Featured post

भारतीय दर्शन और आधुनिक विज्ञान

कोशिश .....An Effort by Ankush Chauhan भारतीय दर्शन विश्व के प्राचीनतम दर्शनो में से एक है इसमें अनेक वैज्ञानिक सिंद्धान्तो को प्रतिपादि...

Kumbh mela haridwar 2021, हरिद्वार कुम्भ मेला 2021

कोशिश .....An Effort by Ankush Chauhan


हरिद्वार कुम्भ मेला 2021 के लिये पूरी तरह तैयार है हर तरफ कुम्भ की अनुपम छटा फैली है हर तरफ सुंदर नज़ारे और मनमोहक नज़ारे है शहर की दीवार रंगबिरंगी कलाकृतियों से सजी है जो हमारी संस्कृति को समेटे हुए है।



वैसे तो हरिद्वार में कुम्भ मेला हर 12 साल के बाद होता है, लेकिन इस बार यह ग्रह योग के चलते 11 साल में ही हो रहा है। इसलिये हरिद्वार में पड़ने वाला यह कुम्भ इस 1 साल पहले 2021 में हो रहा है।



पौराणिक कथाओं के अनुसार समुद्र मंथन के समय एक अमृत कलश और विष निकला था  जिसमे अमृत देवताओ के हिस्से और विष राक्षस के हिस्से में आया था विष को तो भगवान शिव ने पीकर पूरी सृष्टि की रक्षा की थी। शिव के उस रूप को समर्पित एक मंदिर नीलकंठ महादेव का मंदिर भी हरिद्वार से कुछ दूरी पर ऋषिकेश में नीलकंठ पर्वत पर स्तिथ है।
समुद्र मंथन में निकले उस अमृत की कुछ बूंदे देश के चार स्थानों पर गिरी और उन चारों स्थानों हरिद्वार, प्रयागराज, नासिक और उज्जैन। चारों नगरों में  कुंभ का आयोजन होता है और यह आयोजन प्रत्येक नगर में ग्रहों की स्थिति विशेष में होता  है। जैसे कुम्भ राशि में बृहस्पति का प्रवेश होने पर एवं मेष राशि में सूर्य का प्रवेश होने पर कुम्भ का पर्व हरिद्वार में आयोजित किया जाता है। और यह सयोग ही इस बार 2021 में ही पड़ रहा है। इसी लिये कुम्भ जो 12 साल में होता था इस बार 11 साल में ही हो रहा है इससे पहले 2010 में हरिद्वार में कुम्भ का आयोजन किया गया था।



कुंभ में नागा साधुओं और अखाड़ो का जिक्र न हो तो कुम्भ अधूरा है कहा जाता है के ये अखाड़े धर्म रक्षा सेना या संगठन है जो सनातन धर्म की रक्षा के लिए गठित किए गए हैं। विधर्मियों से अपने धर्म, धर्मस्थल, धर्मग्रंथ, धर्म संस्कृति और धार्मिक परंपराओं की रक्षा के लिए किसी जमाने में संतों ने मिलकर एक सेना का गठन किया था। वही सेना आज अखाड़ों के रूप में जानी जाती  है।

कहा जाता है के आदिशंकराचार्य ने देश के चार कोनों में चार मठों और दसनामी संप्रदाय की स्थापना की। बाद में इन्हीं दसनामी संन्यासियों के अनेक अखाड़े प्रसिद्ध हुए,
देश मे धर्म रक्षा के लिए बने प्रमुख अखाड़ो में आवाह्‍न अखाड़ा,  अटल अखाड़ा, महानिर्वाणी अखाड़ा,आनंद अखाड़ा, निरंजनी अखाड़ा और जूना अखाड़े का उल्लेख मिलता है। बाद में भक्तिकाल में इन शैव दसनामी संन्यासियों की तरह रामभक्त वैष्णव साधुओं के भी संगठन बनें, जिन्हें उन्होंने अणी नाम दिया। अणी का अर्थ होता है सेना। यानी शैव साधुओं की ही तरह इन वैष्णव बैरागी साधुओं के भी धर्म रक्षा के लिए अखाड़े बनें। जिनमे मुख्य
श्रीपंचायती अखाड़ा बड़ा उदासीन, श्री पंचायती निर्मल अखाड़ा है।
विभिन्न धार्मिक समागमों और खासकर कुंभ मेलों के अवसर पर साधु संगतों के बीच समन्वय के लिए अखाड़ा परिषद की स्थापना की गई, जो सरकार से मान्यता प्राप्त है। इसमें कुल मिलाकर तेरह अखाड़ों को शामिल किया गया है। प्रत्येक कुंभ में शाही स्नान के दौरान इनका क्रम तय है।



हरिद्वार कुंभ का पहला शाही स्नान, महाशिवरात्रि (Mahashivratri) के अवसर पर 11 मार्च को होगा. 11 मार्च शिवरात्रि को पहले शाही स्नान पर संन्यासियों के सात और 27 अप्रैल वैशाख पूर्णिमा पर बैरागी अणियों के तीन अखाड़े कुंभ में स्नान करते हैं. 12 अप्रैल सोमवती अमावस्या और 14 अप्रैल मेष संक्रांति के मुख्य शाही स्नान पर सभी 13 अखाड़ों का हरिद्वार कुंभ में स्नान (Kumbh Snan) होगा.

कोरना महामारी के दौर में आयोजित होने वाला यह कुंभ मेला (Kumbh Mela) बीते अन्य कुंभ मेलों से काफी अलग होगा. इस बार कुंभ मेले के दौरान किसी भी स्थान पर संगठित रूप से भजन एवं भण्डारे के की मनाही रहेगी. उत्तराखंड सरकार ने कोरोना संक्रमण (Corona Virus) को रोकने हेतु यह नए नियम जारी किए हैं. कोरोना के कारण केन्द्र सरकार और राज्य सरकार द्वारा कुछ गाइडलाइन जारी की गई है जिनका पालन करना अनिवार्य है। सरकार की गाइडलाइन के अनुरूप ही अपना हरिद्वार यात्रा का पालन बनाये।
हरिद्वार आने के लिए आप ट्रैन या बस द्वारा सीधे हरिद्वार शहर भी आ सकते है या हवाई मार्ग से जोलीग्रांट हवाई अड्डा आकर वह से टैक्सी द्वारा हरिद्वार आसानी से पहुच सकते है । हरिद्वार में आपके ठहरने के लिए कई बड़े छोटे होटल और धर्मशाला आसानी से उपलब्ध है फिर भी आसानी के लिए पहले से बुकिंग करके रखें तो ज्यादा सही होगा क्योंकि कुम्भ में काफी भीड़ भी होती है।
अगर आप कही दूर से आ रहे है तो कुंभ में हरिद्वार के साथ आसपास के क्षेत्र ऋषिकेश या देहरादून भी घूम सकते है या थोड़ा और समय निकाल कर उत्तराखंड की पहाड़ी वादियों का भी लुफ्त उठा सकते है।

-AC



कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें