।

ईश्वर तो जन्म मृत्यु के बंधन से मुक्त है परन्तु फिर भी राम, कृष्ण, बुद्ध, गुरु नानक, महावीर आदि और भी अनेक महापुरुष अपने कार्यों और विचारों से ईश्वर के तुल्य पूजनीय हुए है कोई भी धर्म के मार्ग पर चलते हुए देवत्व और ईश्वरत्व को प्राप्त कर सकता है।

धर्म का संबंध ईश्वर से है और ईश्वर आदि है अनंत है , जब कुछ नहीं तब भी ईश्वर है, जहाँ सब कुछ है वहाँ भी ईश्वर है ईश्वर अलग अलग नहीं हो सकते इसका ईश्वर , उसका ईश्वर, मेरा ईश्वर ,तेरा ईश्वर यह संभव नहीं ईश्वर तो सिर्फ एक है वो सर्वव्यापी है , वही इस सृष्टि का निर्माता है , अलग अलग लोगों के विचारों की भिन्नता के कारण लोगों ने अलग अलग सम्प्रदाय बना लिए , रीति रिवाज , कर्मकांड की विभिन्नता के कारण सबको अलग अलग धर्म मान लिया और फिर अपने सम्प्रदायों की संख्या बढ़ाने के लिए कभी लोगो को लालच देकर, तो कभी बहला फुसलाकर मुर्ख बनाकर तो कभी जोर जबरदस्ती से, डरा धमकाकर तलवार की नौक पर अत्याचार करने लगे आप स्वयं सोचिये क्या ये धर्म हो सकता है , जरा एक बार शान्त मन से अपनी अंतरात्मा की आवाज़ सुनिए , सोचोये क्या सदियों से जो चला आ रहा है वो सही है। 

जैसे की पहले भी कहा है के धर्म बहार से नहीं थोपा जा सकता , वो तो आपके अंदर से प्रकट होगा अगर आप सही से चिंतन करे , शांत मन से अपनी अंतरात्मा की आवाज को सुने जब आप सही गलत का फर्क समझेंगे तो स्वयं ही धर्म की रक्षा के लिए खड़े हो जायगे, लोगो को अधर्म का मार्ग छोड़कर धर्म के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करेगे , मै आपको धर्म नहीं सीखा सकता , मै क्या कोई भी नहीं सीखा सकता ये तो आपको स्वयं जानना है आओ धर्म को जाने और धर्म के मार्ग पर चले। 

-AC

पुण्य कर्म

कोशिश .....An Effort by Ankush Chauhan


गोपाल अपनी पत्नी सरला के साथ एक छोटे से गॉव में रहकर अपनी 7  बीघा  जमीन में खेती बड़ी कर जैसे तैसे अपना जीवन यापन कर रहा था , इस खेती में साल भर के खाने के लिए अनाज निकाल कर थोड़ा बहुत वो मंडी में बेच देता है जिससे साल भर के गुजारे के लिए कुछ पैसे आ जाते , मगर आज कल मंडियों में भी बिचोलियो का इतना बोल बाला हो गया के उन्हें कुछ दिए बिना एक छोटे किसान  के लिए अपना अनाज बेच पाना मुश्किल हो जाता है गोपाल भी कई दिनों से मंडियों के चक्कर काट कर खली हाथ घर आ रहा था। 
आज भी  गोपाल जैसे ही घर के आंगन में पैर रखता है उसकी पत्नी सरला उत्सुकता से पूछती है - " जी आज कुछ बात बनी  क्या ?"

गोपाल भी हाँ  में सिर हिलाते हुए पैसे सरला के हाथ में रखते हुए बोलता है - "बस दाम थोड़े कम मिले है, मगर ईश्वर की कृपा से गुजरा हो जायेगा। "

"आप पहले बच्चो की वर्दी का नाप दे आओ और नया बस्ता दिला लाओ स्कूल में मास्टर रोज टोकता  है इन्हे " - सरला ने कहा 

गोपाल भी लोटे के पानी से मुँह धोते हुए - " ठीक है आज शाम को दिला लाऊगा , तू भी अपने लिए एक साड़ी लेती आना तेरी बहन के यहाँ भी तो लड़के  की शादी  है ,वहाँ ऐसे जाएगी क्या "

" अरे नहीं मै तो शीला बहन जी की साड़ी मांग लुँगी एक दिन की ही तो बात है , आप अपना कुर्ता  सिलवा  लेना फटा पड़ा है सारा , आपको तो बारात में जाना है वो पहन के जाओगे क्या " - सरला ने कहा
 
" चल देखते है , तू पहले रोटी लगा दे बहुत जोरो की भूख लगी है "- और गोपाल हाथ पैर  धोकर खाने के लिए बैठा जाता है
 
सरला , गोपाल को रोटी देती है और गोपाल रोटी खाकर थोड़ा आराम करने के लिए चारपाई पर बैठता ही है के तभी फूलसिंह , जो खेतो में मजदूरी का काम करता है आ जाता  है वो गोपाल के यहाँ भी कभी कभी फसल के समय मजदूरी किया करता  था।  गोपाल स्वभाव का बहुत अच्छा इंसान था ,वो सबके साथ अच्छा व्यवहार करता , न तो जात पात  का भेदभाव करता ना  बड़े छोटे का , और अपनी सामर्थ्य के अनुसार सबकी सहयता भी कर दिया करता , सबसे अच्छी बात उसकी ये थी की जब वो किसी की सहयता करता , ना  तो कभी किसी को एहसान दिखता और ना  ही कभी उसका ढिंढोरा पीटता , वो हमेशा यही कहता की अगर हम किसी के जरूरत के समय काम आ पाए तो ये ईश्वर की हम पर कृपा है , उसके इसी सरल स्वभाव के कारण लोग अक्सर बिना संकोच के उसके पास आ जाया  करते।  

राम राम प्रधान जी  ( गॉव में जिसके पास जमीन  हो उसे उसके यहाँ मजदूरी करने वाले लोग अक्सर इसी तरह सम्बोधित करते थे ) - फूल सिंह ने घर में  घुसते  हुए कहा 

गोपाल  भी बड़ी विनम्रता और सम्मान के साथ जवाब देता - "राम राम फुल्लू भाई आ जा बैठ जा , कैसे आना हुआ। "

" बस प्रधान  जी क्या बताऊ छोटी सी मदद चाहिए आपका एहसान होगा बहुत " - फूल सिंह  ने कहा 

गोपाल ने भी प्रेम पूर्वक कहाँ  - इसमें एहसान की क्या बात है, बता क्या बात हुई, जो बन पड़ेगा करेंगे "

फूलसिंह  बोला - "कल लड़की के रिश्ते वाले आ रहे है , कही कुछ इंतजाम  नहीं हुआ बस आपसे ही उम्मीद है नहीं तो कल लड़के वालो के सामने बात बिगड़ जाएगी "

गोपाल ने सरला की और देखा और धीरे से कहा-  "जा दो -तीन सौ रुपये ला दे इनका काम हो जायेगा "

सरला अंदर से तो गुस्सा होती है पर फूल सिंह के सामने बिल्कुल जाहिर नहीं करती और चुपचाप तीन सौ  रूपये ला कर गोपाल के हाथ  में रख देती ही  गोपाल वो फूल सिंह को देते हुए - " ले भाई , संभाल के रखना , और मेहमानो के लिए  एक दो मिठाई भी ले आना "

फूल सिंह पैसे जेब में रखता है और खुश होकर हाथ जोड़ते हुए - " प्रधान जी जैसे ही कही काम लगता है पहले आपके पैसे लौटाऊंगा आपने मेरी नाक कटने से बचा ली "

"कोई बात नही  भाई इंसान ही इंसान के काम आता है" - गोपाल ने कहा 

फूल सिंह अपने घर की और चल जाता है और गोपाल जैसे ही चारपाई पर पैर फ़ैलाने की कोशिश करता है सरला बहार आती है वो अभी तक तो फूल सिंह की वजह से चुप थी  मगर अब थोड़ा नारजगी के  के भाव से बोलती  है - " सारी  दुनिया का ठेका आपने ही लिया हुआ है"

