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भारतीय दर्शन और आधुनिक विज्ञान

कोशिश .....An Effort by Ankush Chauhan भारतीय दर्शन विश्व के प्राचीनतम दर्शनो में से एक है इसमें अनेक वैज्ञानिक सिंद्धान्तो को प्रतिपादि...

Reference Position and CNC lathe co ordinate System

कोशिश .....An Effort by Ankush Chauhan

Movement of tool are in right angle to each other in different direction on any CNC machine. these direction of movement of tool are called main axis . two different reference point as machine zero point and tool reference point are fixed at the specific place on CNC machine and one specific point on job .

Machine zero point - M
one machine Zero point is kept on specific place for all axes on CNC machine . this machine zero point is denoted by letter M. co ordinate of all axes are zero on this machine zero point . after starting machine, movement of all axes is done according to this machine zero point this work as a reference point for all axes .machine zero point of CNC machine is decided by machine manufacturer 

Tool reference position - T
 one tool reference position is kept on CNC to keep tool always on specific position. this tool reference position is denoted by letter T . tool reference is kept at specific distance from machine zero point .when machine is started , coordinate of all axis are seen as zero all the time so every time tool has to send on reference position   
tool reference position is kept as maximum to the side of tail stock for z axis and maximum away from center of spindle for X axis on CNC lathe machine

Co ordinate system 
To prepare a Program Which exists on CNC machine , first we have to prepare tool path according to desired operation . specific work zero position has to be taken on the job to prepare tool path .
there are tow axis , horizontal axis and vertical axis on a graph .both axis crossed each other on right angle and in CNC Lathe Machine axis parallel to the axis of job is called Z axis and axis across the diameter is called X axis generally , intersection of center of job X axis dimeter and external surface of job for Z axis length is considered as original point

Program format for CNC Program (Fanuc Control)

कोशिश .....An Effort by Ankush Chauhan

Program format for CNC Program (Fanuc Control)

Program is an important part of a CNC machine. it carries a special sequence of letters and number which carries instruction to be followed to perform desired operation a specific function is done through these letters and this is called address. A combination of letter and number is written in a specific sequence for desired operation by these lines’ instruction is to be given to the machine these lines are called block.

EG. G01 X 42 Z25 F80 ;

A program carries many numbers of block to perform required operation on the job . different component of a program are as follow

Block format –

The block which are prepared in a program is as under

N                      G                        X_Y_Z_R             F                             T                M              ;

Block                       Preparatory           Dimension word                  Feed                   spindle          tool               machine           End

Sequence               function                                                               Function            speed            function        function              of

 number                                                                                                                                                                                            block                                                                                           

                                 

O- Program number

    O latter is used to give specific number to a program on Fanuc control. a four-digit number followed by letter O is given to each program so that the program can be opened when it is required

N- block sequence number

in a program the movement of a tool is shown by a line which is called block , continuous numbers are given followed by letter N , these block number are given in ascending order these number can be given from 1 to 9999.

G – Codes

These codes are used for tool movement to perform all kind of tool function. the coordinates of X, Y, Z axis are given in front of G code . for different tool movement different G cods are used

X, Y, Z - tool movement

X, Y and Z letter are used for the movement of tool .the tool movement on each axis is given by numeric value of each axis after these letters

F- Feed

On CNC machine, the letter F is used to give feed to tool. The feed is given by two types as mm/min and mm/rev.

S-spindle speed

the letter S is used to give spindle speed which is given to the spindle of CNC machine. the RPM of spindle is given in front of S letter eg. S400

S- Cutting speed

If G96 code is used in program , cutting speed is given in front of this G96 code followed by letter S . if cutting speed is given, spindle speed will change automatically as per surface diameter of job  Eg - S50

T- Tool Number

Many tools are used to perform a complete operation on a job in CNC these tools are hold on turret head , these tool in the turret are given some number according to their position in the turret, T letter is used to call these tool according to operation.

EX. T0506

M- Miscellaneous function

M code are used for all function expect tool movement only one M code can be used in one block

EOB- End Of Block 
as a number is given to start a block at the beginning , end of block sign is used at the end of each block to separate each block

Ex. ;

hope this will help you to understand the program format ask you query in comment 


human have alien's DNA, the new theory of evolution

कोशिश .....An Effort by Ankush Chauhan


अक्सर हम इंसान सोचते है के  इस धरती पर इंसानी अस्तित्व की शुरुआत कैसे हुई आखिर हम इंसान का विकास कैसे हुआ तो इसका जवाब हमारी आधुनिक  विज्ञान की किताबे  ये बताती  है कि हमारा विकास बंदरों से हुआ, हो सकता है वो सही हो, परन्तु ऐसा कैसे संभव है की उसके बाद लाखो सालो में एक भी बन्दर इंसान नहीं बना शायद हममे से किसी ने कभी किसी बन्दर को इंसान बनते नहीं देखा शायद डार्विन की ये कहानिया कुछ हिन्दू धर्म ग्रंथो में पढ़ी कुछ घटनाओ के आधार पर निर्मित की गयी हो जैसे उनकी थ्योरी ऑफ़ ऐवेलूशन सीधे सीधे दशावतार की कथा से प्रेरित है परन्तु वैज्ञानिको का ये मत की इंसान बन्दर से परिवर्तित हुए है ये कैसे कहा जा सकता है आप सोचिये अगर ऐसे ही कोई जीव दूसरे जीव में बदल गया होता तो ये परिवर्तन आज भी चल रहा होता और आज की उन्नत तकनीक और वैज्ञानिक समझ और जाँच उन्हें पकड़ भी पाती मगर ऐसा कही नहीं हो रहा है क्योकि ऐसा हुआ नहीं ऐसा किया गया जो वो दशावतार का घटनाक्रम दीखता है जिसे डार्विन ने थ्योरी ऑफ़ ऐवेलूशन कहा वो एक महान सभ्यता के महान प्रयोग का हिस्सा था वो एक समझदार जीव उत्पन्न करना चाहते  थे और जिसमे वो सफल भी हुए एक ऐसा जीव जो अपने मस्तिष्क का बेहतर इस्तमाल कर सके कुछ वैसा ही जैसा हम इंसान आज आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस से युक्त रोबोट बनाने का प्रयास कर रहे है मगर वो सभ्यता हमसे कही जयदा विकसित थी इसका प्रमाण हमे कई प्राचीन इमारतों से पता चलता है जैसे ग़िज़ा के पिरमिन्ड , भारत का कैलाश मंदिर ये ऐसे अद्भुत उद्धरण है जिन्हे शायद आज की उन्ननत तकनीक से भी हूबहू फिर से बनाने का प्रयास किया जाये तो सैकड़ो साल लग जायेगे अब एक विचार मन में आता है के वो कौन थे जिन्होंने ऐसा किया वो कहा से आये थे अब कहा है और अब आकर कुछ नया निर्माण क्यों नहीं करते , जब हम इन सवालो का जवाब ढूढ़ने का प्रयास करते है तो एक विचार मन में आता है के कही कोई ऐसी दुनिया हो जो किसी कारण से नष्ट होने की कगार पर हो और वहाँ के समझदार जीव अपने नष्ट होने से पहले एक नयी दुनिया बसा कर गए हो , शायद हो सकता है के वो मंगल ग्रह से हो क्योकि आज के वैज्ञानिक भी इस बात की सम्भावना को मानते है के कभी मंगल में भी जीवन था। 
तो हो सकता है मंगल ग्रह से आये कुछ लोगों ने धरती को इसके लिए चुना हो और यहाँ के वातावरण के हिसाब से जीवन में परिवर्तन किया हो और उस  जीवन के विकास के क्रम को दशावतार का नाम दिया गया हो।  अब हम आते है अपनी पुरानी बात पर के वैज्ञानिक  एक खोज ये मानती है के इंसान का डीएनए बन्दर से काफी हद तक मेल खाता है तो वो कैसे हो सकता है , उन विकसित जीवों ने धरती पर कई जीव बनने के बाद उनमें से अपने कार्य योग्य उचित जीव का चुनाव किया और उसमे अपना डीएनए मिला दिया ये एक एक्सट्रीम जेनेटिक इंजीनियरिंग बेहतरीन उद्धरण है जिसका परिणाम हम इंसान है और वो हमे वेद, विमान शास्त्र, वैशेषिक सूत्र  और अन्य कई ग्रंथों में ज्ञान और विज्ञान के अनेक रहस्यों को भी हमे समझने का प्रयास कर गए , साथ ही अपनी यादो के रूप में कुछ इमारतों को भी बना गये। अब सवाल आता है के आखिर क्यों कोई हमारे लिए इतना सब कुछ करेगा , और वो खुद यहाँ क्यों नहीं रहे ? वो यहाँ इसलिए नहीं रहे क्योकि यहाँ का का वातावरण उनके जीवन के अनुकूल नहीं था और किसी ग्रह का वातावरण परिवर्तित करना नया वातावरण बनाना वो भी व्यापक स्तर पर पुरे एक ग्रह के लिए एक काफी खर्चीला और समय को लेने वाला कार्य है  जबकि जेनेटिक रिसर्च के लिए प्रयोगशाला भी काफी है, आज भी वैज्ञानिक ऐसे कार्य कर लेते है. अब सवाल आता है के उन्होंने ऐसा क्यों किया हमारे लिये , इसका जवाब आप खुद देंगे क्यों आप अपने बच्चो के लिए इतना सब कुछ करते है ,क्यों आप उनके लिए ज्ञान, विज्ञान, सुख सुविधा जुटाते  है क्यों ? तो जवाब है क्योकि उनमे आपका डीएनए है मानव सभ्यता आज भी डीएनए को ट्रांसफर और संरक्षित ही तो कर रही है उसी डीएनए ट्रांसफर को हम पीढ़ियों का आगे बढ़ना कहते है हम उन्ही परग्रही जीवो की ही पीढ़ी है हम उनके डीएनए को आगे बड़ा रहे है उन्होंने हमे अपने डीएनए से एक खास चीज जिसने हमे बन्दर से इंसान बनाया वो है ज्ञान , इसे आप इनफार्मेशन / सुचना कह सकते है डीएनए में एक बहुत बड़ी ताकत है इस पृथ्वी की सारी ज्ञात सूचना जो दुनियाँ भर के कंप्यूटर में समाहित है उसे बस कुछ डीएनए में स्टोर किया जा सकता है और डीएनए पीढ़ी दर पीढ़ी ज्ञान को संचारित कर सकता है तो हम जब चाहे अपने पूर्वजो के ज्ञान को अपने डीएनए से प्राप्त कर सकते है। 
-AC 

