सीएनसी खराद एक कंप्यूटर नियंत्रित मशीन है जो छोटे और बड़े दोनों जॉब के लिए अच्छी है। यदि आपको पूरी तरह से स्वचालित मशीन की आवश्यकता है तो सीएनसी खराद मशीन के लिए जाएं। एक सीएनसी खराद मशीन कंप्यूटर प्रोग्राम से चलती है और इसलिए उन लोगों के लिए एक अच्छा विकल्प है जो कार्यस्थल पर श्रम लागत को कम करना चाहते हैं। चूंकि ये कंप्यूटर नियंत्रित मशीनरी हैं, इसलिए इसे प्रोग्राम करने के लिए विशेषज्ञ तकनीशियन की आवश्यकता होती है।
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भारतीय दर्शन और आधुनिक विज्ञान
कोशिश .....An Effort by Ankush Chauhan भारतीय दर्शन विश्व के प्राचीनतम दर्शनो में से एक है इसमें अनेक वैज्ञानिक सिंद्धान्तो को प्रतिपादि...
How to select a lathe machine hindi हिंदी
सीएनसी खराद एक कंप्यूटर नियंत्रित मशीन है जो छोटे और बड़े दोनों जॉब के लिए अच्छी है। यदि आपको पूरी तरह से स्वचालित मशीन की आवश्यकता है तो सीएनसी खराद मशीन के लिए जाएं। एक सीएनसी खराद मशीन कंप्यूटर प्रोग्राम से चलती है और इसलिए उन लोगों के लिए एक अच्छा विकल्प है जो कार्यस्थल पर श्रम लागत को कम करना चाहते हैं। चूंकि ये कंप्यूटर नियंत्रित मशीनरी हैं, इसलिए इसे प्रोग्राम करने के लिए विशेषज्ञ तकनीशियन की आवश्यकता होती है।
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कोशिश .....An Effort by Ankush Chauhan
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Kumbh mela haridwar 2021, हरिद्वार कुम्भ मेला 2021
वैसे तो हरिद्वार में कुम्भ मेला हर 12 साल के बाद होता है, लेकिन इस बार यह ग्रह योग के चलते 11 साल में ही हो रहा है। इसलिये हरिद्वार में पड़ने वाला यह कुम्भ इस 1 साल पहले 2021 में हो रहा है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार समुद्र मंथन के समय एक अमृत कलश और विष निकला था जिसमे अमृत देवताओ के हिस्से और विष राक्षस के हिस्से में आया था विष को तो भगवान शिव ने पीकर पूरी सृष्टि की रक्षा की थी। शिव के उस रूप को समर्पित एक मंदिर नीलकंठ महादेव का मंदिर भी हरिद्वार से कुछ दूरी पर ऋषिकेश में नीलकंठ पर्वत पर स्तिथ है।
समुद्र मंथन में निकले उस अमृत की कुछ बूंदे देश के चार स्थानों पर गिरी और उन चारों स्थानों हरिद्वार, प्रयागराज, नासिक और उज्जैन। चारों नगरों में कुंभ का आयोजन होता है और यह आयोजन प्रत्येक नगर में ग्रहों की स्थिति विशेष में होता है। जैसे कुम्भ राशि में बृहस्पति का प्रवेश होने पर एवं मेष राशि में सूर्य का प्रवेश होने पर कुम्भ का पर्व हरिद्वार में आयोजित किया जाता है। और यह सयोग ही इस बार 2021 में ही पड़ रहा है। इसी लिये कुम्भ जो 12 साल में होता था इस बार 11 साल में ही हो रहा है इससे पहले 2010 में हरिद्वार में कुम्भ का आयोजन किया गया था।
कुंभ में नागा साधुओं और अखाड़ो का जिक्र न हो तो कुम्भ अधूरा है कहा जाता है के ये अखाड़े धर्म रक्षा सेना या संगठन है जो सनातन धर्म की रक्षा के लिए गठित किए गए हैं। विधर्मियों से अपने धर्म, धर्मस्थल, धर्मग्रंथ, धर्म संस्कृति और धार्मिक परंपराओं की रक्षा के लिए किसी जमाने में संतों ने मिलकर एक सेना का गठन किया था। वही सेना आज अखाड़ों के रूप में जानी जाती है।