गोपाल शांत भाव से  - " किसी गरीब का काम हो गया बस और क्या बेचारा बड़ी उम्मीद से आया था।  ईश्वर ने उसी के नाम के दिए होंगे "

"अब बारात में जाना वो ही फटा कुर्ता पहन के,  क्या सोचगे वहाँ  लोग कैसे घर में बिहाई है सरला भी "- सरला ने गुस्से में कहा 

गोपाल ने समझते हुए - " अरे तू तो यु ही परेशान होती है ,जैकेट तो सही है वहाँ कोई मेरी जैकेट उतार कर देखेगा क्या  की कुर्ता फटा है या सही। "

सरला मुँह बनाकर - " आपका तो बस यही है , जैसे कोई और भी आपके बारे में सोचने आ रहा है। "

और सरला बड़ बड़ करते हुए अंदर कमरे में चली जाती है और गोपाल भी चारपाई पर लेट जाता है।  उनका तो ये रोज काम है , सरला हमेशा  गोपाल को समझती के लोगो की मदद से पहले अपना और अपने बच्चो का भी कुछ सोच लिया करो और गोपाल था की कभी अपने बारे में सोचता ही नहीं उसके सामने अगर कोई मदद के लिए आ जाये तो वो हर सम्भव प्रयास करता उसकी मदद का , वो तो यहाँ तक करता की एक बार गोपाल खाना थाली में लेकर बैठा ही था   और घर के दरवाजे पर एक साधु  मांगने आगया तो उसने उस भूखे साधु को अपनी थाली ही पकड़ा दी। दोनों की शादी को 15 साल हो गए थे और उनका जीवन बस ऐसे ही नौक झोक में चल रहा था बच्चे अभी छोटे थे पास के स्कूल में जाते थे बेटी 12 साल की सातवीं कक्षा में पढ़ती और बेटा  9 साल का था और अभी चौथी  में था। जिंदगी की गाड़ी बस धीरे धीरे खिसक रही थी।  परिवार में सबके जीवन में अपार  संतोष के कारण तकलीफ जायदा नहीं होती थी। गोपाल सुबह ही खेत में जाता और अपनी गाय  के लिए घास लाता और सरला उसका घर के काम में हाथ बटाती , खेत का काम गोपाल करता और घर पर गाय  का घास , पानी , दूध का काम दोनों मिलकर करते सब ठीक ही चल रहा था के अचानक खेत में काम करके जब गोपाल घर लौटा तो अचानक उसकी तबीयत बिगड़ गयी सरला दौड़ कर एक रिक्शा वाले को बुला कर लायी और उसे सरकारी अस्पताल ले गयी। डॉक्टर ने उसकी जांच करी और उसे अस्पताल में ही भर्ती कर लिया रात में सरला को भी उसके पास ही रुकना पड़ा। आने से पहले सरला बेटी को समझा कर आयी थी के घर पर भाई का भी ध्यान रखना और आने में देरी हो जाये तो रसोई घर में रोटी रक्खी है दोनों खा लेना।  मगर उसे कहा पता था के रात रुकना पड़ेगा। सरला रात भर परेशान थी साथ ही उसे ये भी चिंता थी के उनकी अनुपस्थति में गाय का घास पानी कौन करेगा और दूध कौन निकलेगा।  साथ ही रात भर बच्चे अकेले कैसे रहेंगे। रात बहार सरला के दिमाग में यही घूमता रहा।  सुबह जब गोपाल को थोड़ा आराम हुआ तो डॉक्टर ने घर जाने की इज्जाजत तो दी मगर दो चार दिन घर पर आराम करने की सलाह भी दी। रिक्शा कर के जैसे ही घर पहुंची तो उसने देखा के पड़ोस की एक बूढी अम्मा बच्चो के पास बैठी थी और बच्चो को नाश्ता करा रही थी। 

अम्मा को वह बच्चों के साथ देखकर संतोष के भाव के साथ सरला ने कहा - " ताई आप कब आयी यहाँ "

बूढी अम्मा ने कहाँ - "बेटा  में तो कल शाम से यही हु , जब तुजे गोपाल के साथ रिक्शा में जाते देखा तो मुझे कुछ गड़बड़ लगी तो मैं  दौड़कर घर आयी तो बच्चो ने बताया के गोपाल को तू अस्पताल ले कर गयी है , तो मैंने सोचा बच्चे अकेले है तो मै यही रुक गयी  , गोपाल कैसा है अब "

सरला ने चैन की साँस ली और कहा - " ये तो अब ठीक है बस डॉक्टर ने 2 -4 दिन  आराम करने को बोलै है "

" ताई आपका बड़ा अहसान रहेगा हम पर आपने  बच्चो का ध्यान रक्खा मुझे तो रात भर चिंता रही " -सरला ने कृतज्ञता के भाव से कहा 

" अरे बेटा इसमें एहसान कैसा, इंसान ही तो इंसान के काम आता है, जब तेरे ताऊ बीमार हुए तो गोपाल ही तो उन्हें डॉक्टर के ले गया था और दो दिन वही रहा था अस्पताल में  वर्ना  मैं  बुढ़िया कहा जाती " - बूढ़ी अम्मा ने जवाब दिया 

सरला बच्चो की चिंता से मुक्त होकर , बैठती ही है के तभी पड़ोस की विमला चाची हाथ में दूध के बाल्टी लेकर अन्दर आती है और बोलती है - आ गयी सरला , गोपाल ठीक है अब "

सरला हां में गर्दन हिला देती है 

विमला दूध की बाल्टी रखते हुए बोलती है - "ले तेरी गाय का दूध निकाल  दिया और घास पानी सब हो गया , शाम को एक बार फिर चक्कर लगा दूगी और हाँ  शाम का दूध तेरी रसोई घर में रखा है एक बार फिर उबाल लेना जो बचा होगा "

" चाची आपकी बहुत मेहरबानी ,आप ना आते तो गाय रात भर ऐसे ही खड़ी  रहती " - सरला ने कहा 

"अरी सरला कैसी बात करती है तू भी , इंसान ही तो इंसान के काम आवे है, एहसान तो गोपाल का है हम पर जब मेरी बड़ी बेटी कुसुम की शादी  हुई तो बारात दरवाजे पर आने को थी और खाने का कोई इंतजाम ना था तब गोपाल ने ही चावल का कट्टा लाकर दिया अपने घर से तब जाकर बारात के लिए दाल भात का इंतजाम हुआ था "- बिमला चाची  ने कहा 

बिमला चाची की बात सुनकर सरला गोपाल के मुँह की तरफ देख उनके नेक कर्मो को सोच  ही रही थी के तभी फूलसिंह आवाज़ लगता है - " प्रधान जी प्रधान जी क्या  हो गया "

गोपाल धीमी आवाज में -"बस कुछ नहीं फुल्लू भाई कल जरा से चक्कर  आ गए थे "

"क्या कहा डॉक्टर ने " - फूलसिंह ने पूछा 

" 2 -4  दिन आराम करने के लिए बोला है डॉक्टर ने इन्हे " - सरला ने जवाब दिया 

" ध्यान रखना प्रधान जी ,और किसी काम धाम की चिंता मत करना घास मैं रोज ला दुगा खेत से और गाय  को भी डाल जाया करूंगा "

सरला की तो जैसे सारी  चिंता ही दूर हो गयी थोड़ी  देर बैठ कर सभी अपने अपने घर चले गए मगर सरला चुप चाप बैठी गोपाल की और देख रही थी, गोपाल धीरे से पूछता है - " अब तू क्या सोच रही है किस चिंता में डूबी है "

