कोशिश .....An Effort by Ankush Chauhan
राजनीति , जनता और मेरा भारत
देख के तेरी हालत , आँखों से आसू बहते है। …
चुप चाप बैठे घरो में हम , सब कुछ सहते जाते है। ।
अन्नदाता तेरी धरती का -2 , भूख से यहाँ पे मरता है। …
महल बनाने वाले मजदूर यहाँ, बिन छत के रात बिताते है
चुप चाप बैठे घरो में हम , सब कुछ सहते जाते है। ।
आबरू बेटी की यहाँ सडको पे लुटी जाती है…
गुनेह्गारो की भी यहाँ पर, जाति पूछी जाती है। ।
देश का बच्चा यहाँ , बीमारी से मरता है। ….
और आतंकी यहाँ मुफ्त इलाज करवाने आते है। ।
चुप चाप बैठे घरो में हम, सब कुछ सहते जाते है। ।
चुनाव का आये मौसम तो, नेता यहाँ मंडराते है। …
नये नये घोषणाओ के पिटारे, खुलते जाते है। …
बयानों की नदिया में ये सब , देशभक्त बन जाते है।
जीत कि खातिर हथकंडे ये, नये नये अपनाते है
झूठ के बांध पुलिंदे ,-2 जनता को मुर्ख बनाते है.
चुप चाप बैठे घरो में हम, सब कुछ सहते जाते है।।
पहन चोला आम आदमी का, जनता को मुर्ख बनाते है।
कोई अपना हाथ, आम आदमी के साथ बताते है।
चोर चोर चिल्ला के ये, जनता को उल्लू बनाते है।
मीडिया से करके सेटिंग, हीरो खुदको बनाते है।
जनता को करके भ्रमित ये, वोट हमारे पाते है।
चुप चाप बैठे घरो में हम सब कुछ सहते जाते है।।
कर के वादा आरक्षण का, जातियो को साथ ये लाते है।
कभी मुफ्त लैपटॉप , टीवी , जाने क्या क्या दे जाते है।
फिर बना सरकार ये , देश को लूट के खाते है
चुनाव में इनके माया जाल में, हम फंस जाते है ,
फिर महगाई और देख भ्रस्टाचार , बहुत हम पछताते है.
चुप चाप बैठे घरो में हम, सब कुछ सहते जाते है।।
-AC
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