इस लेख का उद्देश्य किसी की भावनाओ को ठेस पहुँचाना नहीं है यदि किसी की भावनाओ को कोई ठेस पहुँचती है तो मैं उसके लिए पहले ही क्षमा माँगता हूँ। परन्तु इस विषय पर सभी को गंभीरता से विचार करने की जरूरत है और विचार भी खुले मन से , किसी भी तरह के पूर्वाग्रह से या रूढ़िवादी सोच के साथ सत्य को जानना सम्भव नहीं।
हम सभी लोग किसी ना किसी धर्म को मानते है जबकि धर्म मानने का विषय है ही नहीं , धर्म तो जानने का विषय है , आप माने या न माने धर्म तो धर्म ही रहेगा , वह तो अटल है, वही सत्य है, हमे तो सिर्फ उस सत्य को जानना है जिस भी रूप में वो है, उसे पहचानना है।
धर्म का उद्देश्य मानवता का कल्याण है और धर्म देश, काल से परे है ,धर्म समय और स्थान से नही बदलता ,जो कल धर्म था वो आज भी धर्म है और कल भी रहेगा और वो हर स्थान पर रहेगा, सत्य बोलना, चोरी न करना अगर धर्म है तो वो हर कालखंड में हर स्थान पर है , धर्म उदार है, विश्वव्यापक है, असीम है जो संकीर्णताओं में बंधा है वो कल्याण नहीं कर सकता और जो कल्याण नहीं कर सकता वो धर्म नहीं हो सकता , धर्म अभय देता है यानी आपको भय मुक्त करता है जो डराए, धमकाए , भय दिखाए वो धर्म नहीं अधर्म है, धर्म सम्पूर्ण मानव जाति के लिए एक सामान है , वो स्त्री पुरुष सभी के लिए सामान है जो भेद करे वो धर्म नहीं अधर्म है।
यदि हम धर्म को सही अर्थो में समझना चाहे तो हमे पीछे मुड़कर कर देखना होगा यदि हम हमारे प्राचीन इतिहास की घटनाओं को देखे तो उनमे महाभारत के युद्ध को धर्मयुद्ध कहा गया है जबकि उसमे लड़ने वाले दोनों एक ही परिवार के थे तो सीधी सी बात है जो निति के साथ है वो धर्म के साथ है जो अनीति के साथ है वो अधर्म के साथ है , ऐसे ही दूसरी घटना में हिरणाकश्यप को देखे तो वो लोगो को मारकर , डराकर स्वयं की पूजा का दबाव डालता और खुद को ईश्वर बताता अगर किसी को तलवार की नौक पर अपनी पूजा, आराधना , इबादत करवानी पड रही है तो वो ईश्वर, भगवान , गॉड , खुदा कुछ नहीं वो सिर्फ शैतान है , दानव है , राक्षस है। धर्म वो नहीं जो बहार से थोपा जाये , धर्म तो स्वयं मनुष्य के ह्रदय से बहार निकलता है, आपके गुण, कर्म, विचार स्वयं आपको पूजनीय बना देते है।
ईश्वर तो जन्म मृत्यु के बंधन से मुक्त है परन्तु फिर भी राम, कृष्ण, बुद्ध, गुरु नानक, महावीर आदि और भी अनेक महापुरुष अपने कार्यों और विचारों से ईश्वर के तुल्य पूजनीय हुए है कोई भी धर्म के मार्ग पर चलते हुए देवत्व और ईश्वरत्व को प्राप्त कर सकता है।
धर्म का संबंध ईश्वर से है और ईश्वर आदि है अनंत है , जब कुछ नहीं तब भी ईश्वर है, जहाँ सब कुछ है वहाँ भी ईश्वर है ईश्वर अलग अलग नहीं हो सकते इसका ईश्वर , उसका ईश्वर, मेरा ईश्वर ,तेरा ईश्वर यह संभव नहीं ईश्वर तो सिर्फ एक है वो सर्वव्यापी है , वही इस सृष्टि का निर्माता है , अलग अलग लोगों के विचारों की भिन्नता के कारण लोगों ने अलग अलग सम्प्रदाय बना लिए , रीति रिवाज , कर्मकांड की विभिन्नता के कारण सबको अलग अलग धर्म मान लिया और फिर अपने सम्प्रदायों की संख्या बढ़ाने के लिए कभी लोगो को लालच देकर, तो कभी बहला फुसलाकर मुर्ख बनाकर तो कभी जोर जबरदस्ती से, डरा धमकाकर तलवार की नौक पर अत्याचार करने लगे आप स्वयं सोचिये क्या ये धर्म हो सकता है , जरा एक बार शान्त मन से अपनी अंतरात्मा की आवाज़ सुनिए , सोचोये क्या सदियों से जो चला आ रहा है वो सही है।
जैसे की पहले भी कहा है के धर्म बहार से नहीं थोपा जा सकता , वो तो आपके अंदर से प्रकट होगा अगर आप सही से चिंतन करे , शांत मन से अपनी अंतरात्मा की आवाज को सुने जब आप सही गलत का फर्क समझेंगे तो स्वयं ही धर्म की रक्षा के लिए खड़े हो जायगे, लोगो को अधर्म का मार्ग छोड़कर धर्म के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करेगे , मै आपको धर्म नहीं सीखा सकता , मै क्या कोई भी नहीं सीखा सकता ये तो आपको स्वयं जानना है आओ धर्म को जाने और धर्म के मार्ग पर चले।
-AC
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