"अब काहे की चिंता सारा काम तो तो आपने पहले ही निपटा दिया , आप सच ही कहते थे इंसान ही इंसान के काम आता है , आपके पुण्य कर्मो ने ही आज मुसीबत के समय हमारी सारी  चिंता दूर कर दी " - सरला आँखों से ख़ुशी के आंसू पोछते हुए।  दोनों बच्चे अपनी माँ के गले लगकर बैठ जाते है , और सभी मन ही मन ईश्वर का धन्यवाद करते है और चैन की साँस लेकर सरला भी पीछे कमर की टेक लगाकर आराम करने लगती है। 

-AC

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नालायक बेटा

कोशिश .....An Effort by Ankush Chauhan

85 साल के मास्टर गिरधारीलाल खटिया पर बीमार पड़े थे।  मास्टर जी बहुत मिलनसार स्वाभाव के थे और व्यवहार में बहुत अच्छे थे तो उनकी बीमारी की  सुचना से दूर - दूर से लोग उनका हालचाल जानने आ रहे थे। और अपने स्वभाव के अनुसार ही गिरधारीलाल भी सबकी आवभगत का प्रयास करते और जब भी कोई आता तो अपने छोटे बेटे अजय को आवाज़ लगाते  और अजय भी तुरन्त दौड़कर चाय पानी की वयवस्था करता और जब तक आगंतुक चाय पीते  मास्टर जी अपने किस्से सुनाते और सबके सामने अपने बेटे अजय की तारीफ करने का कोई मौका न छोड़ते।  
एक दिन  मास्टर जी के एक पुराने जानकर साथी मास्टर रामपाल जो उनके साथ ही विद्यालय में शिक्षक थे कहते है गिरधारी भाई आप तो कहते थे आपका छोटा बेटा अजय एकदम नालायक है कुछ नहीं करता आज आप उसकी  तारीफों के पुल बांध रहे है। 

गिरधारीलाल  मुस्कराते हुए "रामु भाई कभी कभी सच वो नहीं होता जो हमें दिखाई देता है। "

और गिरधारीलाल की आँखों के सामने पुरानी बातें फिर से जीवंत हो उठती है दरअसल गिरधारीलाल के तीन  बेटे और एक बेटी है  बड़ा बेटा रविंदर , मझला विजय और छोटा अजय और बेटी शीला अजय चारो में सबसे छोटा है।  चारो बच्चे पढ़ाई लिखाई में एक से बढ़ कर एक, आख़िर गिरधारीलाल जी  मास्टर जो  थे , तो अपने बच्चो की पढ़ाई का बहुत ध्यान रखते और हमेशा बच्चो को समझाते के तुम्हे पढ़ लिखकर बड़ा अफसर बनना है।  बड़े पद पर पहुँचो मान, प्रतिष्ठा प्राप्त करो और चारो बच्चे खूब पढ़ाई लिखाई करते एक एक कर सभी ने बारहवीं की परीक्षा उत्तीर्ण करके उच्च शिक्षा के लिए बहार गए,  बड़े बेटे ने MBBS पास किया और बड़े मेडिकल कॉलेज में डॉक्टर  बन गया , मझला बेटा IIT से इंजीनियरिंग कर विदेश में बड़ी नौकरी पर चला गया , बेटी ने सनातक के बाद सिविल परीक्षा  उत्तीर्ण की और वो भी विदेश सेवा में चली गयी। मगर न जाने क्या हुआ के छोटे बेटे  अजय ने ही मेधावी होने के बाद भी आगे पढ़ने से मना कर दिया और घर के पास एक छोटी सी दुकान कर ली और खेती बाड़ी का काम करने लगा।  बस यही बात थी जो गिरधारीलाल जी को अच्छी न लगी और वो अपने छोटे बेटे अजय से नाराज रहने लगे और सब जगह अपने तीनों बच्चो की खूब तारीफ किया करते और जब भी अजय का जिक्र आता तो यही कहते वो तो एक नंबर का नालायक है किसी काम का नहीं और घर पर भी दिन भर उसे कोसते रहते और रिटायरमेंट के बाद तो जब वो घर पर ही रहने लगे तो ये सिलसिला इतना बढ़ गया के अजय का नाम ही नालायक पड़ गया जब भी कोई काम हो गिरधारी लाल जी यही कहते ए  नालायक इधर सुन, जा जाकर बिजली का बिल जमा करा दे ,जा बाजार से सामान ले आ , और अजय हर बार मुस्कुराते हुए जी बाबू जी कह कर काम में लग जाता।  अजय की बीवी भी बहुत सुशिल थी वो भी दिन रात  माँ और बाबू जी की सेवा में लगी रहती।  

"अरे गिरधारीलाल जी कहाँ  खो गये" - रामपाल जी ने मास्टर जी को हिलाते हुए तेजी से आवाज़ लगायी 

गिरधारीलाल ने जवाब दिया  -" बस कही नहीं, यही था भाई"

गहरी चैन की साँस लेते हुए गिरधारी लाल जी फिर बोले - " रामु भाई पता है 3 साल पहले गुजरने से पहले तेरी भाभी ने मुझे एक डायरी दिखाई जानता है वो डायरी किसकी थी ?"

"किसकी डायरी कैसी डायरी" रामपाल ने आश्चर्य से पूछा 

गिरधारीलाल ने फिर अपने मित्र रामपाल को सारी घटना बताई के गिरधारीलाल  की पत्नी ने उसे अजय की एक डायरी दिखाई जिसके बारे में सिर्फ अजय और उसकी माँ को पता था जिसमे एक जगह अजय ने एक घटना लिखी की कैसे बचपन में  पड़ोस के चाचा  के देहात पर उनके बच्चे जो विदेश में बड़ी नौकरी करते थे, नहीं आ सके और वो चाचा अपने आखरी दिनों में अपनी बीमारी से अकेले ही लड़ते रहे , न तो कोई उनके साथ घर का देख-भाल के लिए था, न कोई पानी पूछने वाला। कभी - कभार कोई पड़ोस का थोड़ा बहुत देर के लिए आ जाये तो अलग बात , धन ,दौलत , रुपये पैसे की चाचा के पास कोई कमी ना थी , कमी थी तो बस दुःख और सुख को बाटने वालो की , उनके बच्चे भी रुपया पैसा तो खूब भेजते मगर अपने बड़े काम धंदो की व्यस्तता में मिलने आने का समय ही ना निकाल पाते  . और चाचा बस एक ही बात कहते " शायद मेरी ही गलती है की  मैंने अपने बच्चो को हमेशा पैसे के पीछे दौड़ना ही सिखाया और  पैसे को इतना बड़ा और जरुरी बना दिया के आज वो उनके लिए माँ बाप से भी बड़ा हो गया। "

उसी डायरी में अजय ने एक जगह अपने आगे पढ़ाई न करने का भी कारण लिखा उसमे लिखा था " अगर मैं ज्यादा  बड़ी पढ़ाई करुगा तो बहार जाकर नौकरी करनी पड़ेगी और घर और माँ बाप को छोड़ कर दूर रहना पड़ेगा।  अगर माँ , बाबू जी को साथ शहर ले जाने की भी सोचु तो , वो वहाँ खुश नहीं रह पाएंगे क्योकि उनकी जड़े  गांव में इतनी गहरी बस चुकी है अगर कही और ले जाया गया तो सुख जायेगे और मै कुछ ज्यादा पैसे कमाने के लिए उनकी ख़ुशी दाव पर कैसे लगाऊ "

और वो आगे लिखता है " और मेरे लिए भी पैसा, पद, प्रतिष्ठा से ज्यादा जरुरी मेरे माँ - बाबू जी का साथ और  सेवा है और वही मेरी असली ख़ुशी "

ये बाते  बताते हुए गिरधारी लाल जी का गाला हल्का सा भर आया और उन्होंने कहा " बस रामपाल भाई उस दिन से मेरा उसके प्रति नजरिया बदल गया "

रामपाल  , गिरधारी लाल जी के कंधे पर हाथ  रखते हुए बोले - " गिरधारी लाल जी आखिर बेटा  तो आपका ही है , आपके ही संस्कार तो आएंगे अपने भी तो उस ज़माने में एमएससी  होने के बावजूद यहाँ गॉव के पास प्राइमरी स्कूल चुना जबकि आप भी तो शहर जाकर किसी बड़े कॉलेज मे प्रोफ़ेसर बन सकते थे।  "

दोनों के चेहरे पर  एक मुस्कुराहट आ जाती है 

तभी रामपाल जी पूछते है - " कहाँ है तुम्हारे अजय बाबू "

और सामने से आते अजय की तरफ इशारा करके गिरधारी लाल जी  - " लो आ गया नालायक "
और दोनों जोर जोर से हंसने लगते है.