कहा जाता है के आदिशंकराचार्य ने देश के चार कोनों में चार मठों और दसनामी संप्रदाय की स्थापना की। बाद में इन्हीं दसनामी संन्यासियों के अनेक अखाड़े प्रसिद्ध हुए,
देश मे धर्म रक्षा के लिए बने प्रमुख अखाड़ो में आवाह्न अखाड़ा, अटल अखाड़ा, महानिर्वाणी अखाड़ा,आनंद अखाड़ा, निरंजनी अखाड़ा और जूना अखाड़े का उल्लेख मिलता है। बाद में भक्तिकाल में इन शैव दसनामी संन्यासियों की तरह रामभक्त वैष्णव साधुओं के भी संगठन बनें, जिन्हें उन्होंने अणी नाम दिया। अणी का अर्थ होता है सेना। यानी शैव साधुओं की ही तरह इन वैष्णव बैरागी साधुओं के भी धर्म रक्षा के लिए अखाड़े बनें। जिनमे मुख्य
श्रीपंचायती अखाड़ा बड़ा उदासीन, श्री पंचायती निर्मल अखाड़ा है।
विभिन्न धार्मिक समागमों और खासकर कुंभ मेलों के अवसर पर साधु संगतों के बीच समन्वय के लिए अखाड़ा परिषद की स्थापना की गई, जो सरकार से मान्यता प्राप्त है। इसमें कुल मिलाकर तेरह अखाड़ों को शामिल किया गया है। प्रत्येक कुंभ में शाही स्नान के दौरान इनका क्रम तय है।
हरिद्वार कुंभ का पहला शाही स्नान, महाशिवरात्रि (Mahashivratri) के अवसर पर 11 मार्च को होगा. 11 मार्च शिवरात्रि को पहले शाही स्नान पर संन्यासियों के सात और 27 अप्रैल वैशाख पूर्णिमा पर बैरागी अणियों के तीन अखाड़े कुंभ में स्नान करते हैं. 12 अप्रैल सोमवती अमावस्या और 14 अप्रैल मेष संक्रांति के मुख्य शाही स्नान पर सभी 13 अखाड़ों का हरिद्वार कुंभ में स्नान (Kumbh Snan) होगा.
कोरना महामारी के दौर में आयोजित होने वाला यह कुंभ मेला (Kumbh Mela) बीते अन्य कुंभ मेलों से काफी अलग होगा. इस बार कुंभ मेले के दौरान किसी भी स्थान पर संगठित रूप से भजन एवं भण्डारे के की मनाही रहेगी. उत्तराखंड सरकार ने कोरोना संक्रमण (Corona Virus) को रोकने हेतु यह नए नियम जारी किए हैं. कोरोना के कारण केन्द्र सरकार और राज्य सरकार द्वारा कुछ गाइडलाइन जारी की गई है जिनका पालन करना अनिवार्य है। सरकार की गाइडलाइन के अनुरूप ही अपना हरिद्वार यात्रा का पालन बनाये।
हरिद्वार आने के लिए आप ट्रैन या बस द्वारा सीधे हरिद्वार शहर भी आ सकते है या हवाई मार्ग से जोलीग्रांट हवाई अड्डा आकर वह से टैक्सी द्वारा हरिद्वार आसानी से पहुच सकते है । हरिद्वार में आपके ठहरने के लिए कई बड़े छोटे होटल और धर्मशाला आसानी से उपलब्ध है फिर भी आसानी के लिए पहले से बुकिंग करके रखें तो ज्यादा सही होगा क्योंकि कुम्भ में काफी भीड़ भी होती है।
अगर आप कही दूर से आ रहे है तो कुंभ में हरिद्वार के साथ आसपास के क्षेत्र ऋषिकेश या देहरादून भी घूम सकते है या थोड़ा और समय निकाल कर उत्तराखंड की पहाड़ी वादियों का भी लुफ्त उठा सकते है।
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भारतीय दर्शन और आधुनिक विज्ञान
भारतीय दर्शन विश्व के प्राचीनतम दर्शनो में से एक है इसमें अनेक वैज्ञानिक सिंद्धान्तो को प्रतिपादित किया गया है।हमारे ऋषियो को अगर प्राचीन समय का वैज्ञानिक कहा जाये तो ये अतिशयोक्ति नही होगी। परन्तु आधुनिकता की दौड़ और स्वयं को विकसित कहलाने की होड़ में हमने अपने उस प्राचीन दर्शन को किनारे कर दिया जबकि वो एक महान वैज्ञानिक दृष्टिकोण से परिपूर्ण दर्शन हैं।
