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भारतीय दर्शन और आधुनिक विज्ञान

कोशिश .....An Effort by Ankush Chauhan भारतीय दर्शन विश्व के प्राचीनतम दर्शनो में से एक है इसमें अनेक वैज्ञानिक सिंद्धान्तो को प्रतिपादि...

pollution and politics

कोशिश .....An Effort by Ankush Chauhan
ban on crackers, right or wrong

प्रदूषण बड़े शहरों में एक बहुत बडी समस्याओं में एक है इसमें कोई दोराय नही। और पटाखे भी प्रदूषण फैलाते है ये भी सही है वो वायु और ध्वनि दोनों प्रकार का प्रदूषण करते है ये सही है मगर क्या वो सिर्फ कुछ निर्धारित कालखण्ड में ही प्रदूषण करते है अगर नही तो क्यो न उन्हें हमेशा के लिये बैन कर दिया जाये। और क्यो न पूरे देश मे बंद कर दिया जाय। और साथ ही सबसे ज्यादा प्रदूषण तो ये वाहन करते है तो क्यो हम इन वाहनों खासकर डीजल गाड़ियों पर प्रतिबंध लगाने की हिम्मत नहीं कर पा रहे।
 
                                   

अगर बहस प्रदूषण पर है तो होनी भी चाहिये और सभी देश के सभी नागरिकों को इसका स्वागत भी करना चाहिय। क्योकि दिल्ली जैसे शहरों में तो सांस लेना भी भारी है। एक अकड़े के अनुसार दिल्ली विश्व के सबसे ज्यादा प्रदूषण वाले शहरों में से एक है और ये बड़े दूरभाग्य का विषय है के हमारे देश की राजधानी की ये हालात है सुख सुविधओं और मनोरंजन की लालसाओं ने ये स्तिथि पैदा कर दी के आज हम दो कदम के लिये भी गाड़ी लेकर चलते है। मगर एक सच ये भी है के  कोई भी सुविधा या मनोरंजन जीवन से ज्यादा जरूरी नही। और प्रदूषण तो एक बड़ी समस्या है और जिसके बहुत से और भी बड़े कारण है और अगर हम प्रदूषण को लेकर इतना ही सज़ग है तो क्यो नही प्रदूषण के अन्य कारणों पर सख्त कदम उठा पा रहे। क्यो फैक्टरियों से निकलने वाले धुँए पर कोई लगाम लगा पा रहे। 

क्या हम देश हित मे सड़को पर गडियो की संख्या कम करने के लिये कोई सख्त कानून नही  बना सकते। जैसे हर कम्पनी या आफिस को अपने एम्प्लॉय के लिये बस या वेन कंपलसरी कर देनी चाहिए जिससे सब अपनी अपनी गडियो को सड़क पर न लाकर एक कॉमन व्हीकल से आये। साथ ही पब्लिक ट्रांसपोर्ट को भी इतना मजबूत किया जाय के लोगो को इसके इस्तेमाल में सुविधा हो। कूड़े के लगे पहाड़, ये भी तो प्रदूषण करते है इनके निस्तारण का कोई सख्त तरीका क्यो नही लागू किया जाता। 

और हम अति होने पर ही क्यो जागते है जहाँ प्रदूषण की अति हो गयी बस वहाँ अनान फानन में कुछ आदेश दे दो देश को लगे कुछ काम हो रहा है। देश के बाकी हिस्से जहाँ अभी स्तिथि नियंत्रण में है वहाँ भी अभी से कुछ कार्येवाहि क्यो नही करते या वहाँ अभी स्थित के बिगड़ने के इंतजार कर रहे है ? नदियों नालो की स्तिथि तो इतनी बुरी हो चुकी है की कही भी पानी पीने लायक नही। और इसी का फायदा ये बड़ी बड़ी कंपनिया उठा रही है और सड़कों 20-30 रुपये की पानी बोतल और घरों में अपने RO बेच कर मोटा मुनाफा कमा रही है। 

