Featured post

भारतीय दर्शन और आधुनिक विज्ञान

कोशिश .....An Effort by Ankush Chauhan भारतीय दर्शन विश्व के प्राचीनतम दर्शनो में से एक है इसमें अनेक वैज्ञानिक सिंद्धान्तो को प्रतिपादि...

धर्म का धंदा

कोशिश .....An Effort by Ankush Chauhan


धर्म, वैसे तो ये बहुत ही व्यापक विषय है इसे समझना इतना आसान नही है परन्तु अगर सच्चे मन से चिंतन करे तो मनुष्य इसे समझ सकता है । धर्म के विषय मे तो हमारे धर्म ग्रंथो में बहुत कुछ लिखा है परन्तु आज धर्म को ना जानने और ना मानने वाले धर्म के ठेकेदार बने हुए है और इन्होंने अपने निजी स्वार्थों के कारण धर्म का भी धंदा बना दिया है।
मंदिरों में बैठ इन ठेकेदारों ने वहाँ दर्शनों के लिए VIP लाइन बना दी , जितने ज्यादा पैसे उतने जल्दी दर्शन , सुनकर बड़ा आश्चर्य होता है , ईश्वर जब इनके कृत्यों को देखता होगा तो सोचता होगा मेरे नाम पर तुमने क्या धंदा बना दिया ईश्वर तो सभी का बराबर है उसके लिए कोई बड़ा छोटा नही।
ये धर्म का धंदा यही नही रुकता पहले तो इन्होंने भीड़ इकट्ठा करने के लिए राम - कृष्ण जैसी दिव्यात्माओं की जीवन लीलाओं में फूहड़ नाच गाने को जोड़ा तो अब इन्हें ही नचावा दिया, क्योकि भीड़ इकठी होगी तो चंदा मिलेगा क्योकि धर्म इनके लिए एक धंदा बन चुका है।
दिव्यात्माओं के जीवन चरित्र को आने वाली पीढ़ियों तक पहुचाने के लिये हर गाँव, गली ,मुहल्ले में मण्डलीय होती थी कमाई बढ़ी तो ये कमेटियों का रूप ले चुकी है और इनमें अब पदों की लड़ाईया होती है इंसान अपने स्वार्थ में इतना गिर गया है के आज चंद रुपयों के लिए धर्मिक कार्यो को भी कलंकित कर रहा है 
अरे कभी उन राम ,कृष्ण के चरित्र को अच्छे से पढ़ो तो समझ आएगा कि तुम कितना गिर गये हो। और हम समाज और आने वाली पीढ़ी को क्या संदेश दे रहे है । इन रामलीलाओं का क्या अर्थ रह गया अगर मंदिर जैसे पवित्र स्थानों और धर्म के कार्यो में भी गली गलौच और जूता चप्पल होने लगें। क्या इस मानसिकता से हम उन दिव्यात्माओं के चरित्र को प्रदर्शित कर पाएंगे।
मगर हम बड़े बड़े तिलक लगाकर ही अपने को धार्मिक समझ लेते है पर कभी स्वयं का मूल्यांकन करने का प्रयास ही नही करते। 
धर्म जैसे विषयों को भी अगर धंदा बना कर, चलो हमने कुछ कमा लिया तो सोचो, हम उसे लेकर जायगे कहाँ, 
अपने अहंकार के मद में चूर हम भूल जाते है 
"इस धरा का, इस धरा पर, सब धरा रह जायेगा।"
अहंकार तो रावण का नही रहा तो हम और आप तो क्या चीज है। 
अगर आप अनैतिक तरीको से ये सब अपने आने वाली पीढ़ियों के लिए इकट्ठा कर रहे है तो क्या आप ये मान कर बैठे है , के आपकी आने वाली पीढ़ी आपसे भी ज्यादा नालायक है। जो अपने लिए कुछ कर भी नही सकती।
मैं ये तो नही कहूँगा के इन लोगो के कृत्यों से धर्म का नाश हो रहा है, क्योंकि नाश तो ये अपना और अपनी आने वाली पीढ़ियों का ही कर रहे है क्योंकि धर्म का नाश नही होता वो तो अटल है । व्यक्ति जरूर धर्म से भटक सकता है और जब कभी अधर्म वाले बढेगे तो फिर कोई आएगा उनके विनाश को , पुनः मानव ह्रदय में धर्म की स्थापना के लिए उसे सही मार्ग दिखाने के लिये। कभी राम,  कृष्ण बनकर तो कभी दयानंद और विवेकानंद बनकर । 
मगर ये हमे सोचना है के हम इन दिव्यात्माओं के जीवन और विचारों से कुछ सिख कर अपने जीवन को धर्म के मार्ग पर लगाना चाहते है या अधर्म के मार्ग पर चलकर अहंकार के मद में नीच जीवन जीना चाहते है।
-AC

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें