सूरज आसमा से गायब था ....
चारो ओर धुंध का साया था...
गरम कपड़ो में लिपटे हुए ...
चाय की चुस्की लेकर ,
जैसे ही कुछ गरम पकोड़े खाए ....
खिड़की से बहार,सड़क के दुसरे किनारे पर ..
कुछ धूंदले से हिलते हुए चेहरे नजर आए ...
आँखों को गड़ाकर , धुंध के पर्दों के पार झाका ...
उस कडकती सर्दी में कुछ छोटे बच्चे ...
फटे हाल अर्ध नग्न अवस्था में ...
नंगे पाँव , कचरे के ढेर पर ...
पीठ पर कचरे का बोरा ...
हाथ कचरे के ढेर से कचरा बिनते ...
ठंडी हवाओ से जूझते ..
दो वक़्त की रोटी की तलाश में ...
दिन भर सड़क पर भटकते वो छोटे बच्चे ...
साँझ को ऑफिस से वापस आते ..
घर को जाने की जल्दी में ..
फिर सड़क के किनारे फूटपाथ पर ...
एकाएक अपनी ओर धयान खीचते ...
वही कचरा बिनने वाले छोटे बच्चे ...
शिक्षा से दूर ,सड़क पर भटकने को मजबूर ..
विकास के वादों को ठेंगा दिखाते ...
सर्वशिक्षा अभियान को भी झूठा बताते ...
दिनभर कचरे के ढेर पर बिताकर ....
साँझ को सड़क के किनारें बने फूटपाथ पर ...
खुले आसमान के साये में ...
सिकुड़ कर एक छोटे से कम्बल के टुकड़े में ...
सोने की कोशिश करते, सुबहे के इन्तजार में ...
सड़क पर रात बिताने को मजबूर वो छोटे बच्चे ...
दिन भर की थकान से चूर ..
नाईट बल्ब की हलकी रोशनी में ...
सोने के लिये जैसे ही आंखे बंद की ...
फिर से आँखों के सामने आते ...
कचरा बिनने के लिए भटकते वो छोटे बच्चे ..
अंतरात्मा को झंझोड़ते, सोचने पर मजबूर करते ..
किस जात के है ये, क्या धर्म है इनका ...
क्यों नहीं कोई नेता आता ....
इनके लिये कोई आरक्षण क्यों नहीं मागता ...
कोई इन्हें वोट बैंक क्यों नहीं बनाता ....
क्यों नहीं किसी को याद आते ...
इसी देश के नागरिक वो छोटे बच्चे ...