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भारतीय दर्शन और आधुनिक विज्ञान

कोशिश .....An Effort by Ankush Chauhan भारतीय दर्शन विश्व के प्राचीनतम दर्शनो में से एक है इसमें अनेक वैज्ञानिक सिंद्धान्तो को प्रतिपादि...

What is freedom , स्वन्त्रता क्या है , कैसे स्वतंत्र होकर जीवन का आनंद ले।

कोशिश .....An Effort by Ankush Chauhan




हम अक्सर देखते है कि आज समाज मे लोग स्वन्त्रता का अर्थ स्वछंदता से लेते है वो अपनी इंद्रियों के सुख के लिए किए गए कार्यो को स्वतंत्रता समझते है, चाहे वो वासनाओ की पूर्ति हो या नाश , व्यसन बुरी आदतें। जबकि ये सब हमारे इन्द्रिय बंधन है आत्मा के मार्गदर्शन में , अंतः मन की आवाज पर समाज, राष्ट्र और स्वयं के सकरात्मक विकास के लिये कार्ये और प्रयास करना ही सच्ची स्वन्त्रता है।
गीता में कहा गया है कर्म करना हमारा अधिकार है फल की इच्छा नही क्योकि कर्म हमारे हाथ मे होता है परन्तु उसका फल उस परम सत्ता के हाथ मे , हमारे अच्छे बुरे सभी कर्मो के आधार पर हमें फल प्राप्त होते है जैसे धरती में बीज बोकर हम अपना कार्ये करते है और वृक्ष पर फल स्वयं आते है, परंतु वो बोये बीज से भिन्न नही होते,  बोया पेड़ बाबुल तो आम कहाँ से होये, ऐसे ही जीवन मे हर फल हमारे कर्मो के अनुसार ही होता है। मुक्ति के साधन कही बाहर नही है, हमारे कर्म , हमारी इच्छाएं ही हमे बंधन में बंधती है और वही मुक्ति का मार्ग । अगर हम निष्काम भाव से कर्म करे और अपनी इच्छाओं को भी काबू में रखे तो वो हमें बंधन में नही फसाती, आंतरिक विजय ही मुक्ति का आधार है , जब हमारा मन हमारी इन्द्रियाँ हमारे वश में होती है , तो ये मुक्ति है और जब हम अपनी इंद्रियों के वश में होते है, तो यह बंधन है।
जब तक हम स्वयं के विषय मे ही सोचते रहेंगे हमे मुक्ति प्राप्त नही हो सकती , परन्तु जब हम स्वयं से पहले दुसरो की सेवा को चुनते है तो हमारा मुक्ति का मार्ग खुल जाता है। जब हम स्वयं के अस्तित्व को भूलकर हर प्राणी , जीव को अपना मानने लगते है तो हमारे ह्र्दय की विशालता सभी बंधनो को तोड़ देती है। ईश्वर ने मनुष्य को विवेकशील बनाया है वह अपने विवेक से इस सृष्टि के रहस्यों को जान सकता है, स्वयं के सही स्वरूप को जान सकता है अपने ज्ञान और विवेक के सहारे ईश्वर को प्राप्त करने के लिये प्रयत्न कर सकता है।
मनुष्य हर कर्म किसी ना किसी उद्देश्य की पूर्ति के लिये करता है यहाँ तक की ईश्वर की स्तुति, आराधना, पूजा मे भी हमारे निजी स्वार्थ छुपे होते है , यही हमारे बन्धन का कारण है जिस दिन हम अपनी इच्छाओं, कामनाओं, आकांक्षाओं से दूर हो जायेगे उसी क्षण हम मुक्त हो जायेगे , हमारे निष्काम कर्म ही हमे मुक्ति दिलायेंगे।
जो मन आया वही करना स्वन्त्रता नही है तब तो आप मन के वशीभूत होकर कार्ये करते है , मन के वशीभूत होकर कभी हम बुरे कार्ये करते है कभी अच्छे, परंतु जब हम केवल मन की ना मानकर वो करते है जो सही है ,जो नीतिगत है तो हम स्वतंत्र हो जाते है।
विवेक के द्वारा अज्ञानता का नाश होता है वही हमे हमारे अज्ञान जनित कर्मो से हमें बचाता है ,बुरी प्रवर्ति, बुरे विचार हमारे मन से ज्ञान के द्वारा नष्ट हो जाते है, तब चित्त अपने मूल रूप में स्तिथ हो जाता है जिसे हम योग की अवस्था कहते है। जब तक कार्ये इच्छा के वशीभूत होकर, अपनी आदतों से मजबूर होकर किये जाते है तब तक हम स्वतंत्र नही हो सकते, किसी को नशे की आदत है, किसी को व्यसनों की ,किसी को चुप रहने की तो किसी को बोलने की उसी के अनुरूप हम हर कार्ये कर रहे है परन्तु जब कार्ये ज्ञान और विवेक के द्वारा सही गलत का निर्णय कर किये जाते है तो हम स्वंतत्र हो जाते है ,विवेक ही मुक्ति का आधार है।
हमारे क्रोध का कारण हमारी इच्छाएं है , जब उनकी पूर्ति में विघ्न पड़ता है तो क्रोध उत्पन्न होता है, अगर जीवन मे संतोष है और कर्म निष्काम भाव से किया जाये तो इच्छओं पर नियंत्रण होता है फिर आने वाली समस्याओं से हम विचलित नही होते , हम अपनी आदतों और इच्छओं के गुलाम नही बनते, हम स्वंतत्र पक्षी की भांति हवा से प्रभावित हुए बिना उड़ते रहते है। 
फल की इच्छा से किया गया हर कार्ये बंधन का कारण है यहाँ तक कि मुक्ति की इच्छा से किया गया प्रयास भी बंधन ही है,जब हम कर्म के फल के विचार को अपने मन से अलग कर लेंगे तो वह निष्काम कर्म होगा। निष्काम कर्म के साथ ज्ञान ,ध्यान और तप हमारे पूर्व कर्मो के संस्कार को भस्म करेंगे जब हमारे सभी कर्मो के संस्कार मिट जायेगे तो हम स्वंतत्र हो जायेगे , हम मुक्त हो जायेगे और हमारा जीवन आनंद में व्यतीत होगा । 

-AC

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