ईश्वर स्तुति प्रार्थना

कोशिश .....An Effort by Ankush Chauhan



         घोर अंधेरा छाया मन पर ,  प्रभु इसे हटाओ।
         माया जाल है कैसा फैला , प्रभु इसे मिटाओ।।

भोग विलासिता में फस कर, जीवन अधोगति में जाता।
पशुवत जीवन जी रहे है , नही मुक्ति मार्ग सुझाता ।।

          घोर अंधेरा छाया मन पर ,  प्रभु इसे हटाओ।
          माया जाल है कैसा फैला , प्रभु इसे मिटाओ।।

    दर्शन के अभिलाषी नयना, कभी तो रूप दिखलाओ।
    कण कण में है वास् तुम्हारा ,कभी तो सम्मुख आओ।

          घोर अंधेरा छाया मन पर ,  प्रभु इसे हटाओ।
           माया जाल है कैसा फैला , प्रभु इसे मिटाओ।

    हे सर्वज्ञ,  मैं अल्पज्ञ , मुझे ज्ञान मार्ग दिखलाओ।
   जिस मार्ग पर भेंट हो तुमसे मार्ग वो बतलाओ।।

         घोर अंधेरा छाया मन पर ,  प्रभु इसे हटाओ।
          माया जाल है कैसा फैला , प्रभु इसे मिटाओ।।


-AC

पुण्य कर्म

कोशिश .....An Effort by Ankush Chauhan


गोपाल अपनी पत्नी सरला के साथ एक छोटे से गॉव में रहकर अपनी 7  बीघा  जमीन में खेती बड़ी कर जैसे तैसे अपना जीवन यापन कर रहा था , इस खेती में साल भर के खाने के लिए अनाज निकाल कर थोड़ा बहुत वो मंडी में बेच देता है जिससे साल भर के गुजारे के लिए कुछ पैसे आ जाते , मगर आज कल मंडियों में भी बिचोलियो का इतना बोल बाला हो गया के उन्हें कुछ दिए बिना एक छोटे किसान  के लिए अपना अनाज बेच पाना मुश्किल हो जाता है गोपाल भी कई दिनों से मंडियों के चक्कर काट कर खली हाथ घर आ रहा था। 
आज भी  गोपाल जैसे ही घर के आंगन में पैर रखता है उसकी पत्नी सरला उत्सुकता से पूछती है - " जी आज कुछ बात बनी  क्या ?"

गोपाल भी हाँ  में सिर हिलाते हुए पैसे सरला के हाथ में रखते हुए बोलता है - "बस दाम थोड़े कम मिले है, मगर ईश्वर की कृपा से गुजरा हो जायेगा। "

"आप पहले बच्चो की वर्दी का नाप दे आओ और नया बस्ता दिला लाओ स्कूल में मास्टर रोज टोकता  है इन्हे " - सरला ने कहा 

गोपाल भी लोटे के पानी से मुँह धोते हुए - " ठीक है आज शाम को दिला लाऊगा , तू भी अपने लिए एक साड़ी लेती आना तेरी बहन के यहाँ भी तो लड़के  की शादी  है ,वहाँ ऐसे जाएगी क्या "

" अरे नहीं मै तो शीला बहन जी की साड़ी मांग लुँगी एक दिन की ही तो बात है , आप अपना कुर्ता  सिलवा  लेना फटा पड़ा है सारा , आपको तो बारात में जाना है वो पहन के जाओगे क्या " - सरला ने कहा
 
" चल देखते है , तू पहले रोटी लगा दे बहुत जोरो की भूख लगी है "- और गोपाल हाथ पैर  धोकर खाने के लिए बैठा जाता है
 
सरला , गोपाल को रोटी देती है और गोपाल रोटी खाकर थोड़ा आराम करने के लिए चारपाई पर बैठता ही है के तभी फूलसिंह , जो खेतो में मजदूरी का काम करता है आ जाता  है वो गोपाल के यहाँ भी कभी कभी फसल के समय मजदूरी किया करता  था।  गोपाल स्वभाव का बहुत अच्छा इंसान था ,वो सबके साथ अच्छा व्यवहार करता , न तो जात पात  का भेदभाव करता ना  बड़े छोटे का , और अपनी सामर्थ्य के अनुसार सबकी सहयता भी कर दिया करता , सबसे अच्छी बात उसकी ये थी की जब वो किसी की सहयता करता , ना  तो कभी किसी को एहसान दिखता और ना  ही कभी उसका ढिंढोरा पीटता , वो हमेशा यही कहता की अगर हम किसी के जरूरत के समय काम आ पाए तो ये ईश्वर की हम पर कृपा है , उसके इसी सरल स्वभाव के कारण लोग अक्सर बिना संकोच के उसके पास आ जाया  करते।  

राम राम प्रधान जी  ( गॉव में जिसके पास जमीन  हो उसे उसके यहाँ मजदूरी करने वाले लोग अक्सर इसी तरह सम्बोधित करते थे ) - फूल सिंह ने घर में  घुसते  हुए कहा 

गोपाल  भी बड़ी विनम्रता और सम्मान के साथ जवाब देता - "राम राम फुल्लू भाई आ जा बैठ जा , कैसे आना हुआ। "

" बस प्रधान  जी क्या बताऊ छोटी सी मदद चाहिए आपका एहसान होगा बहुत " - फूल सिंह  ने कहा 

गोपाल ने भी प्रेम पूर्वक कहाँ  - इसमें एहसान की क्या बात है, बता क्या बात हुई, जो बन पड़ेगा करेंगे "

फूलसिंह  बोला - "कल लड़की के रिश्ते वाले आ रहे है , कही कुछ इंतजाम  नहीं हुआ बस आपसे ही उम्मीद है नहीं तो कल लड़के वालो के सामने बात बिगड़ जाएगी "

गोपाल ने सरला की और देखा और धीरे से कहा-  "जा दो -तीन सौ रुपये ला दे इनका काम हो जायेगा "

सरला अंदर से तो गुस्सा होती है पर फूल सिंह के सामने बिल्कुल जाहिर नहीं करती और चुपचाप तीन सौ  रूपये ला कर गोपाल के हाथ  में रख देती ही  गोपाल वो फूल सिंह को देते हुए - " ले भाई , संभाल के रखना , और मेहमानो के लिए  एक दो मिठाई भी ले आना "

फूल सिंह पैसे जेब में रखता है और खुश होकर हाथ जोड़ते हुए - " प्रधान जी जैसे ही कही काम लगता है पहले आपके पैसे लौटाऊंगा आपने मेरी नाक कटने से बचा ली "

"कोई बात नही  भाई इंसान ही इंसान के काम आता है" - गोपाल ने कहा 

फूल सिंह अपने घर की और चल जाता है और गोपाल जैसे ही चारपाई पर पैर फ़ैलाने की कोशिश करता है सरला बहार आती है वो अभी तक तो फूल सिंह की वजह से चुप थी  मगर अब थोड़ा नारजगी के  के भाव से बोलती  है - " सारी  दुनिया का ठेका आपने ही लिया हुआ है"

गोपाल शांत भाव से  - " किसी गरीब का काम हो गया बस और क्या बेचारा बड़ी उम्मीद से आया था।  ईश्वर ने उसी के नाम के दिए होंगे "

"अब बारात में जाना वो ही फटा कुर्ता पहन के,  क्या सोचगे वहाँ  लोग कैसे घर में बिहाई है सरला भी "- सरला ने गुस्से में कहा 

गोपाल ने समझते हुए - " अरे तू तो यु ही परेशान होती है ,जैकेट तो सही है वहाँ कोई मेरी जैकेट उतार कर देखेगा क्या  की कुर्ता फटा है या सही। "

सरला मुँह बनाकर - " आपका तो बस यही है , जैसे कोई और भी आपके बारे में सोचने आ रहा है। "

और सरला बड़ बड़ करते हुए अंदर कमरे में चली जाती है और गोपाल भी चारपाई पर लेट जाता है।  उनका तो ये रोज काम है , सरला हमेशा  गोपाल को समझती के लोगो की मदद से पहले अपना और अपने बच्चो का भी कुछ सोच लिया करो और गोपाल था की कभी अपने बारे में सोचता ही नहीं उसके सामने अगर कोई मदद के लिए आ जाये तो वो हर सम्भव प्रयास करता उसकी मदद का , वो तो यहाँ तक करता की एक बार गोपाल खाना थाली में लेकर बैठा ही था   और घर के दरवाजे पर एक साधु  मांगने आगया तो उसने उस भूखे साधु को अपनी थाली ही पकड़ा दी। दोनों की शादी को 15 साल हो गए थे और उनका जीवन बस ऐसे ही नौक झोक में चल रहा था बच्चे अभी छोटे थे पास के स्कूल में जाते थे बेटी 12 साल की सातवीं कक्षा में पढ़ती और बेटा  9 साल का था और अभी चौथी  में था। जिंदगी की गाड़ी बस धीरे धीरे खिसक रही थी।  परिवार में सबके जीवन में अपार  संतोष के कारण तकलीफ जायदा नहीं होती थी। गोपाल सुबह ही खेत में जाता और अपनी गाय  के लिए घास लाता और सरला उसका घर के काम में हाथ बटाती , खेत का काम गोपाल करता और घर पर गाय  का घास , पानी , दूध का काम दोनों मिलकर करते सब ठीक ही चल रहा था के अचानक खेत में काम करके जब गोपाल घर लौटा तो अचानक उसकी तबीयत बिगड़ गयी सरला दौड़ कर एक रिक्शा वाले को बुला कर लायी और उसे सरकारी अस्पताल ले गयी। डॉक्टर ने उसकी जांच करी और उसे अस्पताल में ही भर्ती कर लिया रात में सरला को भी उसके पास ही रुकना पड़ा। आने से पहले सरला बेटी को समझा कर आयी थी के घर पर भाई का भी ध्यान रखना और आने में देरी हो जाये तो रसोई घर में रोटी रक्खी है दोनों खा लेना।  मगर उसे कहा पता था के रात रुकना पड़ेगा। सरला रात भर परेशान थी साथ ही उसे ये भी चिंता थी के उनकी अनुपस्थति में गाय का घास पानी कौन करेगा और दूध कौन निकलेगा।  साथ ही रात भर बच्चे अकेले कैसे रहेंगे। रात बहार सरला के दिमाग में यही घूमता रहा।  सुबह जब गोपाल को थोड़ा आराम हुआ तो डॉक्टर ने घर जाने की इज्जाजत तो दी मगर दो चार दिन घर पर आराम करने की सलाह भी दी। रिक्शा कर के जैसे ही घर पहुंची तो उसने देखा के पड़ोस की एक बूढी अम्मा बच्चो के पास बैठी थी और बच्चो को नाश्ता करा रही थी। 

अम्मा को वह बच्चों के साथ देखकर संतोष के भाव के साथ सरला ने कहा - " ताई आप कब आयी यहाँ "

बूढी अम्मा ने कहाँ - "बेटा  में तो कल शाम से यही हु , जब तुजे गोपाल के साथ रिक्शा में जाते देखा तो मुझे कुछ गड़बड़ लगी तो मैं  दौड़कर घर आयी तो बच्चो ने बताया के गोपाल को तू अस्पताल ले कर गयी है , तो मैंने सोचा बच्चे अकेले है तो मै यही रुक गयी  , गोपाल कैसा है अब "

सरला ने चैन की साँस ली और कहा - " ये तो अब ठीक है बस डॉक्टर ने 2 -4 दिन  आराम करने को बोलै है "

" ताई आपका बड़ा अहसान रहेगा हम पर आपने  बच्चो का ध्यान रक्खा मुझे तो रात भर चिंता रही " -सरला ने कृतज्ञता के भाव से कहा 

" अरे बेटा इसमें एहसान कैसा, इंसान ही तो इंसान के काम आता है, जब तेरे ताऊ बीमार हुए तो गोपाल ही तो उन्हें डॉक्टर के ले गया था और दो दिन वही रहा था अस्पताल में  वर्ना  मैं  बुढ़िया कहा जाती " - बूढ़ी अम्मा ने जवाब दिया 

सरला बच्चो की चिंता से मुक्त होकर , बैठती ही है के तभी पड़ोस की विमला चाची हाथ में दूध के बाल्टी लेकर अन्दर आती है और बोलती है - आ गयी सरला , गोपाल ठीक है अब "

सरला हां में गर्दन हिला देती है 

विमला दूध की बाल्टी रखते हुए बोलती है - "ले तेरी गाय का दूध निकाल  दिया और घास पानी सब हो गया , शाम को एक बार फिर चक्कर लगा दूगी और हाँ  शाम का दूध तेरी रसोई घर में रखा है एक बार फिर उबाल लेना जो बचा होगा "

" चाची आपकी बहुत मेहरबानी ,आप ना आते तो गाय रात भर ऐसे ही खड़ी  रहती " - सरला ने कहा 

"अरी सरला कैसी बात करती है तू भी , इंसान ही तो इंसान के काम आवे है, एहसान तो गोपाल का है हम पर जब मेरी बड़ी बेटी कुसुम की शादी  हुई तो बारात दरवाजे पर आने को थी और खाने का कोई इंतजाम ना था तब गोपाल ने ही चावल का कट्टा लाकर दिया अपने घर से तब जाकर बारात के लिए दाल भात का इंतजाम हुआ था "- बिमला चाची  ने कहा 

बिमला चाची की बात सुनकर सरला गोपाल के मुँह की तरफ देख उनके नेक कर्मो को सोच  ही रही थी के तभी फूलसिंह आवाज़ लगता है - " प्रधान जी प्रधान जी क्या  हो गया "

गोपाल धीमी आवाज में -"बस कुछ नहीं फुल्लू भाई कल जरा से चक्कर  आ गए थे "

"क्या कहा डॉक्टर ने " - फूलसिंह ने पूछा 

" 2 -4  दिन आराम करने के लिए बोला है डॉक्टर ने इन्हे " - सरला ने जवाब दिया 

" ध्यान रखना प्रधान जी ,और किसी काम धाम की चिंता मत करना घास मैं रोज ला दुगा खेत से और गाय  को भी डाल जाया करूंगा "

सरला की तो जैसे सारी  चिंता ही दूर हो गयी थोड़ी  देर बैठ कर सभी अपने अपने घर चले गए मगर सरला चुप चाप बैठी गोपाल की और देख रही थी, गोपाल धीरे से पूछता है - " अब तू क्या सोच रही है किस चिंता में डूबी है "

"अब काहे की चिंता सारा काम तो तो आपने पहले ही निपटा दिया , आप सच ही कहते थे इंसान ही इंसान के काम आता है , आपके पुण्य कर्मो ने ही आज मुसीबत के समय हमारी सारी  चिंता दूर कर दी " - सरला आँखों से ख़ुशी के आंसू पोछते हुए।  दोनों बच्चे अपनी माँ के गले लगकर बैठ जाते है , और सभी मन ही मन ईश्वर का धन्यवाद करते है और चैन की साँस लेकर सरला भी पीछे कमर की टेक लगाकर आराम करने लगती है। 

-AC

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नालायक बेटा

कोशिश .....An Effort by Ankush Chauhan

85 साल के मास्टर गिरधारीलाल खटिया पर बीमार पड़े थे।  मास्टर जी बहुत मिलनसार स्वाभाव के थे और व्यवहार में बहुत अच्छे थे तो उनकी बीमारी की  सुचना से दूर - दूर से लोग उनका हालचाल जानने आ रहे थे। और अपने स्वभाव के अनुसार ही गिरधारीलाल भी सबकी आवभगत का प्रयास करते और जब भी कोई आता तो अपने छोटे बेटे अजय को आवाज़ लगाते  और अजय भी तुरन्त दौड़कर चाय पानी की वयवस्था करता और जब तक आगंतुक चाय पीते  मास्टर जी अपने किस्से सुनाते और सबके सामने अपने बेटे अजय की तारीफ करने का कोई मौका न छोड़ते।  
एक दिन  मास्टर जी के एक पुराने जानकर साथी मास्टर रामपाल जो उनके साथ ही विद्यालय में शिक्षक थे कहते है गिरधारी भाई आप तो कहते थे आपका छोटा बेटा अजय एकदम नालायक है कुछ नहीं करता आज आप उसकी  तारीफों के पुल बांध रहे है। 

गिरधारीलाल  मुस्कराते हुए "रामु भाई कभी कभी सच वो नहीं होता जो हमें दिखाई देता है। "

और गिरधारीलाल की आँखों के सामने पुरानी बातें फिर से जीवंत हो उठती है दरअसल गिरधारीलाल के तीन  बेटे और एक बेटी है  बड़ा बेटा रविंदर , मझला विजय और छोटा अजय और बेटी शीला अजय चारो में सबसे छोटा है।  चारो बच्चे पढ़ाई लिखाई में एक से बढ़ कर एक, आख़िर गिरधारीलाल जी  मास्टर जो  थे , तो अपने बच्चो की पढ़ाई का बहुत ध्यान रखते और हमेशा बच्चो को समझाते के तुम्हे पढ़ लिखकर बड़ा अफसर बनना है।  बड़े पद पर पहुँचो मान, प्रतिष्ठा प्राप्त करो और चारो बच्चे खूब पढ़ाई लिखाई करते एक एक कर सभी ने बारहवीं की परीक्षा उत्तीर्ण करके उच्च शिक्षा के लिए बहार गए,  बड़े बेटे ने MBBS पास किया और बड़े मेडिकल कॉलेज में डॉक्टर  बन गया , मझला बेटा IIT से इंजीनियरिंग कर विदेश में बड़ी नौकरी पर चला गया , बेटी ने सनातक के बाद सिविल परीक्षा  उत्तीर्ण की और वो भी विदेश सेवा में चली गयी। मगर न जाने क्या हुआ के छोटे बेटे  अजय ने ही मेधावी होने के बाद भी आगे पढ़ने से मना कर दिया और घर के पास एक छोटी सी दुकान कर ली और खेती बाड़ी का काम करने लगा।  बस यही बात थी जो गिरधारीलाल जी को अच्छी न लगी और वो अपने छोटे बेटे अजय से नाराज रहने लगे और सब जगह अपने तीनों बच्चो की खूब तारीफ किया करते और जब भी अजय का जिक्र आता तो यही कहते वो तो एक नंबर का नालायक है किसी काम का नहीं और घर पर भी दिन भर उसे कोसते रहते और रिटायरमेंट के बाद तो जब वो घर पर ही रहने लगे तो ये सिलसिला इतना बढ़ गया के अजय का नाम ही नालायक पड़ गया जब भी कोई काम हो गिरधारी लाल जी यही कहते ए  नालायक इधर सुन, जा जाकर बिजली का बिल जमा करा दे ,जा बाजार से सामान ले आ , और अजय हर बार मुस्कुराते हुए जी बाबू जी कह कर काम में लग जाता।  अजय की बीवी भी बहुत सुशिल थी वो भी दिन रात  माँ और बाबू जी की सेवा में लगी रहती।  

"अरे गिरधारीलाल जी कहाँ  खो गये" - रामपाल जी ने मास्टर जी को हिलाते हुए तेजी से आवाज़ लगायी 

गिरधारीलाल ने जवाब दिया  -" बस कही नहीं, यही था भाई"

गहरी चैन की साँस लेते हुए गिरधारी लाल जी फिर बोले - " रामु भाई पता है 3 साल पहले गुजरने से पहले तेरी भाभी ने मुझे एक डायरी दिखाई जानता है वो डायरी किसकी थी ?"

"किसकी डायरी कैसी डायरी" रामपाल ने आश्चर्य से पूछा 

गिरधारीलाल ने फिर अपने मित्र रामपाल को सारी घटना बताई के गिरधारीलाल  की पत्नी ने उसे अजय की एक डायरी दिखाई जिसके बारे में सिर्फ अजय और उसकी माँ को पता था जिसमे एक जगह अजय ने एक घटना लिखी की कैसे बचपन में  पड़ोस के चाचा  के देहात पर उनके बच्चे जो विदेश में बड़ी नौकरी करते थे, नहीं आ सके और वो चाचा अपने आखरी दिनों में अपनी बीमारी से अकेले ही लड़ते रहे , न तो कोई उनके साथ घर का देख-भाल के लिए था, न कोई पानी पूछने वाला। कभी - कभार कोई पड़ोस का थोड़ा बहुत देर के लिए आ जाये तो अलग बात , धन ,दौलत , रुपये पैसे की चाचा के पास कोई कमी ना थी , कमी थी तो बस दुःख और सुख को बाटने वालो की , उनके बच्चे भी रुपया पैसा तो खूब भेजते मगर अपने बड़े काम धंदो की व्यस्तता में मिलने आने का समय ही ना निकाल पाते  . और चाचा बस एक ही बात कहते " शायद मेरी ही गलती है की  मैंने अपने बच्चो को हमेशा पैसे के पीछे दौड़ना ही सिखाया और  पैसे को इतना बड़ा और जरुरी बना दिया के आज वो उनके लिए माँ बाप से भी बड़ा हो गया। "

उसी डायरी में अजय ने एक जगह अपने आगे पढ़ाई न करने का भी कारण लिखा उसमे लिखा था " अगर मैं ज्यादा  बड़ी पढ़ाई करुगा तो बहार जाकर नौकरी करनी पड़ेगी और घर और माँ बाप को छोड़ कर दूर रहना पड़ेगा।  अगर माँ , बाबू जी को साथ शहर ले जाने की भी सोचु तो , वो वहाँ खुश नहीं रह पाएंगे क्योकि उनकी जड़े  गांव में इतनी गहरी बस चुकी है अगर कही और ले जाया गया तो सुख जायेगे और मै कुछ ज्यादा पैसे कमाने के लिए उनकी ख़ुशी दाव पर कैसे लगाऊ "

और वो आगे लिखता है " और मेरे लिए भी पैसा, पद, प्रतिष्ठा से ज्यादा जरुरी मेरे माँ - बाबू जी का साथ और  सेवा है और वही मेरी असली ख़ुशी "

ये बाते  बताते हुए गिरधारी लाल जी का गाला हल्का सा भर आया और उन्होंने कहा " बस रामपाल भाई उस दिन से मेरा उसके प्रति नजरिया बदल गया "

रामपाल  , गिरधारी लाल जी के कंधे पर हाथ  रखते हुए बोले - " गिरधारी लाल जी आखिर बेटा  तो आपका ही है , आपके ही संस्कार तो आएंगे अपने भी तो उस ज़माने में एमएससी  होने के बावजूद यहाँ गॉव के पास प्राइमरी स्कूल चुना जबकि आप भी तो शहर जाकर किसी बड़े कॉलेज मे प्रोफ़ेसर बन सकते थे।  "

दोनों के चेहरे पर  एक मुस्कुराहट आ जाती है 

तभी रामपाल जी पूछते है - " कहाँ है तुम्हारे अजय बाबू "

और सामने से आते अजय की तरफ इशारा करके गिरधारी लाल जी  - " लो आ गया नालायक "
और दोनों जोर जोर से हंसने लगते है.

-AC

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How to select a lathe machine hindi हिंदी

कोशिश .....An Effort by Ankush Chauhan

लेथ को हिंदी में खराद मशीन कहा जाता है। ,यह सबसे पुरानी  मचिनो में से एक है 1797 में एक अंग्रेज  हेनरी मॉड्स्ले (Henry maudslay) ने thred स्क्रू कटाई लेथ  का डिज़ाइन किया। यह सबसे लोकप्रिय टर्निंग टूल में से एक है ,खराद  का साइज Swing तथा दो केन्द्रो Head stock ( शीर्ष केंद्र) और tail stock (पूछ केंद्र ) के बिच की दुरी से किया जाता है। 


लेथ का मुख्य कार्य वर्क पीेछे से मेटेरियल रिमूव करना है इसमें कार्य खण्ड (Job ) को घुमाकर नुकीले कटाई टूल को इसकी लम्बाई के तिरछा (across ) चला कर धातु को छिला जाता है 
1. Straight turning स्ट्रेट टर्निंग (सीधे खरदना )- लम्बाई से छीलना 
2.taper turning टेपर टर्निंग ( तिरछा खरदना ) - शंकु आकर छीलना 

3.thread cutting थ्रेडिंग ( चूड़ी काटना)
4. Grooving ग्रूविंग (ग्रुव  काटना )
5. Facing- फेसिंग  ( फेस समतल करना)
6.knurling ( नरलिंग )
7.forming फॉर्मिंग - रूप देना 
8.drilling ड्रिलिंग - छेद करना 
9. boring बोरिंग - छेद बड़ा करना 
10.parting off पार्टिंग ऑफ  - काट कर अलग करना 
11.tapping  टैपिंग भीतरी चूड़ी काटना 
और बहुत से अन्य करए है जो लेथ दवरा किये जाते है 
लेथ के साइज का निर्धारण करने के लिए निम्न बिन्दुओ को ध्यान में रखा जाता है 
1.स्विंग डायामीटर - ये वो अधिकतम डायामीटर जिस साइज का जॉब मशीन पर बिना बेड  को छुए घूम सकता है  
2.स्विंग डायामीटर ओवर कैरिज - ये वो अधिकतम  डायामीटर जिस साइज का जॉब लेथ के सैंडल के ऊपर से भी घूम सकता है यह .स्विंग डायामीटर से काम होता है 
3. सेण्टर की लेथ के बेड से ऊंचाई 
4.सेंटर के बिच की दुरी - इस लंबाई का अधिकतम जॉब सेंटर के बीच लगाया जा सकता है 
5. बोर डायमीटर ये वो अधिकतम साइज है जिसका रोड हेड स्टॉक के बोर के अंदर से गुजर सकता है 
ये कुछ  महत्वपूर्ण उपाय हैं जिन्हें हमें खराद मशीन ऑर्डर करने से पहले जानना आवश्यक है। और कुछ अन्य पैरामीटर हैं स्पिंडल स्पीड की रेंज, फीड्स की संख्या, मीट्रिक और BSW  थ्रेड की संख्या और रेंज जिन्हें काटा जा सकता है, लीड स्क्रू की पिच और पावर इनपुट आदि।
आज लेथ मशीन के विभिन्न रूप उपलब्ध हैं उनमें से कुछ टेरेट लेथ, सीएनसी लेथ, लाइट ड्यूटी, मीडियम ड्यूटी और हैवी ड्यूटी लेथ मशीन हैं। सर्वोत्तम परिणाम प्राप्त करने के लिए अपनी आवश्यकताओं के अनुसार खराद मशीन का चयन करना महत्वपूर्ण है। उदाहरण के लिए, यदि आपकी आवश्यकताएं अधिक हैं और आपको अधिक  प्रयोग  के लिए एक तेज और कुशल मशीन की आवश्यकता है, तो एक मानक लाइट ड्यूटी लेथ के लिए जाने के बजाय एक मजबूत  हैवी ड्यूटी लेथ   खराद मशीन एक अच्छा विकल्प होगा जो विशेष रूप से डिजाइन की गई मशीन की तुलना में तुलनात्मक रूप से सस्ता है। थोक या भारी संचालन के लिए। धातु को आकार देने के लिए एक भारी शुल्क खराद मशीन आमतौर पर उच्च गति, स्वचालित कार्यात्मकताओं और तकनीकी रूप से उन्नत सुविधाओं से सुसज्जित होती है और इसलिए हलकी और मध्यम प्रयोग के लिए डिज़ाइन की गई मशीन की तुलना में हेवी ड्यूटी  तेज और कुशल कार्य के साथ बेहतर प्रदर्शन दे सकती है। हम इन मशीनों पर भी चूड़ी  बना सकते हैं वीडियो में  पारंपरिक खराद मशीनटर्निंग और चूड़ी  काटने का कामकाम कर रही है।

https://www.youtube.com/watch?v=gZ8Srt2pe4U




ट्रोब  मशीन एक कैम संचालित मशीन है जो खराद मशीन के कई ऑपरेशन कर सकती है। यह एक स्वचालित प्रकार की मशीन है जिसमें सेटिंग करने के बाद , मशीन स्वचालित रूप से कार्य कर सकती है  कार्य के अनुसार अलग-अलग कैम सेट करके मशीन से अनेक ऑपरेशन एक साथ किये जा सकते है  है। सीएनसी की  तुलना में इसकी  लागत बहुत कम है और सामान्य खराद की तुलना में अच्छी उत्पादन दर दे सकती है।

ट्रोब मशीन के कार्य  के लिए वीडियो देखे 

Traub machine operation video






Traub machine operation with side drill


सीएनसी खराद एक कंप्यूटर नियंत्रित मशीन है जो छोटे और बड़े दोनों जॉब  के लिए अच्छी है। यदि आपको  पूरी तरह से स्वचालित मशीन की आवश्यकता है तो सीएनसी खराद मशीन के लिए जाएं। एक सीएनसी खराद मशीन कंप्यूटर प्रोग्राम से चलती है  और इसलिए उन लोगों के लिए एक अच्छा विकल्प है जो कार्यस्थल पर श्रम लागत को कम करना चाहते हैं। चूंकि ये कंप्यूटर नियंत्रित मशीनरी हैं, इसलिए इसे प्रोग्राम करने के लिए विशेषज्ञ तकनीशियन की आवश्यकता होती है।

what lessons we learned from coronavirus


कोशिश .....An Effort by Ankush Chauhan

भारत मे 22 मार्च 2020 को प्रधानमंत्री जी के आह्वान पर जब पहली बार जनता कर्फ्यू के नाम से लॉक डाउन लगा तो शायद किसी को अहसास भी नही होगा के इसके बाद देश और दुनिया की तस्वीर बदल जाएगी। इसके बाद फिर 21 दिन का लॉक डाउन प्रवासी मजदूरों का पलायन और देश मे बढ़ते कोरोना के मामले , रोज लोग टीवी के सामने बढ़ते आकड़ो के देखते तो कभी भूख से मरते लोगो की खबरे मगर इन सबके बीच सरकार और आम जनता द्वारा की जा रही सेवा की खबरे कुछ राहत देती । इसी तरह 2020 निकल गया और लोगो ने 2021 का स्वागत ऐसे किया मानो अब सबकुछ बदले वाला है मगर ऐसा हुआ नही स्तिथि 2020 से से ज्यादा खराब हो गयी । चीन के वुहान शहर से फैला एक वायरस पूरी दुनिया को इस तरह अपनी चपेट के ले लेगा किसी ने शायद कभी सोचा भी न हो।
मगर ये वायरस हमे बहुत कुछ सीखा गया जीवन की बहुत सी सच्चाई से रूबरू करा गया आगे भी जाने और क्या क्या सीख सकता है । इस वायरस ने हमे बताया कि इंसान की सारी तरक्की और विकास कुदरत के सामने बोन है दुनिया के सभी शक्तिशाली और समृद्ध देश लाचार से दिखाई दिये शायद ही कोई देश हो जो इससे प्रभावित ना हुआ हो। जहाँ एक और देश दुनिया मे आवाजाही ठप हो गयी साथ ही लोग गारो में बंद होने को मजबूर हो गए । काम धंदे , व्यपार , रोजगार सब ठप से हो गया मगर वही दूसरी और लोग सेवा के लिये भी आगे आये कुछ लोगो ने निस्वार्थ सेवा की भूखों तक भोजन पहुँचाया लोगो तक मदद पहुचायी तो कही लोग ने इस आपदा में भी सेवा के नाम पर प्रचार कर अपनी राजनीति और नाम को चमकाने के कार्य किया मगर यही समाज है जहाँ अच्छे और बुरे सभी तरह के लोग है और कही लोगो ने ऑक्सीजन और दवाओं की काला बजारी की तो कही कुछ लोग अपब सबकुछ भूल कर भी सेवा के लिए आगे आये। कही लोग अपनो से ही दूर हो गये, कही लोगो ने गैरो को भी अपना बना लिया। वक़्त इस भी आया के इंसान इंसान को देखकर डरने लगा और कही रोजी रोटी के लिए हर डर से लड़ने लगा। कुछ लोगो ने अपने लालच के लिए भी जोखिम उठाये । तो कुछ लोग बस लाचार हर परिस्थिति को देखते रहे।
फेफड़ो की इस बीमारी का सबसे ज्यादा असर रिश्तों पर दिखा लोगो पर डर इस कदर हावी दिखा के बीमार व्यक्ति को देखकर लोग उसका हाल पूछने के बाजए दूरी बनाने लगे ,  सावधानी ही इस बीमारी को बढ़ने से रोक सकती थी मगर वो सावधानी कब दूरियों में बदल गयी पता ही नही चला सामाजिक दूरी के नाम पर समाज मे इंसानों के बीच दूरी ही बाद गयी।
इंसान को भी अपनी असली जरूरतों का असहास होने लगा क्या जरूरी क्या गैर जरूरी फर्क पता लगने लगा शहरों की ओर आकर्षित लोग भी गाँव की और रुख करने लगे । जिनके पास गांव में ठिकाना नहीं था वो भी एक वहाँ एक आश्यने कि तलाश करने लगे।
जिन बच्चो का दिन गलियों में गुजरता था वो भी घर की दीवारों में कैद हो गये वो मासूम तो ये भी नही जानते थे कि आखिर ये हो क्या रहा है कभी स्कूल न जाने के बहाने ढूढ़ने वाले बच्चे आज स्कूल की एक झलक को भी तरसने लगे। खेल कूद यारो दोस्तो का साथ सब अचानक से छूट गया। अब तो वो भी बस मोबाइल में ही खोने लगे। न जाने क्या होगा इन बच्चो का भविष्य।
समाज मे चाहे कितनी भी विसंगति हो फिर भी शायद ही कोई तबका और वर्ग हो समज का जो इससे प्रभावित ना हुआ हो। मगर इतना सब कुछ होने के बाद भी क्या हम कुछ समझ पाए क्या हम कुछ सिख पाये?

क्यो दौड़ता था तू , ना जाना ये कभी ।
आज थम सा गया है , फिर भी ना माना अभी।
जरूरत है क्या जिंदगी की,  ना जाना ये कभी।
सिमट सी गयी है जिंदगी,  फिर भी ना माना अभी।।

निकला था घर से कमाने को,  खुशियां जहां भर की।
आज हर खुशी को बचाती है, ये दीवारे ही घर की।
जिस रौनक को देखकर , पाली थी ख्वाहिश नगर की।
उन्ही गलियों को देखकर आज, याद आती है गॉव के घर की।

कही ना कही अहसास तो ये ,  सभी के दिलो में है।
जरूरत जीवन की इतनी नही , जितनी हमने बनाई थी।।
जब नही था ये सब, तब बैठ के खाने को साथ वो एक चटाई थी।
याद है वो पहली कहानी, जो दादी माँ ने छोटी सी खटिया पे सुनाई थी।

तलाश में जाने किसकी, अब तक ये दौड़ लगाई थी।
पहुँच कर हर मंज़िल पर, एक नई मंज़िल ही पायी थी।।

-AC

why motera stadium is renamed narendra modi stadium

कोशिश .....An Effort by Ankush Chauhan
अहमदाबाद में न सिर्फ देश बल्कि दुनिया का सबसे बड़ा स्टेडियम बना, मगर ये अपने नाम की वजह से विवादों में आ गया  है क्योंकि इस सबसे बड़े क्रिकेट स्टेडियम का नाम नरेंद्र मोदी स्टेडियम रखा गया है। इसे अब तक सरदार पटेल स्टेडियम या मोटेरा स्टेडियम के नाम से जाना जाता था। इसे पीएम मोदी का ड्रीम प्रोजेक्ट बताया जा रहा है जिस कारण इसका नाम पीएम मोदी के नाम पर नरेंद्र मोदी स्टेडियम रखा गया है। इस तरह किसी पीएम का अपने ही नाम पर किसी देश की धरोहर का नाम रख लेना कहा तक सही है कहा तक गलत ये तो हम नही कह सकते वैसा ऐसा पहली बार तो नही हुआ हमारे देश मे तो पीएम पहले भी अपने नाम पर चौक का नाम या खुद को भारत रत्न भी देने का काम कर चुके है 

लेकिन सिर्फ विवाद यही तक नही इसमें विवाद का एक और कारण इसमें बने दो पवेलियन का नाम देश के दो बड़े उधोगपति के नाम पर रखना भी है लेकिन ये भी कोई नई बात नही। खैर छोड़िये वो सब अलग मामले है हम इन विवादों में नही पड़ना चाहते । 

हम आपको यह बताना चाहते है कि यह देश ही नही दुनिया का सबसे बड़ा स्टेडियम है साथ ही यहाँ 1,32,000 लोगों के बैठने की क्षमता है. 2020 में तैयार हुए इस स्टेडियम को बनाने में करीब 800 करोड़ रुपये (यानी 110 मिलियन अमेरिकी डॉलर ) का खर्च आया। अहमदाबाद का यह स्टेडियम 63 एकड़ में फैला हुआ है और इस स्टेडियम में 76 कॉरपोरेट बॉक्स, चार ड्रेसिंग रूम के अलावा तीन प्रैक्टिस ग्राउंड भी हैं. एक साथ चार ड्रेसिंग रूम वाला यह दुनिया का पहला स्टेडियम है. इसके साथ ही वहाँ बनने वाला यह एक क्रिकेट स्टेडियम ही नही है यहाँ पूरा स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स है जिसका नाम सरदार पटेल स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स है इसे ओलम्पिक की दृष्टि से सभी खेलो के आयोजन की क्षमता के लिये तैयार करने की योजना है आज तक हमारे देश मे ओलम्पिक के लायक कोई भी स्टेडियम नही था जहाँ सभी प्रकार की सुविधाएं हो। सरकार द्वारा कहा जा रहा है कि यहाँ इस तरह की सुविधा कर दी है कि 6 महीने में ओलंपिक, एशियाड और कॉमनवेल्थ जैसे खेलों का आयोजन कर सकता है. और अहमदाबाद को अब स्पोर्ट्स सिटी के रूप में जाना जाएगा।

इन सब सुविधाओं से पूर्ण किसी परिसर को बनाना तो बड़ा कार्य है ही मगर उससे बड़ा कार्य है उसका रख रखाव जिसका ध्यान रखना बहुत जरूरी है साथ ही जरूरी है इसका सही सदुपयोग ताकि इसका लाभ देश को मिल सके और देश मे विभन्न खेलो को बढ़ाने सहायता मिले कही ऐसा न हो के ये देश के चुनावी कार्येक्रम का ही हिस्सा बन कर राह जाये। इसकी असली सार्थकता तभी है जब ये देश मे खेलो के विकास में अपनी भूमिका निभाये।

और जहाँ तक बात है नाम की तो स्वयं के नाम पर किसी भी योजना या धरोहर को बनाना सही परंपरा नही है और इसका दोषी कोई एक नही है क्योंकि सभी ने अपने नामो पर जाने क्या क्या किया है खुद को पुरस्कार देना या खुद के नाम पर चौक बनना , योजनाये बनाना इसकी तो एक परम्परा सी बन गयी है लगता है सब परंपरा को ही निभा रहे है।
और किसी ने कहा है नाम मे क्या रखा है  मगर राजनीति में तो नाम मे सब है क्योंकि कुछ लोगो की तो राजनीति ही उनके नाम पर ही टिकी है । 

Kumbh mela haridwar 2021, हरिद्वार कुम्भ मेला 2021

कोशिश .....An Effort by Ankush Chauhan


हरिद्वार कुम्भ मेला 2021 के लिये पूरी तरह तैयार है हर तरफ कुम्भ की अनुपम छटा फैली है हर तरफ सुंदर नज़ारे और मनमोहक नज़ारे है शहर की दीवार रंगबिरंगी कलाकृतियों से सजी है जो हमारी संस्कृति को समेटे हुए है।



वैसे तो हरिद्वार में कुम्भ मेला हर 12 साल के बाद होता है, लेकिन इस बार यह ग्रह योग के चलते 11 साल में ही हो रहा है। इसलिये हरिद्वार में पड़ने वाला यह कुम्भ इस 1 साल पहले 2021 में हो रहा है।



पौराणिक कथाओं के अनुसार समुद्र मंथन के समय एक अमृत कलश और विष निकला था  जिसमे अमृत देवताओ के हिस्से और विष राक्षस के हिस्से में आया था विष को तो भगवान शिव ने पीकर पूरी सृष्टि की रक्षा की थी। शिव के उस रूप को समर्पित एक मंदिर नीलकंठ महादेव का मंदिर भी हरिद्वार से कुछ दूरी पर ऋषिकेश में नीलकंठ पर्वत पर स्तिथ है।
समुद्र मंथन में निकले उस अमृत की कुछ बूंदे देश के चार स्थानों पर गिरी और उन चारों स्थानों हरिद्वार, प्रयागराज, नासिक और उज्जैन। चारों नगरों में  कुंभ का आयोजन होता है और यह आयोजन प्रत्येक नगर में ग्रहों की स्थिति विशेष में होता  है। जैसे कुम्भ राशि में बृहस्पति का प्रवेश होने पर एवं मेष राशि में सूर्य का प्रवेश होने पर कुम्भ का पर्व हरिद्वार में आयोजित किया जाता है। और यह सयोग ही इस बार 2021 में ही पड़ रहा है। इसी लिये कुम्भ जो 12 साल में होता था इस बार 11 साल में ही हो रहा है इससे पहले 2010 में हरिद्वार में कुम्भ का आयोजन किया गया था।



कुंभ में नागा साधुओं और अखाड़ो का जिक्र न हो तो कुम्भ अधूरा है कहा जाता है के ये अखाड़े धर्म रक्षा सेना या संगठन है जो सनातन धर्म की रक्षा के लिए गठित किए गए हैं। विधर्मियों से अपने धर्म, धर्मस्थल, धर्मग्रंथ, धर्म संस्कृति और धार्मिक परंपराओं की रक्षा के लिए किसी जमाने में संतों ने मिलकर एक सेना का गठन किया था। वही सेना आज अखाड़ों के रूप में जानी जाती  है।

कहा जाता है के आदिशंकराचार्य ने देश के चार कोनों में चार मठों और दसनामी संप्रदाय की स्थापना की। बाद में इन्हीं दसनामी संन्यासियों के अनेक अखाड़े प्रसिद्ध हुए,
देश मे धर्म रक्षा के लिए बने प्रमुख अखाड़ो में आवाह्‍न अखाड़ा,  अटल अखाड़ा, महानिर्वाणी अखाड़ा,आनंद अखाड़ा, निरंजनी अखाड़ा और जूना अखाड़े का उल्लेख मिलता है। बाद में भक्तिकाल में इन शैव दसनामी संन्यासियों की तरह रामभक्त वैष्णव साधुओं के भी संगठन बनें, जिन्हें उन्होंने अणी नाम दिया। अणी का अर्थ होता है सेना। यानी शैव साधुओं की ही तरह इन वैष्णव बैरागी साधुओं के भी धर्म रक्षा के लिए अखाड़े बनें। जिनमे मुख्य
श्रीपंचायती अखाड़ा बड़ा उदासीन, श्री पंचायती निर्मल अखाड़ा है।
विभिन्न धार्मिक समागमों और खासकर कुंभ मेलों के अवसर पर साधु संगतों के बीच समन्वय के लिए अखाड़ा परिषद की स्थापना की गई, जो सरकार से मान्यता प्राप्त है। इसमें कुल मिलाकर तेरह अखाड़ों को शामिल किया गया है। प्रत्येक कुंभ में शाही स्नान के दौरान इनका क्रम तय है।



हरिद्वार कुंभ का पहला शाही स्नान, महाशिवरात्रि (Mahashivratri) के अवसर पर 11 मार्च को होगा. 11 मार्च शिवरात्रि को पहले शाही स्नान पर संन्यासियों के सात और 27 अप्रैल वैशाख पूर्णिमा पर बैरागी अणियों के तीन अखाड़े कुंभ में स्नान करते हैं. 12 अप्रैल सोमवती अमावस्या और 14 अप्रैल मेष संक्रांति के मुख्य शाही स्नान पर सभी 13 अखाड़ों का हरिद्वार कुंभ में स्नान (Kumbh Snan) होगा.

कोरना महामारी के दौर में आयोजित होने वाला यह कुंभ मेला (Kumbh Mela) बीते अन्य कुंभ मेलों से काफी अलग होगा. इस बार कुंभ मेले के दौरान किसी भी स्थान पर संगठित रूप से भजन एवं भण्डारे के की मनाही रहेगी. उत्तराखंड सरकार ने कोरोना संक्रमण (Corona Virus) को रोकने हेतु यह नए नियम जारी किए हैं. कोरोना के कारण केन्द्र सरकार और राज्य सरकार द्वारा कुछ गाइडलाइन जारी की गई है जिनका पालन करना अनिवार्य है। सरकार की गाइडलाइन के अनुरूप ही अपना हरिद्वार यात्रा का पालन बनाये।
हरिद्वार आने के लिए आप ट्रैन या बस द्वारा सीधे हरिद्वार शहर भी आ सकते है या हवाई मार्ग से जोलीग्रांट हवाई अड्डा आकर वह से टैक्सी द्वारा हरिद्वार आसानी से पहुच सकते है । हरिद्वार में आपके ठहरने के लिए कई बड़े छोटे होटल और धर्मशाला आसानी से उपलब्ध है फिर भी आसानी के लिए पहले से बुकिंग करके रखें तो ज्यादा सही होगा क्योंकि कुम्भ में काफी भीड़ भी होती है।
अगर आप कही दूर से आ रहे है तो कुंभ में हरिद्वार के साथ आसपास के क्षेत्र ऋषिकेश या देहरादून भी घूम सकते है या थोड़ा और समय निकाल कर उत्तराखंड की पहाड़ी वादियों का भी लुफ्त उठा सकते है।

-AC



What is difference between योग and yoga?

कोशिश .....An Effort by Ankush Chauhan
आज पूरे विश्व में लोग योग के विषय में जानते है ये तो सच है मगर कितना ? क्या कभी सोचा है के योग वास्तव में है क्या ? क्या योग सिर्फ शरीरिक व्यायाम है लचीलापन प्राप्त करना ही योग का उद्देश्य है?
मुझसे किसी ने पूछा आप कितना घंटे योगा करते है?
मुझे बड़ा अचरज हुआ कोई योग का जानकार ऐसा सवाल तो नही पूछ सकता 
मित्रो योग दिन के कुछ घंटों के लिए की जाने वाली कोई क्रिया नही है ये तो एक जीवन पद्दति है जिसे आपको अपने जीवन मे अपनाना पड़ता है।हमेशा याद रखना

"योग किया नही जाता, योग जिया जाता है ।"

योग जीवन शैली है जिसे जीवन मे अपनाओगे जीवन को योगमय बनाओगे तभी योग के असली आनंद को प्राप्त कर पाओगे।
योग सिर्फ शरीर को प्रभावित करने वाली क्रिया नही ये तो आत्मा तक पर अपना प्रभाव डालती है अगर हम इसे सही अर्थों में समझ सके और इसे अपने जीवन मे सही रूप में अपनाये तो ये जीवन को परिवर्तित कर सकता है। परन्तु आज हम योग को जिस रूप में देख रहे है उसमें केवल शारीरिक व्यायाम जिन्हें योग की भाषा मे आसन कहा जाता है वही तक सीमित हो गया है।
लोग सिर्फ आसनों के प्रदर्शन में ही अपना सारा ध्यान लगा देते है । जबकि 

"योग प्रदर्शन का नही, दर्शन का विषय है"

जब तक आप इसे सही अर्थों में नही समझ पाएंगे योग को सही रूप में नही अपना पाएंगे और न ही इसका पूर्ण लाभ अपने जीवन मे पा सकेंगे।
ऐसा नही है शारीरिक व्यायाम से कोई लाभ नही , इसके भी अपने लाभ है परंतु वो लाभ सिर्फ शरीर तक ही सीमित है , आसन हमारे शरीर को दृढ़ता प्रदान करते है , शरीर को मजबूत करते है तो वही साथ ही जब इनके साथ प्राणायाम को भी किया जाता है तो हमे मानसिक शांति भी प्राप्त होता है। शरीर और मन दोनों व्यादि से मुक्त होते है और स्वास्थ्य को प्राप्त करते है ।
परन्तु योग इससे कही ज्यादा प्रदान करता है अगर हम इसे सही रूप में अपनाये। ये आपके शरीर को स्वस्थ बनाने के साथ जीवन को भी आनंद और सुख से भर देता है ये सुख शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक हर प्रकार का होता है।
योग लोक परलोक सभी को सुधारने वाला अद्भुत विज्ञान है।
विज्ञान इसलिए क्योंकि अगर किसी परिणाम को किसी निश्चित विधि द्वारा हर बार प्राप्त किया जा सके तो वो विज्ञान ही होता है।
अगर आप एक ज्ञानी गुरु के मार्गदर्शन में योग को सही रूप में करे तो शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक निश्चित ही प्राप्त होते है। और जिसे हर सुख प्राप्त हो उसे और क्या चाहिये।
योग को समझने के लिए इसके प्रमाणिक ग्रंथो का अध्ययन करना चाहिय और योग का सबसे प्रमाणिक ग्रंथ है 
"पंतजलि योग सूत्र"
पतंजलि योग सूत्र में योग की अवस्था को प्राप्त करने के मार्ग का पूर्ण वर्णन मिलता है
उसके अनुसार सदाहरण मानव के लिए योग का जो मार्ग बताया गया है वो है अष्टांग योग का मार्ग , अष्टांग योग के आठ अंगों में से सबसे प्रारंभिक है

यम- अहिंसा, सत्य , अस्तेय, ब्रह्मचर्ये, अपरिग्रह
नियम- शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय, ईश्वरप्राणिधान

फिर उसके बाद आते है आसन, प्रणायाम, प्रतियहार, धारणा, ध्यान , समाधि।

इनमे सत्य और संतोष दो ऐसे विषय है जो आज के समाज मे मिलना सबसे कठिन है,  लोग अपने छोटे छोटे स्वार्थों को सिद्ध करने के लिए झूठ बोलने में तनिक भी संकोच नही करते
और दुनिया मे फैले विभिन्न भोग विलास को देखकर वो संतोष को खो देते है। और फिर तलास करते है सच्चे सुख और आंनद की वो नही जानते के वो जिन मोह माया के बंधनों में सुख की तलाश कर रहे ही वो सभी भौतिक संसाधन सिर्फ दुःख के ही दे सकते है।
सांसारिक संसाधनों का उपयोग सिर्फ जीवन यापन तक ही सीमित होना चाहिये इसे अधिक नही । 
और  जीवन मे सदैव सत्य के पालन का प्रयास करना चाहिय अपने निजी स्वार्थों के लिए इस महाव्रत को कभी नही तोड़ना चाहिय तभी हम योग को सही मायनों में ग्रहण कर सकते है।
और अपने जीवन को योगमय बना सकते है।





मैं किसान हू कोई मेरी भी सुनो

कोशिश .....An Effort by Ankush Chauhan


किसान के लिए लड़ कौन रहा है किसान तो बस मोहरा है इस रजनीतिक लड़ाई का और पीसना भी उसी को है इस लड़ाई में 
ना तो सरकार ने कानून बनाने से पहले किसान  के हर हित का सोचा, ना आज उसकी लड़ाई लड़ने का ढोंग करने  वाले सोच रहे है।
कानून में खामिया है वो तो सविधान में भी थी उसे तो हमने रद्द नही किया समय समय पर जरूरत के हिसाब से उसमे संशोधन किये। अगर ये नेता भी किसान के सच्चे हितेषी होते तो ये इस बात पर चर्चा करते के कानून में क्या होना चाहिये या क्या नही होना चाहिये जो कमियां है उस पर बात करते , मगर मकसद तो बस राजनीतिक रोटियां है।
और इन राजनीतिक गिद्दों का मंडराना भी दिखा रहा है के ये माहौल खराब कर अपनी रोटियां सेंकने के लिए मंडरा रहे हैं।
आज अगर कानून ज्यो का त्यों रहता है या रद्द हो जाता है दोनों परिस्थितियों में नुकसान तो किसान का ही है। वो किसान जिसका घर ही खेती से चलता है खेती जिसकी रोजी रोटी है। 
उनका क्या बिगड़ेगा जिनकी रोटी उनकी राजनीति की दुकान से आती है।
इससे बड़े दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है के लोगो मुद्दों का विरोध और समर्थन भी ये देखकर करते है के कौनसी पार्टी पक्ष में है कौन इसके विपक्ष में। लोगो को मुद्दों से कोई मतलब नही , सिर्फ अपने नेताओं की गुलामी करनी है। गुलामी का स्तर ये है के एक किसान को आतंकवादी कहने से और गालिया देने से भी नही चूक रहा और दूसरा मुद्दों से भटके एक राजनीतिक आंदोलन का समर्थन कर रहा है क्योंकि दोनों के आकाओ का यही आदेश है।
और किसानों के नाम पर छिड़ी इस जंग में पीस किसान रहा है।मगर क्या फर्क पड़ता है वो तो सदियों से ये झेलता आया है वो तो हर साल अपनी फसल को लेकर मंडियों के चक्कर लगाता है और बिचौलियों की मिन्नते करता है, वो तो हर साल अपने गन्ने के पेमेंट का इंतजार करता है, वो बिचौलियों द्वारा उसकी पर्ची कटवा देने पर उसी को अपना गन्ना आधा पौन दाम में देकर आता है। वो अनाज की लागत भी वसूल न होने पर भी उसे बेचने पर मजबूर होता है और फिर भूख से लड़ता अगली फसल का इंतजार करता है। वो कभी चिलमिलती धूप में पसीना बहता है तो कभी कड़कती सर्दी में आधी रात खेत मे बारी का इंतजार कर पानी देकर आता है।
वो देखता है उन राजनेताओं को जो उसके नाम पर राजनीति करते है और महलो में रहकर शकुन की जिंदगी बिताते हैं।
और वो दिन रात एक करके भी रूखी सुखी खाकर मुश्किल से अपने बच्चो को पढ़ाता और अपने घर को पक्का कर पाता है।
डॉक्टर अपने बच्चे को डॉक्टर बनाना चाहता है, नेता बच्चे को नेता , अभिनेता बच्चे को अभिनेता, किसान नेता के बच्चे किसान नेता बनते है पर जिस किसान के इस देश मे इतने चर्चे है  वो नही चाहता के उसके बच्चे किसान बने । 
क्योकि उसका दर्द ना तों कोई देख सकता है ना ही कोई समझ सकता है, 
जय जवान जय किसान का नारा भी सिर्फ भाषणों तक ही सीमित है क्योंकि किसान को ना तो वो सुविधा मिलती है ना ही सम्मान।
खेत मे काम करते सिर्फ उसके हाथों की रेखाये ही नही मिटती उसकी किस्मत की रेखाये भी मिट जाती है। उसके पैरों की दरारे कब सूखती जमीन से भी गहरी हो जाती है वो खुद भी समझ नही पता।
और आज जब वो देश की इन परिस्थितियों को देखता होगा तो सोचता तो होगा क्यो ये लड़ाई सिर्फ उसके नाम पर है उसके लिये नही?
-AC

अयोध्या का फैसला

कोशिश .....An Effort by Ankush Chauhan
ये कहानी है अयोध्या के फैसले की आज अयोध्या में भगवान राम का मन्दिर भी जल्द बन जायेगा मगर ये कहानी है तब की जब फैसला अदालत में था।
आज अयोध्या पर फैसला उच्चतम न्यायलय के समक्ष है कभी इसी अयोध्या नगरी के समक्ष सती नारी सीता का फैसला था। कहा जाता है के अग्नि में तप कर सोना कुन्दन  बन जाता है लेकिन तब नारी अग्नि परीक्षा देकर भी अपने सतित्व का प्रमाण नहीं दे पायी। 
जिन राम के मन्दिर के लिए आज मामला न्यायाधीश के समक्ष है तब वो राम स्वयं न्यायाधीश होकर भी न्याय ना कर सके। मगर शायद वो निर्णय ना तो उस राजा के लिए आसान रहा होगा ना ही उस पति के लिए। वो निर्णय उस न्यायशील राजा का न्याय था या उनके द्वारा भूल वश किया गया अन्याय। 
आज कलयुग में भी न्यायालय साक्ष्य , गवाह मांगता है बड़े से बड़े दोषी को भी अपना पक्ष रखने का अवसर देता है परन्तु तब न तो किसी ने उस नारी का पक्ष सुना और साथ ही उस नारी के सभी साक्ष्यों को भी नज़रअंदाज़ किया गया। एक आक्षेप जनमत पर भारी क्यों था सवाल आसान है परन्तु निर्णय आसान न था। 
सवाल जितना सरल दिखता है निर्णय उतना ही जटिल था वो तब  भी उतना ही जटिल था और आज भी। क्योकि बात सिर्फ एक निर्णय की नही थी जो कुछ साक्ष्यों के आधार पर ले लिया जाए बात उस परम्परा की थी जो सदियों तक आने वाली पीढ़ियों का मार्गदर्शन करें।
राम ने अपना राजधर्म निभाया सीता ने पतिव्रत धर्म और लव कुश ने अयोध्या नगरी में न्याय की याचना कर अपना पुत्रवत धर्म और आज फैसला करना था अयोध्या को।
मगर फैसला तो तब भी अयोध्या ने ही किया था जिसने राजा राम को ऐसा निर्णय करने पर विवश किया जिसने न सिर्फ राम को उनकी अर्धागिनी से अलग किया बल्कि एक पतिव्रता, देवी स्वरूप नारी को फिर से वनों की ठोकर खाने पर मजबूर कर दिया । हा फिर से क्योकि वो पहले भी तो 14 साल का वनवास काट कर आई थी जो उसके पति को मिला था उसने वनवास में अपने पति का साथ दिया मगर आज पति ने उसका साथ क्यो नही दिया ऐसी क्या मजबूरी थी उस पति की ?
यह कहानी किसी साधारण नारी की नही यह तो उस नारी की गाथा है जो एक राजा की पुत्री थी और उसी अयोध्या के राजा की पत्नी मगर कहते है ना एक व्यक्ति राजा बनने के बाद पहले एक राजा होता है फिर पुत्र, पिता या पति । उसके लिए राजधर्म ही सर्वोपरि होता है और होना भी चाहिए क्योकि राजा को तो ईश्वर का रूप माना जाता है और ईश्वर के लिये तो सभी एक समान होते है।इसलिये राजा के लिये भी प्रजा की हर एक आवाज़ महत्वपूर्ण होती है। इसलिये प्रजा में उठी वो आवाज़ उस राजा के लिए भी मत्त्वपूर्ण थी , वो आवाज़ जिसने जिसने उस सती नारी पर मिथ्या दोष मढ़े और उस नारी को वन में बेसहारा छोड़ने का दंड मिला। हाँ दण्ड ही तो था क्योंकि न्याय तो किसी के साथ हुआ ही नही ना उस नारी के साथ ना उसके पति के साथ।
आज उसका पति , राजसिंहासन पर अपने राजधर्म का पालन कर रहा है और वो नारी राजाज्ञा और पत्नीव्रत धर्म का। वो चहती तो इस अन्याय का विरोध कर सकती थी, वो चाहती तो उस नगरी और पति को छोड़ अपने पिता के घर भी जा सकती थी परन्तु उसके लिए अपने सुखों से ज्यादा पति का सम्मान महत्वपूर्ण था। इसलिये वो वन को चली गयी सब अपनो से मुख मोड़कर सब रिश्तों को तोड़ कर।
उस वन में उस नारी को आश्रय दिया एक महऋषि ने मगर वो नारी वहाँ भी बिना किसी पर आश्रित हुए स्वयं का जीवनयापन करती है अपने दो पुत्रों को जाम दे उनका लालन पालन कर उन्हें स्वाभिमान से जीना सिखाती है।
और एक दिन वो बालक अपनी माता की कथा जान पहुच जाते है उसी अयोध्या नगरी की गलियों में , उस नारी को न्याय दिलाने के लिये। और नियति का पहिया फिर ले आता है उस नारी को अयोध्या में उसी राजा, न्यायाधीश के समक्ष और फिर न्याय करना है उस अयोध्या को और एक बार फिर आना है अयोध्या का फैसला।
मगर क्या अर्थ है उस न्याय का , क्या अर्थ है उस फैसले का , राजा का धर्म है वो प्रजा में विरोध की एक भी आवाज़ को अनसुना ना करे मगर क्या एक आवाज़ के लिये बाकी सभी आवाज़ों को अनसुना कर देना धर्म है? खैर राजा अपना राजधर्म निभा रहा है और उस नारी को फिर से राजदरबार में बुला रहा है। उस नारी का धर्म है के उसके पति की कृति बनी रहे इसलिए वो फिर उस राजदरबार में उपस्थित है। अब फैसला अयोध्या को करना है उस प्रजा को करना है के क्या सही क्या गलत।

कैसे बनेगा आत्मनिर्भर भारत।

कोशिश .....An Effort by Ankush Chauhan
आज सरकार हो या जनता , आम हो या खास हर कोई आत्मनिर्भर भारत की बात कर रहा है। और पड़ोसी देश चीन से बढ़ी तनातनी ने आत्मनिर्भर भारत की इस आवाज को और बल दिया है। चीन के बाद विश्व का दूसरा सबसे अधिक जनसँख्या वाला देश भारत ही है। इसलिये भारत एक बहुत बड़ा बाजार भी है। मगर अपने देश की इस आबादी को सिर्फ बाजार बना कर रखना देश की अर्थव्यवस्था के लिये अच्छा नही है । देश हित इसी में है के देश की इस आबादी को अपनी ताकत बना कर देश मे उत्पादन को बढ़ाया जाय जिससे देश मे विदेशो से होने वाले आयात को कम किया जाये ताकि हम अपने देश की जरूरतों के लिए चीन या किसी अन्य देश पर निर्भर न रहे साथ ही देश मे रोजगार को भी बढ़ाया जा सके और आत्मनिर्भर भारत का निर्माण हो सके।
मगर ये जितना आसान दिखता है क्या उतना ही आसान है?  आत्मनिर्भर भारत का सपना ऐसा सपना है जिसे सिर्फ सरकार पूरा नही कर सकती ना ही सिर्फ जनता अकेले आत्मनिर्भर भारत बना सकती है। आत्मनिर्भर भारत का सपना एक ऐसा सपना है जिसे देश की जनता और सरकार दोनों के सहयोग से चरणबद्ध तरीके से पूरा किया जा सकता है।
आत्मनिर्भर भारत के सपने को पूरे करने के लिए पहला कदम तो यही है कि देश की जनता जहाँ तक सम्भव हो स्वदेशी उत्पादों का उपयोग करे। साथ ही व्यापारी वर्ग को भी इसमें सहयोग करते हुए अच्छे स्वदेशी उत्पादों को ग्राहकों तक पहुचाने में सहयोग करना चाहिये।  ग्रहक और व्यपारियो दोनों को चाहिए के वो थोड़े से फायदे के लिए विदेशी खासकर चीनी उत्पाद को ना अपनाये। अगर हम देश मे बने उत्पादों को बढ़ावा देगे तो मांग बढ़ने से धीरे धीरे उत्पादन बढ़ने के साथ उनकी कीमतों में भी कमी आ सकती है। साथ ही विदेशी आयात पर निर्भरता कम होगी तथा देश मे उत्पादन बढ़ने से रोजगार के अवसर भी बढेगे तथा ये आत्मनिर्भर भारत की और एक कदम होगा।
दूसरा कदम सरकार को उठाना होगा सरकार को चाहिए कि सरकार देश की छोटी बड़ी कंपनियों को बढ़ावा दे उन्हें फलने फूलने के अवसर प्रदान करे।  गांव, देहात , कस्बे  और शहर में मौजूद छोटे छोटे उद्योगों और व्यपार को बाजार मुहैया करना होगा। जिला स्तर पर व्यपार सहयोग केंद्र बनने चाहिए जो नये और छोटे व्यपारियो / उधोगो को तकनीकी और उनके क्षेत्र में उपलब्ध उधोगो के अवसर के साथ, व्यपार के पंजीकरण, आवश्यक कानूनी प्रक्रिया के साथ कच्चे उत्पाद से लेकर , बाजार तक कि जानकारी उपलब्ध कराए।
एक राष्ट्रीय स्तर का डेटा बेस बने जो अलग अलग उत्पादों की देश - विदेश में मांग और भारत मे उसके उत्पादन का स्तर बात सके। ताकि मांग और उत्पादन के बीच के अन्तर को समझ कर सही अवसर को पहचाना जा सके।
विदेश से आयात होने वाले उत्पादों के देश मे निर्माण के लिए उचित व्यवस्था बनाई जाय देश मे छोटे स्तर पर बन सकने वाले उत्पादों के लिए जिला स्तर पर प्रशिक्षण की व्यवस्था हो ताकि लोग उन रोजगारो को चुन सके।
देश के बड़े उधोगपतियों को भी आत्मनिर्भर भारत मे अपना सहयोग करना होगा उन्हें सिर्फ बड़े मुनाफे के उधोगो में ही निवेश न कर ऐसे उधोग भी प्रारंभ करने चाहिए जो देश में आयात को घटाने में मदद कर सके ।
साथ ही उन्हें देश के छोटे छोटे कुटीर उधोगो में भी अपना निवेश करना चाहिये ताकि देश के दूर दराज के इलाकों में होने वाले हस्तशिल्प , कुटीर उद्योगों या छोटे स्तर के उधोगो को भी पनपने का मौका मिले।
हमारे देश मे अपार संभावना है बस सही मार्गदर्शन और सहयोग की जरूरत है। देश का हर नागरिक एक साथ आकर आत्मनिर्भर भारत के सपने को पूरा कर सकता है। आज इस आपदा को अवसर में बदले का मौका हमारे पास है आज देश के पास बहुत बड़ा मौका है और माहौल भी है तो हमे इसका सदुपयोग करना चाहिए। इसमे राजनीति से ऊपर उठकर और धर्म , जाति सम्प्रदाय की दीवारों से परे एक भारत के रूप में एक दूसरे का सहयोग करना होगा।
लोकल के लिए वोकल होना होगा एक दूसरे के अच्छे उत्पादों का प्रचार करना होगा और देश के आत्मनिर्भर भारत के सपने को पूरा करना होगा।
-AC