अगर हम उस वैज्ञानिक दर्शन को समझकर उसका सहारा आधुनिक विज्ञान के विकास में ले तो हम भारतीय दर्शन के गूढ़ ज्ञान की सहायता से विज्ञान के नये आयामो को प्राप्त कर सकते है।
आज हम भारतीय दर्शन के एक सिद्धान्त की चर्चा आधुनिक विज्ञान के परिपेक्ष में करगे।
वो सिद्धान्त है प्रकृति और पुरूष का सिद्धान्त-
1.आधुनिक विज्ञान कहता है के ब्रह्माण्ड के सभी पदार्थों/ मैटर (matter) का निर्माण atom से हुआ है आधुनिक विज्ञान ने ये सिद्धान्त 18 वी शताब्दी में दिया वैसे तो यही सिद्धान्त 500 B. C. में महर्षि कणाद ने भी दिया था जिसमे उन्होंने उस तत्व को परमाणु कहा था।
परन्तु हम इससे भी पहले की बात कर रहे है संख्या दर्शन ने सभी पदार्थों के निर्माण का कारण प्रकृति को बताया। अगर हम कहे atom, परमाणु, प्रकृति एक ही चीज के नाम है तो ये गलत नही होगा क्योकि सभी सामान गुणों की ओर संकेत करते है।
2.भारतीये दर्शन के अनुसार प्रकृति त्रिगुणात्मक है जिसके तीन गुण है
रजोगुण, तमोगुण, सत्वगुणयहाँ गुणों का अर्थ विशेषता नही है ये प्रकृति के ही भाग है।
आधुनिक विज्ञान में atom या परमाणु के तीन भाग है
इलेक्ट्रॉन, प्रोटॉन, न्यूट्रॉन
3. रजोगुण की प्रवृत्ति गत्यात्मक है अर्थात ये सदैव गतिमान है आधुनिक विज्ञान के अनुसार इलेक्ट्रॉन भी सदैव गतिमान रहता है।
तमोगुण में भार होता है , यह स्थिरता प्रदान करता है और रजोगुण के विपरीत गुणों वाला है।
अगर हम प्रोटॉन की बात करे तो ये इलेक्ट्रान के विपरीत गुणों वाला है एक धनात्मक है दूसरा ऋणात्मक । प्रोटोन इलेक्ट्रान को उसकी कक्षा में बाधे रखता है क्योंकि दोनों विपरीत आवेशित है अतः ये परमाणु को स्थिरता प्रदान करता है। इलेक्ट्रान का भार नगण्य होता है और उसकी तुलना में प्रोटोन में भार होता है।
तीसरा सत्वगुण जो तटस्थ होता है यह तमोगुण और रजोगुण की साम्यावस्था को बनाये रखता है।
न्यूट्रोन में भी कोई आवेश नही होता यह नाभिक में प्रोटॉन के साथ रहकर नाभिकीय बल उतपन्न करता है और प्रोटॉन को नाभिक से बांधे रखता है और इलेक्ट्रान और प्रोटॉन के बीच साम्यावस्था बनाये रखता है इसी कारण विपरीत आवेशों के होने के बाद भी इलेक्ट्रॉन -प्रोटॉन एक दूसरे की और अकर्षित होकर आपस मे नही टकराते।
4. भारतीय दर्शन के अनुसार प्रकृति स्वयं से कुछ नही करती परंतु जब वो पुरुष के संपर्क में आती है तो उसकी साम्यावस्था भंग होती है और पदार्थ और सृस्टि का निर्माण होता है।
आधुनिक विज्ञान ने भी 2013 में एक परिकल्पना का प्रयोगात्मक सत्यापन किया जिसके अनुसार अलग अलग परमाणुओं को आपस मे जोड़कर अणु को जन्म देने और पदार्थ के निर्माण के पीछे एक और तत्व है जिसे उन्होंने नाम दिया " हिग्स बोसॉन " ये हिग्स बोसॉन परमाणु के लिए वही कार्ये करता है जो प्रकर्ति के लिए पुरूष।
5. भारतीय दर्शन में पुरूष का अर्थ आत्मा से होता है अर्थात आत्म तत्व को पुरूष कहा जाता है और यह आत्मा परमात्मा का अंश होती है।
आधुनिक विज्ञान में भी नए खोजे गए तत्व हिग्स बोसॉन को गॉड पार्टिकल (god particle) कहते है अर्थात आधुनिक विज्ञान के अनुसार भी वो ईश्वर का अंश है।
तो अभी तक जो हमने जो समझा क्या वो महज इत्तेफाक है या जो आज आधुनिक विज्ञान जान रहा है वो हमारे ऋषियों को पहले से पता था। जिसे उन्होंने भारतीय दर्शनो में समझाने का प्रयास किया। तो ऐसा क्या था उनके पास जो वो उन तथ्यों को भी जानते थे जिसे आधुनिक विज्ञान अभी तक समझने का प्रयास कर रहा है तो क्यो न हम कहे के उस समय का विज्ञान आज के विज्ञान से कही ज्यादा विकसित था। परन्तु अपनी अज्ञानता के कारण हम उसे अवज्ञानिक मानकर नकार देते है जबकि आवश्यक है उन भारतीय दर्शन के सिद्धांतों पर शोध करने की ताकि उस महान ज्ञान के द्वारा हम आधुनिक विज्ञान को अधिक विकसित कर सम्पूर्ण जगत को लाभ पहुचा सके।
मेरी बातों पर विचार कीजिए और इसमें निहित विचारो को ज्यादा से ज्यादा शेयर कीजिये।
क्या कपालभाति प्राणायाम है?
कोशिश .....An Effort by Ankush Chauhan
आज के समय मे कपालभाति को प्राणायाम के रूप में अत्यधिक प्रचलित किया जा रहा है जिसमे श्वास को तेजी से बाहर की ओर फेका जाता है। क्या वास्तव में ये प्राणायाम है? कुछ बड़े योगा गुरु भी इसे अत्यधिक प्रचारित कर रहे है जो कभी कभी मूर्खतापूर्ण प्रतीत होता है।
इसको समझने के लिए हमे सबसे पहले प्राणायाम को समझना होगा कि आखिर प्राणयाम है क्या?
" प्राणस्य आयाम: इति प्राणायाम:”
जिसका अर्थ है की प्राण का विस्तार ही प्राणायाम कहलाता है | साधारण शब्दों में समझे तो प्राणों का लंबा करना अर्थात श्वास - प्रस्वाश का जो चक्र है उसके समय को बढ़ाना परन्तु जिस क्रिया को कपालभाति प्राणायाम के रूप में प्रचारित किया जा रहा है उसमें हो क्या रहा है।
अब हम योग के सबसे प्रमाणिक ग्रंथ पतंजलि योग सूत्र में प्राणायाम को परिभाषित करते हुए क्या कहा गया है उसे जानते है।
" तस्मिन्सति श्वास प्रश्वास योगर्ती विच्छेद: प्राणायाम: "
अर्थात आसन की सिद्धि होने के बाद श्वास – प्रश्वास की जो गति है उसे विच्छेद करना | यह भी उसी पूर्व के अर्थ की और संकेत करता है
इसका अर्थ है श्वास की गति को तेज करना किसी भी प्रकार से प्राणायाम नही है वह जो भी क्रिया हो वह प्राणायाम तो नही।
अब आते है दूसरे विषय पर कि क्या ये श्वास की गति को तेज करना कपालभाति है तो इसके लिए हम जानना जरूरी है कि कपालभाति है क्या कपालभाति शब्द का उल्लेख घेरण्ड सहिंता में मिलता है घरेण्ड सहिंता महर्षि घरेण्ड रचित हठ योग का एक ग्रंथ है जिसमे षट्कर्म के अंतर्गत इसका वर्णन है।
वो 6 क्रिया है
1.धौति 2.वस्ति 3. नेति 4.लोलिकी 5. त्र्याटक 6. कपालभाति
तो घरेण्ड सहिंता में कपालभाति का जो वर्णन है अब उसे भी जान लेते है।
" वातक्रमेण व्युत्क्रमेण शीत्क्रमेण विशेषतः ।
भालभातिं त्रिधा कुर्यात्कफदोषं निवारयेत् ।। 55।। "
भावार्थ :- भालभाति ( कपालभाति ) क्रिया के वातक्रम, व्युत्क्रम व शीतक्रम नामक तीन विशेष प्रकार हैं । जिनका अभ्यास करने से साधक के सभी कगफ रोगों का निवारण ( समाप्त ) हो जाता है ।
घेरण्ड संहिता में कपालभाति क्रिया के तीन प्रकारों का वर्णन किया गया है । जिनका क्रम इस प्रकार है :-
1. वातक्रम कपालभाति, 2. व्युत्क्रम कपालभाति, 3. शीतक्रम कपालभाति ।
1. वातक्रम कपालभाति
" इडया पूरयेद्वायुं रेचयेत्पिङ्गलया पुनः ।
पिङ्गलया पूरयित्वा पुनश्चन्द्रेण रेचयेत् ।। 56।। "
भावार्थ :- इड़ा नाड़ी ( बायीं नासिका ) से श्वास को अन्दर भरें और पिंगला नाड़ी ( दायीं नासिका ) से श्वास को बाहर निकाल दें । फिर पिंगला नाड़ी ( दायीं नासिका ) से श्वास को अन्दर भरकर इड़ा नाड़ी ( बायीं नासिका ) से श्वास को बाहर निकाल देना ही वातक्रम कपालभाति होता है ।
2.व्युत्क्रम कपालभाति
" नासाभ्यां जलमाकृष्य पुनर्वक्त्रेण रेचयेत् ।
पायं पायं व्युत्क्रमेण श्लेषमादोषं निवारयेत् ।। 58। "
भावार्थ :- नासिका के दोनों छिद्रों से पानी को पीकर मुहँ द्वारा बाहर निकाल दें और फिर उल्टे क्रम में ही मुहँ द्वारा पानी पीकर दोनों नासिका छिद्रों से पानी को बाहर निकाल दें । इस व्युत्क्रम कपालभाति द्वारा साधक के सभी कफ जनित रोगों का नाश होता है ।
3.शीतक्रम कपालभाति
"शीत्कृत्य पीत्वा वक्त्रेण नासानालैर्विरेचयेत् ।
एवमभ्यासयोगेन कामदेवसमो भवेत् ।। 59।। "
भावार्थ :- शीत्कार की आवाज करते हुए मुहँ द्वारा पानी पीकर नासिका के दोनों छिद्रों से बाहर निकाल दें । यह प्रक्रिया शीतक्रम कपालभाति कहलाती है । इसका अभ्यास करने से योगी का शरीर कामदेव की भाँति अत्यंत सुन्दर हो जाता है ।
अब अगर हम समझे तो इस हिसाब से तो श्वास को तेजी से बाहर फेकने वाली क्रिया कपालभाति भी नही है।
तो अब यही निष्कर्ष निकलता है कि तेजी से श्वास फेकना ना तो प्राणायाम है ना ही कपालभाति अब जो इसे प्राणायाम कह रहे है उन्ही से सवाल पूछना होगा कि वो इसे किस आधार पर ऐसा कह रहे है।
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आज पूरा विश्व कोरोना वायरस से डरा हुआ है। चीन से फैली ये बीमारी आज पूरे विश्व में अपने पैर फैला रही है। कोरोना वायरस ने आज महा मारी का रूप ले लिया है। वैसे तो कोई भी वायरस या बैक्टेरिया हमे तभी प्रभावित करता है जब हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होती है। इसलिये किसी भी रोग या संक्रमण से लड़ने के लिए हमे अपनी रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाना होगा।
Yoga defined by Swami Vivekananda
" Arise! Awake! And stop not until the goal is reached."
Swami Vivekananda has influenced young minds to walk on the path of enlightenment for more than a centennial. Stretching his wings of spirituality out to the world, he started a revolution which still resonates among millions of his followers
- (1) Karma-Yoga—The manner in which a man realises his own divinity through works and duty.
(2) Bhakti-Yoga—The realisation of the divinity through devotion to, and love of, a Personal God.
(3) Raja-Yoga—The realisation of the divinity through the control of mind.
(4) Jnana-Yoga—The realisation of a man's own divinity through knowledge.
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