-AC

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what lessons we learned from coronavirus


कोशिश .....An Effort by Ankush Chauhan

भारत मे 22 मार्च 2020 को प्रधानमंत्री जी के आह्वान पर जब पहली बार जनता कर्फ्यू के नाम से लॉक डाउन लगा तो शायद किसी को अहसास भी नही होगा के इसके बाद देश और दुनिया की तस्वीर बदल जाएगी। इसके बाद फिर 21 दिन का लॉक डाउन प्रवासी मजदूरों का पलायन और देश मे बढ़ते कोरोना के मामले , रोज लोग टीवी के सामने बढ़ते आकड़ो के देखते तो कभी भूख से मरते लोगो की खबरे मगर इन सबके बीच सरकार और आम जनता द्वारा की जा रही सेवा की खबरे कुछ राहत देती । इसी तरह 2020 निकल गया और लोगो ने 2021 का स्वागत ऐसे किया मानो अब सबकुछ बदले वाला है मगर ऐसा हुआ नही स्तिथि 2020 से से ज्यादा खराब हो गयी । चीन के वुहान शहर से फैला एक वायरस पूरी दुनिया को इस तरह अपनी चपेट के ले लेगा किसी ने शायद कभी सोचा भी न हो।
मगर ये वायरस हमे बहुत कुछ सीखा गया जीवन की बहुत सी सच्चाई से रूबरू करा गया आगे भी जाने और क्या क्या सीख सकता है । इस वायरस ने हमे बताया कि इंसान की सारी तरक्की और विकास कुदरत के सामने बोन है दुनिया के सभी शक्तिशाली और समृद्ध देश लाचार से दिखाई दिये शायद ही कोई देश हो जो इससे प्रभावित ना हुआ हो। जहाँ एक और देश दुनिया मे आवाजाही ठप हो गयी साथ ही लोग गारो में बंद होने को मजबूर हो गए । काम धंदे , व्यपार , रोजगार सब ठप से हो गया मगर वही दूसरी और लोग सेवा के लिये भी आगे आये कुछ लोगो ने निस्वार्थ सेवा की भूखों तक भोजन पहुँचाया लोगो तक मदद पहुचायी तो कही लोग ने इस आपदा में भी सेवा के नाम पर प्रचार कर अपनी राजनीति और नाम को चमकाने के कार्य किया मगर यही समाज है जहाँ अच्छे और बुरे सभी तरह के लोग है और कही लोगो ने ऑक्सीजन और दवाओं की काला बजारी की तो कही कुछ लोग अपब सबकुछ भूल कर भी सेवा के लिए आगे आये। कही लोग अपनो से ही दूर हो गये, कही लोगो ने गैरो को भी अपना बना लिया। वक़्त इस भी आया के इंसान इंसान को देखकर डरने लगा और कही रोजी रोटी के लिए हर डर से लड़ने लगा। कुछ लोगो ने अपने लालच के लिए भी जोखिम उठाये । तो कुछ लोग बस लाचार हर परिस्थिति को देखते रहे।
फेफड़ो की इस बीमारी का सबसे ज्यादा असर रिश्तों पर दिखा लोगो पर डर इस कदर हावी दिखा के बीमार व्यक्ति को देखकर लोग उसका हाल पूछने के बाजए दूरी बनाने लगे ,  सावधानी ही इस बीमारी को बढ़ने से रोक सकती थी मगर वो सावधानी कब दूरियों में बदल गयी पता ही नही चला सामाजिक दूरी के नाम पर समाज मे इंसानों के बीच दूरी ही बाद गयी।
इंसान को भी अपनी असली जरूरतों का असहास होने लगा क्या जरूरी क्या गैर जरूरी फर्क पता लगने लगा शहरों की ओर आकर्षित लोग भी गाँव की और रुख करने लगे । जिनके पास गांव में ठिकाना नहीं था वो भी एक वहाँ एक आश्यने कि तलाश करने लगे।
जिन बच्चो का दिन गलियों में गुजरता था वो भी घर की दीवारों में कैद हो गये वो मासूम तो ये भी नही जानते थे कि आखिर ये हो क्या रहा है कभी स्कूल न जाने के बहाने ढूढ़ने वाले बच्चे आज स्कूल की एक झलक को भी तरसने लगे। खेल कूद यारो दोस्तो का साथ सब अचानक से छूट गया। अब तो वो भी बस मोबाइल में ही खोने लगे। न जाने क्या होगा इन बच्चो का भविष्य।
समाज मे चाहे कितनी भी विसंगति हो फिर भी शायद ही कोई तबका और वर्ग हो समज का जो इससे प्रभावित ना हुआ हो। मगर इतना सब कुछ होने के बाद भी क्या हम कुछ समझ पाए क्या हम कुछ सिख पाये?

क्यो दौड़ता था तू , ना जाना ये कभी ।
आज थम सा गया है , फिर भी ना माना अभी।
जरूरत है क्या जिंदगी की,  ना जाना ये कभी।
सिमट सी गयी है जिंदगी,  फिर भी ना माना अभी।।

निकला था घर से कमाने को,  खुशियां जहां भर की।
आज हर खुशी को बचाती है, ये दीवारे ही घर की।
जिस रौनक को देखकर , पाली थी ख्वाहिश नगर की।
उन्ही गलियों को देखकर आज, याद आती है गॉव के घर की।

कही ना कही अहसास तो ये ,  सभी के दिलो में है।
जरूरत जीवन की इतनी नही , जितनी हमने बनाई थी।।
जब नही था ये सब, तब बैठ के खाने को साथ वो एक चटाई थी।
याद है वो पहली कहानी, जो दादी माँ ने छोटी सी खटिया पे सुनाई थी।

तलाश में जाने किसकी, अब तक ये दौड़ लगाई थी।
पहुँच कर हर मंज़िल पर, एक नई मंज़िल ही पायी थी।।

-AC

why motera stadium is renamed narendra modi stadium

कोशिश .....An Effort by Ankush Chauhan
अहमदाबाद में न सिर्फ देश बल्कि दुनिया का सबसे बड़ा स्टेडियम बना, मगर ये अपने नाम की वजह से विवादों में आ गया  है क्योंकि इस सबसे बड़े क्रिकेट स्टेडियम का नाम नरेंद्र मोदी स्टेडियम रखा गया है। इसे अब तक सरदार पटेल स्टेडियम या मोटेरा स्टेडियम के नाम से जाना जाता था। इसे पीएम मोदी का ड्रीम प्रोजेक्ट बताया जा रहा है जिस कारण इसका नाम पीएम मोदी के नाम पर नरेंद्र मोदी स्टेडियम रखा गया है। इस तरह किसी पीएम का अपने ही नाम पर किसी देश की धरोहर का नाम रख लेना कहा तक सही है कहा तक गलत ये तो हम नही कह सकते वैसा ऐसा पहली बार तो नही हुआ हमारे देश मे तो पीएम पहले भी अपने नाम पर चौक का नाम या खुद को भारत रत्न भी देने का काम कर चुके है 

लेकिन सिर्फ विवाद यही तक नही इसमें विवाद का एक और कारण इसमें बने दो पवेलियन का नाम देश के दो बड़े उधोगपति के नाम पर रखना भी है लेकिन ये भी कोई नई बात नही। खैर छोड़िये वो सब अलग मामले है हम इन विवादों में नही पड़ना चाहते । 

हम आपको यह बताना चाहते है कि यह देश ही नही दुनिया का सबसे बड़ा स्टेडियम है साथ ही यहाँ 1,32,000 लोगों के बैठने की क्षमता है. 2020 में तैयार हुए इस स्टेडियम को बनाने में करीब 800 करोड़ रुपये (यानी 110 मिलियन अमेरिकी डॉलर ) का खर्च आया। अहमदाबाद का यह स्टेडियम 63 एकड़ में फैला हुआ है और इस स्टेडियम में 76 कॉरपोरेट बॉक्स, चार ड्रेसिंग रूम के अलावा तीन प्रैक्टिस ग्राउंड भी हैं. एक साथ चार ड्रेसिंग रूम वाला यह दुनिया का पहला स्टेडियम है. इसके साथ ही वहाँ बनने वाला यह एक क्रिकेट स्टेडियम ही नही है यहाँ पूरा स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स है जिसका नाम सरदार पटेल स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स है इसे ओलम्पिक की दृष्टि से सभी खेलो के आयोजन की क्षमता के लिये तैयार करने की योजना है आज तक हमारे देश मे ओलम्पिक के लायक कोई भी स्टेडियम नही था जहाँ सभी प्रकार की सुविधाएं हो। सरकार द्वारा कहा जा रहा है कि यहाँ इस तरह की सुविधा कर दी है कि 6 महीने में ओलंपिक, एशियाड और कॉमनवेल्थ जैसे खेलों का आयोजन कर सकता है. और अहमदाबाद को अब स्पोर्ट्स सिटी के रूप में जाना जाएगा।

इन सब सुविधाओं से पूर्ण किसी परिसर को बनाना तो बड़ा कार्य है ही मगर उससे बड़ा कार्य है उसका रख रखाव जिसका ध्यान रखना बहुत जरूरी है साथ ही जरूरी है इसका सही सदुपयोग ताकि इसका लाभ देश को मिल सके और देश मे विभन्न खेलो को बढ़ाने सहायता मिले कही ऐसा न हो के ये देश के चुनावी कार्येक्रम का ही हिस्सा बन कर राह जाये। इसकी असली सार्थकता तभी है जब ये देश मे खेलो के विकास में अपनी भूमिका निभाये।

और जहाँ तक बात है नाम की तो स्वयं के नाम पर किसी भी योजना या धरोहर को बनाना सही परंपरा नही है और इसका दोषी कोई एक नही है क्योंकि सभी ने अपने नामो पर जाने क्या क्या किया है खुद को पुरस्कार देना या खुद के नाम पर चौक बनना , योजनाये बनाना इसकी तो एक परम्परा सी बन गयी है लगता है सब परंपरा को ही निभा रहे है।
और किसी ने कहा है नाम मे क्या रखा है  मगर राजनीति में तो नाम मे सब है क्योंकि कुछ लोगो की तो राजनीति ही उनके नाम पर ही टिकी है । 

मैं किसान हू कोई मेरी भी सुनो

कोशिश .....An Effort by Ankush Chauhan


किसान के लिए लड़ कौन रहा है किसान तो बस मोहरा है इस रजनीतिक लड़ाई का और पीसना भी उसी को है इस लड़ाई में 
ना तो सरकार ने कानून बनाने से पहले किसान  के हर हित का सोचा, ना आज उसकी लड़ाई लड़ने का ढोंग करने  वाले सोच रहे है।
कानून में खामिया है वो तो सविधान में भी थी उसे तो हमने रद्द नही किया समय समय पर जरूरत के हिसाब से उसमे संशोधन किये। अगर ये नेता भी किसान के सच्चे हितेषी होते तो ये इस बात पर चर्चा करते के कानून में क्या होना चाहिये या क्या नही होना चाहिये जो कमियां है उस पर बात करते , मगर मकसद तो बस राजनीतिक रोटियां है।
और इन राजनीतिक गिद्दों का मंडराना भी दिखा रहा है के ये माहौल खराब कर अपनी रोटियां सेंकने के लिए मंडरा रहे हैं।
आज अगर कानून ज्यो का त्यों रहता है या रद्द हो जाता है दोनों परिस्थितियों में नुकसान तो किसान का ही है। वो किसान जिसका घर ही खेती से चलता है खेती जिसकी रोजी रोटी है। 
उनका क्या बिगड़ेगा जिनकी रोटी उनकी राजनीति की दुकान से आती है।
इससे बड़े दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है के लोगो मुद्दों का विरोध और समर्थन भी ये देखकर करते है के कौनसी पार्टी पक्ष में है कौन इसके विपक्ष में। लोगो को मुद्दों से कोई मतलब नही , सिर्फ अपने नेताओं की गुलामी करनी है। गुलामी का स्तर ये है के एक किसान को आतंकवादी कहने से और गालिया देने से भी नही चूक रहा और दूसरा मुद्दों से भटके एक राजनीतिक आंदोलन का समर्थन कर रहा है क्योंकि दोनों के आकाओ का यही आदेश है।
और किसानों के नाम पर छिड़ी इस जंग में पीस किसान रहा है।मगर क्या फर्क पड़ता है वो तो सदियों से ये झेलता आया है वो तो हर साल अपनी फसल को लेकर मंडियों के चक्कर लगाता है और बिचौलियों की मिन्नते करता है, वो तो हर साल अपने गन्ने के पेमेंट का इंतजार करता है, वो बिचौलियों द्वारा उसकी पर्ची कटवा देने पर उसी को अपना गन्ना आधा पौन दाम में देकर आता है। वो अनाज की लागत भी वसूल न होने पर भी उसे बेचने पर मजबूर होता है और फिर भूख से लड़ता अगली फसल का इंतजार करता है। वो कभी चिलमिलती धूप में पसीना बहता है तो कभी कड़कती सर्दी में आधी रात खेत मे बारी का इंतजार कर पानी देकर आता है।
वो देखता है उन राजनेताओं को जो उसके नाम पर राजनीति करते है और महलो में रहकर शकुन की जिंदगी बिताते हैं।
और वो दिन रात एक करके भी रूखी सुखी खाकर मुश्किल से अपने बच्चो को पढ़ाता और अपने घर को पक्का कर पाता है।
डॉक्टर अपने बच्चे को डॉक्टर बनाना चाहता है, नेता बच्चे को नेता , अभिनेता बच्चे को अभिनेता, किसान नेता के बच्चे किसान नेता बनते है पर जिस किसान के इस देश मे इतने चर्चे है  वो नही चाहता के उसके बच्चे किसान बने । 
क्योकि उसका दर्द ना तों कोई देख सकता है ना ही कोई समझ सकता है, 
जय जवान जय किसान का नारा भी सिर्फ भाषणों तक ही सीमित है क्योंकि किसान को ना तो वो सुविधा मिलती है ना ही सम्मान।
खेत मे काम करते सिर्फ उसके हाथों की रेखाये ही नही मिटती उसकी किस्मत की रेखाये भी मिट जाती है। उसके पैरों की दरारे कब सूखती जमीन से भी गहरी हो जाती है वो खुद भी समझ नही पता।
और आज जब वो देश की इन परिस्थितियों को देखता होगा तो सोचता तो होगा क्यो ये लड़ाई सिर्फ उसके नाम पर है उसके लिये नही?
-AC