मगर सरकारे नदियों नालो में गिरने वाले नालो पर क्यों कोई सख्त कार्येवाहि नही कर पाती और न ही कोई समाधान निकाल पाती। देश हित की चर्चाओ को धार्मिक रंग मिलान चिन्ता का विषय है मगर इसकी जिम्मेदार सिर्फ जनता है ऐसा नही। वो फैसले भी है जो जनता के मन मे संदेह पैदा करते है साथ ही देश की तुष्टिकरण की राजनीति सबसे ज्यादा जिम्मेदार है। और देश मे धर्म और जातियो के राजनीतिक ठेकेदार सबसे ज्यादा जिम्मेदार है। जिनके कारण  हर मुद्दे पर चर्चा धर्म और जाति तक सिमट कर रह जाती है। अगर कही महिलाओ के शोषण और अधिकारों की बात होती है चाहे मंदिर पे प्रवेश हो या तीन तलाक़ हम हर मुद्दे में हालत यही हैं। आज देश की विडंबना ही यही है कि यहाँ असल मुद्दों पर कभी चर्चा हो ही नही पाती और राजनीति हमेशा हर मुद्दे पर हावी हो जाती है और शायद कभी निष्पक्षता से कोई फैसले भी नही होते। अभी हाल ही के पटाखे बैन के मुद्दे पर ही अगर फैसला हमेशा के लिये पटाखे बैन का होता और फैसला भी एक दो महीने पहले होता तो शायद इतना विवाद न होता क्योंकि कुछ दिनों के बैन से तो लोगो का पूछना लाज़मी है के क्या बाकी समय पटाखे ऑक्सीजन देते है । ये तो हमेशा ही नुकसानदायक है तो क्यो ना उन्हें हमेशा के लिये बैन कर दिया जाय। और वो भी पूरे देश मे, साथ ही डीजल गाड़िया भी बंद कर दी जाए पूरे देश मे ताकि जिन शहरों में अभी स्तिथि सही है वहाँ सही बानी रहे। और जनता को भी कुछ निर्णय खुद लेने चाहिय के उनके लिये क्या ज्यादा महत्वपूर्ण है मनोरंजन , सुविधा या आने वाली पीढ़ी का जीवन। तो सोच समझ कर गाड़ी , एयरकंडीशनर  आदि का इस्तेमाल करे 
प्रदूषण के आकड़ो की रिपोर्ट पर्टिकुलेट मैटर 2.5(पीएम) के आधार पर बनाई है। पीएम हवा में फैले सूक्ष्म खतरनाक कण हैं जो हमारे फेफड़ों में भी प्रवेश कर जाते हैं। 2.5 माइक्रोग्राम से छोटे इन कणों को पर्टिकुलेट मैटर 2.5 या पीएम 2.5 कहा जाता है। प्रत्येक क्यूबिक मीटर हवा में पीएम 2.5 कणों का स्तर जानकर प्रदूषण का आकलन किया जाता है। 1.4 करोड़ से अधिक की जनसंख्या वाले चयनित मेगा शहरों के नमूने में नई दिल्ली सबसे प्रदूषित है।
 दिल्ली सरकार पार्को के रखरखाव पर सालाना करोड़ों रुपये खर्च करने के बावजूद सूरत व सीरत नहीं बदली। आलम यह है कि जिन पार्को में लोगों को सैर सपाटे करना चाहिए, वहां गाड़ियों की पार्किंग हो रही है तो कहीं पूरा पार्क ही वीरान पड़ा है। खास बात यह कि देल्ही के कुछ पार्को में तो  पौधों को पानी देने का भी कोई साधन नहीं है।

उद्यान विभाग से प्राप्त जानकारी के मुताबिक नगर निगम पश्चिमी जोन में 2700 पार्क हैं। इसमें से करीब 1500 पार्क उजड़ चुके हैं। वहीं कागजों में जो 1200 विकसित पार्क हैं, उनमें से 415 पार्को में पंप ही नहीं लगे हैं। फिर कैसे पार्को में लगे पौधों की सिंचाई की जा सकती है।जानकारी के मुताबिक पश्चिमी जोन में पार्को के रखरखाव पर करीब 8.50 करोड़ रुपये खर्च किए गए। बावजूद इसके इसका असर कहीं नजर नहीं आता। और यही हाल बाकी जोन का भी है । सरकार हर साल करोड़ो रुपए खर्च करके कोशिश करती है कि दिल्ली को हर भरा रखा जाए जिससे प्रदूषण में कुछ कटौती की जा सके लेकिन ये सिर्फ कागजों पे ही योजनाएं बनती है और खत्म हो जाती है, सरकार यदि चाहे तो इसके चौथाई खर्च में पूरे दिल्ली के प्रदूषण पे नियंत्रण कर सकती है ।
जिससे प्रदूषण नियंत्रण किया जा सकता है -- 
वायु प्रदूषण को रोकने के लिए अधिक से अधिक पेड़-पौधे लगाने चाहिए  शायद इसी कारण लोग अपने घरों के अंदर भी पेड़ लगा रहे हैं।
 एक अध्ययन के अनुसार यह पता लगा कि घर की हवा को ताजा करने के लिए पौधे बेस्ट होते हैं। घर के अंदर की हवा में काफी मात्रा में बेंजीन, ट्राइक्लोरोथिलीन, अमोनिया जैसे कई तरह के नुकसान देने वाले रसायन होते हैं। लेकिन वैज्ञानिकों का कहना है कि घर के अंदर बढ़ते वायु-प्रदूषण को कम करने में पौधे हथियार के रूप में काम करते हैं। कुछ पौधे ऐसे होते हैं कि हमारे घरों, सार्वजनिक स्थलों और कार्यालयों के अंदर की हानिकारक गैसों को 85% तक अपने अंदर समा लेते हैं।ये पौधे सिर्फ़ हानिकारक गैसों से निपटारा ही नहीं करते, बल्कि घरों को सुंदर भी बनाते हैं। अच्छी सेहत और साफ हवा के लिए अपने घरों में पौधे को ज़रूर लगाएं।यदि दिल्ली सरकार चाहे तो सड़को के किनारे और पार्कों में ज्यादा से ज्यादा लगा सकती है और 60 से 85% तक एयर पॉल्युशन कम कर सकती है ।।
इस दीपावली कम से कम 5 पौधे खरीदे 3 अपने घर के लिए और 2 अपने आसपास के पार्क के लिए जरूरी नही की हर बार सरकार की तरफ ही देखा जाए जरूरत है खुद इस लड़ाई में हिस्सा लेकर अपने बच्चो के भविष्य के लिए कुछ करे , हाथ पे हाथ रख के बैठने से कुछ नही होने वाला । ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगाए उन्हें बचाये। और पर्यावरण संरक्षण में अपना सहयोग दे।

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