अयोध्या का फैसला

कोशिश .....An Effort by Ankush Chauhan
ये कहानी है अयोध्या के फैसले की आज अयोध्या में भगवान राम का मन्दिर भी जल्द बन जायेगा मगर ये कहानी है तब की जब फैसला अदालत में था।
आज अयोध्या पर फैसला उच्चतम न्यायलय के समक्ष है कभी इसी अयोध्या नगरी के समक्ष सती नारी सीता का फैसला था। कहा जाता है के अग्नि में तप कर सोना कुन्दन  बन जाता है लेकिन तब नारी अग्नि परीक्षा देकर भी अपने सतित्व का प्रमाण नहीं दे पायी। 
जिन राम के मन्दिर के लिए आज मामला न्यायाधीश के समक्ष है तब वो राम स्वयं न्यायाधीश होकर भी न्याय ना कर सके। मगर शायद वो निर्णय ना तो उस राजा के लिए आसान रहा होगा ना ही उस पति के लिए। वो निर्णय उस न्यायशील राजा का न्याय था या उनके द्वारा भूल वश किया गया अन्याय। 
आज कलयुग में भी न्यायालय साक्ष्य , गवाह मांगता है बड़े से बड़े दोषी को भी अपना पक्ष रखने का अवसर देता है परन्तु तब न तो किसी ने उस नारी का पक्ष सुना और साथ ही उस नारी के सभी साक्ष्यों को भी नज़रअंदाज़ किया गया। एक आक्षेप जनमत पर भारी क्यों था सवाल आसान है परन्तु निर्णय आसान न था। 
सवाल जितना सरल दिखता है निर्णय उतना ही जटिल था वो तब  भी उतना ही जटिल था और आज भी। क्योकि बात सिर्फ एक निर्णय की नही थी जो कुछ साक्ष्यों के आधार पर ले लिया जाए बात उस परम्परा की थी जो सदियों तक आने वाली पीढ़ियों का मार्गदर्शन करें।
राम ने अपना राजधर्म निभाया सीता ने पतिव्रत धर्म और लव कुश ने अयोध्या नगरी में न्याय की याचना कर अपना पुत्रवत धर्म और आज फैसला करना था अयोध्या को।
मगर फैसला तो तब भी अयोध्या ने ही किया था जिसने राजा राम को ऐसा निर्णय करने पर विवश किया जिसने न सिर्फ राम को उनकी अर्धागिनी से अलग किया बल्कि एक पतिव्रता, देवी स्वरूप नारी को फिर से वनों की ठोकर खाने पर मजबूर कर दिया । हा फिर से क्योकि वो पहले भी तो 14 साल का वनवास काट कर आई थी जो उसके पति को मिला था उसने वनवास में अपने पति का साथ दिया मगर आज पति ने उसका साथ क्यो नही दिया ऐसी क्या मजबूरी थी उस पति की ?
यह कहानी किसी साधारण नारी की नही यह तो उस नारी की गाथा है जो एक राजा की पुत्री थी और उसी अयोध्या के राजा की पत्नी मगर कहते है ना एक व्यक्ति राजा बनने के बाद पहले एक राजा होता है फिर पुत्र, पिता या पति । उसके लिए राजधर्म ही सर्वोपरि होता है और होना भी चाहिए क्योकि राजा को तो ईश्वर का रूप माना जाता है और ईश्वर के लिये तो सभी एक समान होते है।इसलिये राजा के लिये भी प्रजा की हर एक आवाज़ महत्वपूर्ण होती है। इसलिये प्रजा में उठी वो आवाज़ उस राजा के लिए भी मत्त्वपूर्ण थी , वो आवाज़ जिसने जिसने उस सती नारी पर मिथ्या दोष मढ़े और उस नारी को वन में बेसहारा छोड़ने का दंड मिला। हाँ दण्ड ही तो था क्योंकि न्याय तो किसी के साथ हुआ ही नही ना उस नारी के साथ ना उसके पति के साथ।
आज उसका पति , राजसिंहासन पर अपने राजधर्म का पालन कर रहा है और वो नारी राजाज्ञा और पत्नीव्रत धर्म का। वो चहती तो इस अन्याय का विरोध कर सकती थी, वो चाहती तो उस नगरी और पति को छोड़ अपने पिता के घर भी जा सकती थी परन्तु उसके लिए अपने सुखों से ज्यादा पति का सम्मान महत्वपूर्ण था। इसलिये वो वन को चली गयी सब अपनो से मुख मोड़कर सब रिश्तों को तोड़ कर।
उस वन में उस नारी को आश्रय दिया एक महऋषि ने मगर वो नारी वहाँ भी बिना किसी पर आश्रित हुए स्वयं का जीवनयापन करती है अपने दो पुत्रों को जाम दे उनका लालन पालन कर उन्हें स्वाभिमान से जीना सिखाती है।
और एक दिन वो बालक अपनी माता की कथा जान पहुच जाते है उसी अयोध्या नगरी की गलियों में , उस नारी को न्याय दिलाने के लिये। और नियति का पहिया फिर ले आता है उस नारी को अयोध्या में उसी राजा, न्यायाधीश के समक्ष और फिर न्याय करना है उस अयोध्या को और एक बार फिर आना है अयोध्या का फैसला।
मगर क्या अर्थ है उस न्याय का , क्या अर्थ है उस फैसले का , राजा का धर्म है वो प्रजा में विरोध की एक भी आवाज़ को अनसुना ना करे मगर क्या एक आवाज़ के लिये बाकी सभी आवाज़ों को अनसुना कर देना धर्म है? खैर राजा अपना राजधर्म निभा रहा है और उस नारी को फिर से राजदरबार में बुला रहा है। उस नारी का धर्म है के उसके पति की कृति बनी रहे इसलिए वो फिर उस राजदरबार में उपस्थित है। अब फैसला अयोध्या को करना है उस प्रजा को करना है के क्या सही क्या गलत।

कैसे बनेगा आत्मनिर्भर भारत।

कोशिश .....An Effort by Ankush Chauhan
आज सरकार हो या जनता , आम हो या खास हर कोई आत्मनिर्भर भारत की बात कर रहा है। और पड़ोसी देश चीन से बढ़ी तनातनी ने आत्मनिर्भर भारत की इस आवाज को और बल दिया है। चीन के बाद विश्व का दूसरा सबसे अधिक जनसँख्या वाला देश भारत ही है। इसलिये भारत एक बहुत बड़ा बाजार भी है। मगर अपने देश की इस आबादी को सिर्फ बाजार बना कर रखना देश की अर्थव्यवस्था के लिये अच्छा नही है । देश हित इसी में है के देश की इस आबादी को अपनी ताकत बना कर देश मे उत्पादन को बढ़ाया जाय जिससे देश मे विदेशो से होने वाले आयात को कम किया जाये ताकि हम अपने देश की जरूरतों के लिए चीन या किसी अन्य देश पर निर्भर न रहे साथ ही देश मे रोजगार को भी बढ़ाया जा सके और आत्मनिर्भर भारत का निर्माण हो सके।
मगर ये जितना आसान दिखता है क्या उतना ही आसान है?  आत्मनिर्भर भारत का सपना ऐसा सपना है जिसे सिर्फ सरकार पूरा नही कर सकती ना ही सिर्फ जनता अकेले आत्मनिर्भर भारत बना सकती है। आत्मनिर्भर भारत का सपना एक ऐसा सपना है जिसे देश की जनता और सरकार दोनों के सहयोग से चरणबद्ध तरीके से पूरा किया जा सकता है।
आत्मनिर्भर भारत के सपने को पूरे करने के लिए पहला कदम तो यही है कि देश की जनता जहाँ तक सम्भव हो स्वदेशी उत्पादों का उपयोग करे। साथ ही व्यापारी वर्ग को भी इसमें सहयोग करते हुए अच्छे स्वदेशी उत्पादों को ग्राहकों तक पहुचाने में सहयोग करना चाहिये।  ग्रहक और व्यपारियो दोनों को चाहिए के वो थोड़े से फायदे के लिए विदेशी खासकर चीनी उत्पाद को ना अपनाये। अगर हम देश मे बने उत्पादों को बढ़ावा देगे तो मांग बढ़ने से धीरे धीरे उत्पादन बढ़ने के साथ उनकी कीमतों में भी कमी आ सकती है। साथ ही विदेशी आयात पर निर्भरता कम होगी तथा देश मे उत्पादन बढ़ने से रोजगार के अवसर भी बढेगे तथा ये आत्मनिर्भर भारत की और एक कदम होगा।
दूसरा कदम सरकार को उठाना होगा सरकार को चाहिए कि सरकार देश की छोटी बड़ी कंपनियों को बढ़ावा दे उन्हें फलने फूलने के अवसर प्रदान करे।  गांव, देहात , कस्बे  और शहर में मौजूद छोटे छोटे उद्योगों और व्यपार को बाजार मुहैया करना होगा। जिला स्तर पर व्यपार सहयोग केंद्र बनने चाहिए जो नये और छोटे व्यपारियो / उधोगो को तकनीकी और उनके क्षेत्र में उपलब्ध उधोगो के अवसर के साथ, व्यपार के पंजीकरण, आवश्यक कानूनी प्रक्रिया के साथ कच्चे उत्पाद से लेकर , बाजार तक कि जानकारी उपलब्ध कराए।
एक राष्ट्रीय स्तर का डेटा बेस बने जो अलग अलग उत्पादों की देश - विदेश में मांग और भारत मे उसके उत्पादन का स्तर बात सके। ताकि मांग और उत्पादन के बीच के अन्तर को समझ कर सही अवसर को पहचाना जा सके।
विदेश से आयात होने वाले उत्पादों के देश मे निर्माण के लिए उचित व्यवस्था बनाई जाय देश मे छोटे स्तर पर बन सकने वाले उत्पादों के लिए जिला स्तर पर प्रशिक्षण की व्यवस्था हो ताकि लोग उन रोजगारो को चुन सके।
देश के बड़े उधोगपतियों को भी आत्मनिर्भर भारत मे अपना सहयोग करना होगा उन्हें सिर्फ बड़े मुनाफे के उधोगो में ही निवेश न कर ऐसे उधोग भी प्रारंभ करने चाहिए जो देश में आयात को घटाने में मदद कर सके ।
साथ ही उन्हें देश के छोटे छोटे कुटीर उधोगो में भी अपना निवेश करना चाहिये ताकि देश के दूर दराज के इलाकों में होने वाले हस्तशिल्प , कुटीर उद्योगों या छोटे स्तर के उधोगो को भी पनपने का मौका मिले।
हमारे देश मे अपार संभावना है बस सही मार्गदर्शन और सहयोग की जरूरत है। देश का हर नागरिक एक साथ आकर आत्मनिर्भर भारत के सपने को पूरा कर सकता है। आज इस आपदा को अवसर में बदले का मौका हमारे पास है आज देश के पास बहुत बड़ा मौका है और माहौल भी है तो हमे इसका सदुपयोग करना चाहिए। इसमे राजनीति से ऊपर उठकर और धर्म , जाति सम्प्रदाय की दीवारों से परे एक भारत के रूप में एक दूसरे का सहयोग करना होगा।
लोकल के लिए वोकल होना होगा एक दूसरे के अच्छे उत्पादों का प्रचार करना होगा और देश के आत्मनिर्भर भारत के सपने को पूरा करना होगा।
-AC

what can help to fight coronavirus

कोशिश .....An Effort by Ankush Chauhan
आज पूरा विश्व कोरोना वायरस से डरा हुआ है। चीन से फैली ये बीमारी आज पूरे विश्व में अपने पैर फैला रही है। कोरोना वायरस ने आज महा मारी का रूप ले लिया है। वैसे तो कोई भी वायरस या बैक्टेरिया हमे तभी प्रभावित करता है जब हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होती है। इसलिये किसी भी रोग या संक्रमण से लड़ने के लिए हमे अपनी रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाना होगा।
यहाँ पर हमें एक चीज को समझना होगा के कपड़े सिलने के लिए सुई , तलवार से अधिक उपयुक्त है क्योंकि सूक्ष्म काम के लिए सूक्ष्म अधिक प्रभावी है उसी सूक्ष्म की शक्ति का उपयोग भारतीय संस्कृति में सदियों से किया जाता रहा है वो सुक्ष्म की शक्ति है यज्ञ। यज्ञ भारतीय परम्परा का अभिन्न अंग है जिसे आधुनिकता की दौड़ में हम भूलते जा रहे हैं हमारे शास्त्रों में ऋषियों ने कहा है
"अयं यज्ञो विश्वस्य भुवनस्य नाभि:"
यानी ये यज्ञ भुवन की नाभि यानी ये यज्ञ इस सृष्टि का आधार बिन्दु है।
प्राचीन भारतीय संस्कृति में हवन से ही दिनचर्या का आरम्भ होता था। यज्ञ की वैज्ञानिकता को कई शोध द्वारा सिद्ध भी किया गया है।
कोरोना वायरस में एक बात समझने की है के ये हमारे श्वसन तंत्र पर असर डालता है और यज्ञ का भी सबसे पहला प्रभाव श्वसन पर ही पड़ता है।
शांतिकुंज हरिद्वार के संस्थापक आचार्य श्री राम शर्मा जी ने रोग प्रतिरोधक क्षमता की वृद्धि के लिए यज्ञ को बहुत उपयोगी बताया है और शांतिकुंज में इस संबंध में कई शोध भी हुए है। और अनेक प्रकार की हवन सामग्रियों को भी बताया है इसमें एक मुख्य सामग्री जिसे सभी रोगों में उत्तम माना जाता है वो इसप्रकार है
अगर, तगर, देवदारु, चन्दन, रक्त चन्दन, गुग्गल, जायफल, लौंग, चिरायता, अश्वगंधा, गिलोय एवम तुलसी इत्यादि को समान मात्रा में। मिलाकर उसमे दसवाँ भाग शक्कर तथा दसवाँ भाग घी मिलाकर प्रतिदिन हवन करें।
इसके अतिरिक्त भी अनेक प्रकार की हवन सामग्री बतायी गयी है परन्तु एक दिन हवन करने से कोई विशेष लाभ होने वाला नही हवन को हमे अपनी दैनिक जीवन का हिस्सा बनाना होगा जिससे वायु शुद्ध होगी तथा हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ेगी।
और हम कोरोना हो या अन्य कोई वायरस उससे लड़कर उसे हरा सकते है।
आज जिस प्रकार कोरोना वायरस फैल रहा है उसे हराने के लिए हमे यज्ञ कीऔर भी ध्यान देनहोगा तथा सरकार को इस ओर विशेष शोध भी करना चाहिए। साथ सही शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने के लिए हमे प्रतिदिन यज्ञ करना चाहिए।  साथ ही सरकार तथा डॉक्टरों द्वारा दिये जा रहे निर्देशो का पालन करना चाहिए तथा साफ सफाई का विशेष ध्यान रखना चाहिए।
जब सब मिलकर प्रयास करेंगे तो हम इस कोरोना वायरस को आसानी से हरा सकते है और फैलने से रोक सकते है।
सबको जागरुक करे और मिलकर कोरोना को हराये।

युवाओ की राष्ट्रनिर्माण में भूमिका

कोशिश .....An Effort by Ankush Chauhan

युवा किसी भी देश का भविष्य है। भारत एक ऐसा देश है जहाँ 65 % आबादी 35 वर्ष से कम है। तो आप समझ सकते है कि इस देश के लिये युवाओं का सही दिशा में कार्ये करना कितना महत्वपूर्ण है।
हमारी सरकारें भी इस बात से भली भांति परिचित है। सरकार का ध्यान भी इस और केंद्रित है कि कैसे युवाओ को आगे लाकर देश को विकास के पथ पर अग्रसर किया जाये।


सरकार द्वारा पेश की गई राष्ट्रीय युवा नीति-2014 का उद्देश्य “युवाओं की क्षमताओं को पहचानना और उसके अनुसार उन्हें अवसर प्रदान कर उन्हें सशक्त बनाना और इसके माध्यम से विश्वभर में भारत को उसका सही स्थान दिलाना है।" ज़िम्मेदार नागरिक के गुण और स्वयंसेवा की भावना उत्पन्न करने के उद्देश्य से युवा मामले विभाग ने विभिन्न कार्यक्रमों को कार्यान्वयित किया है।  भारत सरकार शिक्षा , स्वास्थ्य, कौशल विकास और नियोजन के क्षेत्र में युवा विकास पर लगभग 37,000 करोड़ रु और  इसके अतिरिक्त 55,000 करोड़ रु अन्य योजनाओं पर जिनका अधिकतर लाभार्थी युवा होता पर खर्च करती है। जो कुल मिलाकर लगभग 90,000 करोड़ होता है।
अब हम युवाओ की भी जिम्मेदारी बनती है के हम भी राष्ट्रनिर्माण में अपनी भूमिका सुनिश्चित करे। हमे एक साथ मिलकर राष्ट्र से जुड़े मुद्दों पर चर्चा करनी चाहिये । और हम जिस भी स्तर पर हो जिस भी स्तिथि में हो अपना सहयोग सुनिश्चित करना चाहिये।
आप देश के लिये जो अच्छा कर सकते है अपने स्तर से करने का प्रयास करे और ऐसे लोगो को सहयोग करे जो राष्ट्रनिर्माण में अपनी भूमिका निभा रहे है। अगर हम अपने कार्ये को पूर्ण निष्ठा और ईमानदारी से करे तो ये भी अपने आप मे बहुत बड़ा योगदान होगा। किसी भी राष्ट्रहित के कार्ये को राजनीति के चश्मे से ना देखे। आप किसी भी विचारधारा , पंथ, सम्प्रदाय के हो  राष्ट्र के विषय मे अपने बीच किसी भी मतभेद को ना आने दे। 
अगर सरकार स्वच्छ्ता अभियान चलती है तो ये सोचो के क्या हमारे देश को इसकी जरूरत है क्या हमें स्वच्छ्ता चाहिय अगर हाँ तो उसमें सहयोग करो । ये मत देखो के इसे कौन शुरू कर रहा है। बस ये देखो के ये हमारे देश के लिये अच्छा है या नही।
अपने कर्तव्यों और अधिकारों को समझो और उनका सही से निर्वहन करे। देश के युवाओं को एक सजग, समझदार और जिम्मेदार नागरिक की भूमिका निभानी चाहिय । उसे अपनी जिम्मेदारी जैसे देश को स्वच्छ रखना, ईमानदार नागरिक बनना, न रिश्वत लेने और न ही देना, भ्रस्टाचार का साथ ना देना, सही वोट डालना, सामाजिक सहयोग को बढ़ाना, राष्ट्रहित में कार्ये करना आदि, को समझना चाहिए। अच्छा नागरिक वही है जो स्वयं जिम्मेदार बने और दूसरों को भी प्रेरित करे। युवा शक्ति देश की सबसे बड़ी शक्ति है। अगर युवा अपनी जिम्मेदारी समझेगे तो देश को आगे बढ़ने से कोई नही रोक सकता।
आओ मिलकर साथ चले राष्ट्रनिर्माण में अपना सहयोग दे।
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कर्नाटक में लोकतंत्र की हत्या?

कोशिश .....An Effort by Ankush Chauhan
कर्नाटक में बना राजनेतिक संकट और सत्ता की लड़ाई और खीच तान कोई नई बात तो नही है मगर क्या सत्ता के लिये सवैधानिक पदों का दुरुपयोग और धन बल खरीद फ़रोख क्या ये लोकतंत्र के लिये सही है।क्या ये जो कर रहे है वो राष्ट्रहित में है ये मारामारी जनता की सेवा के लिये तो नही ये तो सिर्फ सत्ता सुख के लिये है। मगर लोकतंत्र का ये रूप लूटतंत्र ज्यादा दिखयी देता है। मगर इसके लिये क्या सिर्फ बीजेपी दोषी है नही इस घटिया राजनीति की नींव कांग्रेस ने ही रखी थी और इसकी शुरुआत तो आज़ादी के बाद बनी पहली नेहरू सरकार से ही शुरू हो चुकी थी। 
कांग्रेस ने गवर्नर के ऑफिस का इस्तेमाल करते हुए विरोधी सरकारों को बर्खास्त करने और विपक्षी दलों को सरकार बनाने से रोकने के कई कुकर्म किए हैं. 

1952 में पहले आम चुनाव के बाद ही राज्यपाल के पद का दुरुपयोग शुरू हो गया. मद्रास (अब तमिलनाडु) में अधिक विधायकों वाले संयुक्त मोर्चे के बजाय कम विधायकों वाली कांग्रेस के नेता सी. राजगोपालाचारी को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया गया जो उस समय विधायक नहीं थे.
भारत में पहली बार कम्युनिस्ट पार्टी की सरकार ईएमएस नम्बूदरीपाद के नेतृत्व में साल 1957 में चुनी गई. लेकिन राज्य में कथित मुक्ति संग्राम के बहाने तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने 1959 में इसे बर्खास्त कर दिया
1980 में इंदिरा गांधी ने जनता सरकारों को बर्खास्त कर दिया. गवर्नरों के माध्यम से अपनी पसंद की सरकार बनवाने का प्रयास केंद्र सरकारें करती रही हैं. संविधान के अनुच्छेद 356 का खुलकर दुरुपयोग किया जाता है.
सन 1992 में प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हाराव राव ने बीजेपी शासित चार राज्यों में सरकारें बर्खास्त कर दी थीं.
कर्नाटक में 1983 में पहली बार जनता पार्टी की सरकार बनी थी. रामकृष्ण हेगड़े जनता पार्टी की सरकार में पहले सीएम थे. इसके बाद अगस्त, 1988 में एसआर बोम्मई कर्नाटक के मुख्यमंत्री बने. राज्य के तत्कालीन राज्यपाल पी वेंकटसुबैया ने 21 अप्रैल, 1989 को बोम्मई सरकार को बर्खास्त कर दिया. सुबैया ने कहा कि बोम्मई सरकार विधानसभा में अपना बहुमत खो चुकी है. बोम्मई ने विधानसभा में बहुमत साबित करने के लिए राज्यपाल से समय मांगा, लेकिन उन्होंने इनकार कर दिया. बोम्मई ने राज्यपाल के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी. फैसला बोम्मई के पक्ष में आया
वर्ष 1979 में हरियाणा में देवीलाल के नेतृत्व में लोकदल की सरकार बनी. 1982 में भजनलाल ने देवीलाल के कई विधायकों को अपने पक्ष में कर लिया. हरियाणा के तत्कालीन राज्यपाल जीडी तवासे ने भजनलाल को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया. राज्यपाल के इस फैसले से नाराज चौधरी देवीलाल ने राजभवन पहुंच कर अपना विरोध जताया था. अपने पक्ष के विधायकों को देवीलाल अपने साथ दिल्ली के एक होटल में ले आए थे, लेकिन ये विधायक यहां से निकलने में कामयाब रहे और भजनलाल ने विधानसभा में अपना बहुमत साबित कर दिया.
ये कुछ उदहारण है समझने के लिये के राजनीति के इस हमाम में सब नंगे है।
राजनीति का ये निचला सत्तर कोई नया नही है । मगर ये देश के लिये अच्छा नही है। क्योकि राजनीति में सत्ता का ये दुरुपयोग कब तानशाही बन जाये कहा नही जा सकता राजनीति की ये सोच ही इमरजेंसी के हालात पैदा करती है । 
मगर क्या है समाधान इस गिरते राजनीतिक स्तर का। क्या जनता के पास कोई अधिकार है या वो सिर्फ वोटबैंक ही है । क्या यही लोकतंत्र है?